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गूंजे गांव, गलियों, खेतों में सरकार के खिलाफ नारे, किसान विरोधी अध्यादेशों की प्रतियां जलाई किसान सभा ने…

कोरोना संकट के मद्देनजर पंजीयन की बाध्यता के बिना सभी मक्का उत्पादक किसानों द्वारा उपार्जित मक्का की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद किये जाने; छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूरों को उनके गांवों-घरों तक मुफ्त पहुंचाने, क्वारंटाइन केंद्रों में उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को बंद करने और उन्हें पौष्टिक भोजन व चिकित्सा सहित बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने, उनके भरण-पोषण के लिए मुफ्त खाद्यान्न, मनरेगा में रोजगार व नगद आर्थिक सहायता देने; खरीफ फसलों के लिए स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के अनुसार फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और धान का समर्थन मूल्य 3465 रुपये घोषित करने; मंडी कानून और आवश्यक वस्तु अधिनियम को अध्यादेश के जरिये कमजोर करने और ठेका कृषि को कानूनी दर्जा देने के मंत्रिमंडल के फैसले को निरस्त करने; बिजली क्षेत्र का निजीकरण करने के फैसले पर रोक लगाने व बिजली कानून में कॉर्पोरेट मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे जन विरोधी, किसान विरोधी संशोधनों को वापस लेने की मांग पर आज प्रदेश के गांव, गलियां, घर और खेत गुंजायमान रहे। फिजिकल डिस्टेंससिंग का ध्यान रखते हुए छोटे-छोटे समूहों में सैकड़ों स्थानों पर ये आंदोलन आयोजित किये गए। अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा के कार्यकर्ताओं ने ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने और मंडी कानून व आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने वाले अध्यादेशों की प्रतियां जलाई।

विरोध प्रदर्शन आयोजित करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, किसानी प्रतिष्ठा मंच, भारत जन आंदोलन, छग प्रगतिशील किसान संगठन, राजनांदगांव जिला किसान संघ, क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छग आदिवासी कल्याण संस्थान, छग किसान-मजदूर महासंघ, किसान संघर्ष समिति कुरूद, दलित-आदिवासी मंच, छग किसान महासभा, छग आदिवासी महासभा, छग प्रदेश किसान सभा, किसान जन जागरण मंच, किसान-मजदूर संघर्ष समिति, किसान संघ कांकेर, जनजाति अधिकार मंच, आंचलिक किसान संगठन, जन मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय किसान मोर्चा, किसान महापंचायत और छत्तीसगढ़ कृषक खंड आदि संगठन शामिल थे।

इस विरोध प्रदर्शन की जानकारी देते हुए संजय पराते, विजय भाई, आई के वर्मा, सुदेश टीकम, आलोक शुक्ला, केशव सोरी, ऋषि गुप्ता, राजकुमार गुप्ता, कृष्णकुमार, बालसिंह, अयोध्या प्रसाद रजवाड़े, सुखरंजन नंदी, राजिम केतवास, अनिल शर्मा, नरोत्तम शर्मा, तेजराम विद्रोही, सुरेश यादव, प्रदीप कुलदीप, कपिल पैकरा आदि किसान नेताओं ने कहा कि 3 जून को हुयी केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक ने मंडी कानून व आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने तथा ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने के लिए अध्यादेश जारी करने का जो फैसला किया है, उसने कृषि व्यापार करने वाली बड़ी कंपनियों तथा बड़े आढ़तियों के लिए किसान की लूट का रास्ता साफ़ कर दिया है। इस तरह सरकार न केवल खाद्यान्न तथा कृषि उपज खरीदी से लगभग पूरी तरह बाहर हो गयी है, बल्कि उसने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बची-खुची संभावनाएं भी चौपट कर दी हैं।

उन्होंने कहा कि ठेका खेती की देश मे इजाजत दिए जाने से किसानों के पुश्तैनी अधिकार छीन जाने का खतरा पैदा हो गया है। अब कॉर्पोरेट कंपनियां किसानों को अपनी मर्ज़ी और आवश्यकतानुसार खेती करने को बाध्य करेंगी। इससे छोटे किसान खेती-किसानी से बाहर जो जाएंगे और भूमिहीनता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम को समाप्त कर सारे प्रतिबंध उठाने से कालाबाजारी और जमाखोरी जायज हो जाएगी और नागरिकों की खाद्यान्न सुरक्षा भी संकट में पड़ जाएगी। देश भर में मंडियों को खत्म करने से किसान फसलों के वाजिब भाव से वंचित तो होंगे ही, मंडियों में काम करने वाले लाखों मजदूर भी बेरोजगार हो जाएंगे। किसान सभा नेताओं ने कहा कि ये तीनों अध्यादेश खेती-किसानी को बर्बाद करने वाले, किसानों को कार्पोरेटों का गुलाम बनाने वाले तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को ध्वस्त करने वाले अध्यादेश हैं, जिन्हें तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष मक्का की सरकारी खरीद न किये जाने के कारण खुले बाजार में मक्का की कीमत आधी भी नहीं रह गई है और प्रदेश के किसानों को 1700 करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार किसानों के हित में बनी-बनाई व्यवस्था को तोड़ रही है और बिचौलियों को लूटने का मौका दे रही है।

इन किसान नेताओं ने बाहर के राज्यों में फंसे तीन लाख छत्तीसगढ़ी मजदूरों की अब तक सुरक्षित ढंग से अपने घरों में वापसी न होने पर भी चिंता प्रकट की तथा प्रदेश के क्वारंटाइन केंद्रों में प्रवासी मजदूरों के साथ अमानवीय व्यवहार करने और उन्हें पौष्टिक भोजन और बुनियादी सुविधाएं न देने का भी आरईपी लगाया है। उन्होंने कहा कि बदहाली का आलम यह है कि इन केंद्रों में गर्भवती माताओं और बच्चों सहित एक दर्जन से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। किसान नेताओं ने सभी प्रवासी मजदूरों को एक स्वतंत्र परिवार मानते हुए उन्हें राशन कार्ड और प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो मुफ्त अनाज देने, मनरेगा कार्ड देकर प्रत्येक को 200 दिनों का रोजगार देने और ग्रामीण गरीबों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए हर परिवार को 10000 रुपये मासिक मदद देने की मांग की हैं।

विभिन्न संगठनों से जुड़े के8सन नेताओं ने कहा कि पिछले वर्ष से 7% महंगाई बढ़ने के बावजूद इस वर्ष धान के समर्थन मूल्य में 2% से भी कम की वृद्धि की गई है और यह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश से 46% नीचे है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इन किसान संगठनों का मानना है कि बिजली क्षेत्र के निजीकरण और क्रॉस-सब्सिडी खत्म किये जाने के कारण खेती-किसानी बर्बाद तो होगी ही, अग्रिम भुगतान के प्रावधानों के कारण गांव के गांव अंधेरे में डूब जाएंगे।

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