हंगामा है क्यूँ बरपा तफरीह जो कर ली है !…कोरिया की सरकार, अब खालिस संतो के हाथ में है…व्यंग्य…लेखक महेंद्र दुबे…
लेखक-महेंद्र दुबे (अधिवक्ता हाईकोर्ट बिलासपुर, व्यंग्यकार, साहित्यकार )
देखा जाय तो हर आदमी भीतर से बड़ा थेथर और उँगलीबाज होता है! उसकी लूंगी उड़ के हवा में लटक ही क्यों न जाये, पूरी बेशर्मी से दांत चियार के गुनगुनाने लगेगा.….”हवा में उड़ता जाये, मोरा लाल दुपट्टा मल मल का” मगर किसी बड़े आदमी का नाड़ा तनिक भी पैजामे से नीचे खिसका, उसकी उंगली फड़फड़ा के मोबाइल के निर्लज्ज कैमरे में क्लिक पर क्लिक मारने लगेगी! और अगर गलती से लटकते नाड़े की तस्वीर किसी उंगलीबाज विरोधी या पत्रकार को फारवर्ड हो गयी फिर तो मत पूछिये….. बवाल ही बवाल! हां लाल दुपट्टे से याद आया कि अभी अभी ही तो किसी ने लाल दुप्पटा लहरा कर झुमका बांध से उठती गर्म हवा में चिंगारी पैदा करने की कोशिश की थी, वो तो भला हो हुजूर का, कि समझदारी दिखाई और झुमका को आग में खाक होने से बचा ही ले गये! कोरिया के उंगलीबाजों की यहीं थेथरई आजकल तस्वीरों में कैद होकर मीडिया और सोशल मीडिया में घूम रही है। यूं दिखाया जा रहा है कि झुमका बांध में तफ़रीह करने गये सरकारी हरकारे सरकार का तख्ता पलटने के किसी सीक्रेट मिशन के तहत लहरों के बीच वोट दौड़ा रहे थे! जबकि तस्वीरों में मुस्कुराते मासूम चेहरों को देख के कोई भी कह देगा कि कोरिया की सरकार, अब खालिस संतो के हाथ में है।
कोरिया में अफसरी कोई बच्चों का खेल नहीं है। मंत्री संतरी के फरमानों में दबे अफसरों को तीन तीन तलवार की विधायकी धार पर चलना पड़ता है और फिर यहां ट्रांसफर के खौफ को तो लिक्विड आक्सीजन जैसा ही समझिये, न जीने ही देता है न मरने! उस पर चमचे हर नये कलेक्टर के बारे में ये फैला देते है कि कोरिया में आने के लिए समाजवाद और मार्क्सवाद को, बस इन्ही साहेब के कंधे का इंतजार था! इस भयंकर और भयानक समीकरण में अगर आपको कोरिया की अफसरी करनी पड़ी होती तो यकीन कीजिये या तो बैरागी होकर छुरी पहाड़ में डेरा जमा चुके होते या फिर झुमका में डुबकी मार रहे होते! ये कोई नहीं देखता कि कोरिया में, पिछले साहबों ने नलकूप खुदवा खुदवा के जिले को पानी पानी कर दिया है मगर कुछ उंगलीबाज इसको भी सम्राट अशोक के किसी हमनाम की कारस्तानी बताने से नहीं चूक रहे है। ऐसे में नए हुजुरेआला ने जमीन से पानी निकालने की बजाय झुमका बांध के खामोश पानी मे हलचल पैदा करने की सोची तो कौन सा गुनाह कर दिया है। वायरस से जिले के लोगों को बचाने में, दिन रात भिडे अफसर अगर एक दिन की खातिर लोगों को उनके हाल पर छोड़कर तफ़रीह करने निकल ही गये तो जिले में कौन सा आसमान टूट गया या धरती फट गयी! हां पब्लिक की फटी कोई आज फटफटी थोड़ी हुई है कि नए हुजूर के सिलाई का ठेका उठा लेने से सबकी झंड जिंदगी में तरक्की का झंडा फहराने लगेगा!
तो कोरिया के भाइयों! ये उंगलीबाजों की क्रांति है, इनको क्रांति की चुल्ल है, इसके फांदे में उलझने की बजाय जुड़ाव और जुगाड़ की तकनीकी पर भरोसा कीजिये! बड़े आफिस में चुलबुल पांडे अब नहीं है तो क्या हुआ? जुड़ाव के गहरे पानी को थाहने की हिम्मत और हौसला तो पैदा कीजिये और उतर जाइये, कोई न कोई जुगाड़ का मोती, आपको राजदरबार के इस पार या पहाड़ के उस पार के किसी सुरंग का मंत्र दे ही देगा! फिर आप भी इन्ही अफसरों के साथ झुमका में चलती वोट से सेल्फी ले के उंगलीबाजों को चिढाते हुए सोशल मीडिया में अपलोड मारियेगा और हंगामें से बेपरवाह होकर कैप्शन दीजियेगा….
नातजुर्बाकारी से, वाइज की ये बाते है
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है!