♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

जनता की कमाई से बनी सम्पत्तियों की लगी है मेगा डिस्काउंट सेल … आपकी सम्पत्ति के मालिक हो जाएंगे ये …..नफा नुकसान ऐसा की चंद पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने कर दिया ये सारा गुपचुप निर्णय …..प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस ने गिनाई बिंदुवार तथ्य और कहा कैग और संसदीय समीक्षा के दायरे से भी होंगे बाहर …जाने आप भी

 

जनता की कमाई से बनी संपत्तियों की ‘मेगा डिस्काउंट सेल’ लगाई मोदी सरकार ने, गुपचुप निर्णय और अचानक घोषणा से सरकार की नीयत पर बढ़ा संदेह- कांग्रेस*

• *मोदी सरकार ने विकास के नाम पर दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, एक का नाम है Demonetization और दूसरे का Monetization | दोनों का व्यवहार एक जैसा है। Demonetization से देश के गरीबों, छोटे कारोबारियों को लूटा गया।*

• *Monetization से देश की विरासत को लूटा जा रहा है, और दोनों ही चंद पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए किए गए काम हैं।*

रायगढ़ ।

केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (NMP) को लेकर मोदी सरकार जनता की कमाई से पिछले 60 साल में बनाए गए सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने पर आमादा है। सबसे चौंकाने वाली और संदेह में डालने वाली बात यह है कि यह सभी कुछ ‘गुपचुप तरीके से तय किया गया। इसके बाद इस निर्णय की घोषणा भी अचानक से की गई। जिससे सरकार की नीयत पर शक गहराता है।

इसी गम्भीर मुद्दे को लेकर रायगढ़ जिला कांग्रेस के जिलाध्यक्षों अनिल शुक्ला (शहर), अरुण मालाकार (ग्रामीण) और सुरेंद्र प्रताप जायसवाल (सह प्रभारी) के द्वारा सयुंक्त प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। जिसमें मोदी सरकार के द्वारा देश की विरासत को अपने व्यापारी मित्रों को कौड़ियों के मोल में बेचे जाने का विरोध करने के लिए और देश की जनता को अवगत कराने के लिए आयोजित की गई है।

इस मामले में रायगढ़ जिला कांग्रेस के सह प्रभारी सुरेंद्र प्रताप जायसवाल ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि

1. *ढांचागत आधार (Infrastructure) सृजन का तुलनात्मक अवलोकन*

एनडीए की तुलना अगर यूपीए से ढांचागत आधार के सृजन को लेकर की जाए तो यूपीए के मुकाबल एनडीए का रिकॉर्ड काफी खराब है।

पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर जो भी भाषण दिए हैं, उनका मुख्य केंद्र मुख्य रूप से ढांचागत आधार ही रहा है। लेकिन NDA सरकार की इस बिंदु पर अगर UPA से तुलना की जाए तो NDA का रिकॉर्ड खराब है।

Para 1-2 Volume 1 Monetisation Guidebook कहता है:

“12वीं योजना योजना काल के दौरान ढांचागत आधार में निवेश को 36 लाख करोड़ रुपए समग्रित पर आंका गया। यह जीडीपी का 5.8 प्रतिशत औसत है। वित्तीय वर्ष 2018 और 2019 में यह अनुमान 10 लाख करोड़ पर आ गया।”

से 12वीं योजना काल जो 2012 से 2017 के बीच था। उस दौरान औसतन 7.20 लाख करोड़ सालाना ढांचागत आधार पर निवेश किया जा रहा था। यह एनडीए शासन काल में 5 लाख करोड़ रुपए पर आ गया है। इससे सभी लोगों की उस शंका को बल मिलता है कि सरकार का मुख्य मुद्दा ढांचागत आधार को बेहतर करना नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान करना है।

2. *एकाधिकार*

बाजार में चुनिंदा कंपनियों की मनमर्जी कायम हो जाएगी सरकार भले कहती रहेगी की निगरानी के सौ तरह के उपाय हैं। उसके लिए नियामक संस्थाएं हैं। लेकिन सच इसके विपरीत है। यह हम सोमेंट के क्षेत्र में देख सकते हैं। जहां पर दो तीन कंपनियों का एकाधिकार है। वही बाजार में भाव को तय करते हैं। सरकार के तमाम नियामक प्राधिकरण और मंत्रालय उनके सामने असहाय नजर आते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण और गठजोड़ बढ़ेगा।

इस तरह की स्थिति इंग्लैंड बैंकिंग क्षेत्र में देख चुका है। इस मामले में हम अमेरिका से भी बहुत कुछ सीख हैं। जो फेसबुक, गूगल और अमेजॉन जैसी संस्थाओं पर नियंत्रण के लिए विभिन्न तरह के नियम और कानून बना रहा है। इसमें उनकी संसद और सभी नेता एक साथ नजर आते हैं। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों का बाजार पर वहां एकाधिकार है। इसी तरह की स्थिति चीन में भी है। वहां पर कुछ टेक कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए चीन की सरकार कई तरह के कदम उठा रही है। इसकी वजह यह है कि यह कंपनियां इतनी बड़ी हो गई है कि इनके लिए कानून बनाना चीन की सरकार के लिए भी मुश्किल हो रहा है। दक्षिण कोरिया भी अपने यहां पर इसी तरह से एकाधिकार के खिलाफ कार्य कर रहा है। लेकिन भारत में स्थिति इसके विपरीत नजर आ रही है। यहां पर मोदी सरकार कुछ चुनिंदा कंपनियों को एकाधिकार का रास्ता स्वयं बनाकर दे रही है। अगर सरकार की बात मानी भी जाए कि किसी क्षेत्र में दो या तीन कंपनियां होंगी। उसके बाद भी उनके बीच गठजोड़ को कैसे सरकार रोक पाएगी। जब चुनिंदा कंपनियां बाजार में रहेंगी तो गठजोड़ ओर मूल्य वृद्धि होना तय है।

*3.NMP परिसंपत्तियों के ‘सांकेतिक मुद्रीकरण मूल्य’ (Indicative Monetisation Value)*

अत्याधिक कम मूल्य पर सरकार ने 12 मंत्रालयों के 20 परिसंपत्तियों का वर्गीकरण करते हुए इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए चिन्हित किया है। इनका सांकेतिक मौद्रिक मूल्य सरकार ने 6 लाख करोड़ रुपए दर्शाया है। इन परिसंपत्तियों के निर्माण में पिछले 70 साल के दौरान अभूतपूर्व मेहनत, बुद्धि और निवेश लगाया गया है। यह सभी परिसंपत्तियों अमूल्य हैं। लेकिन इन सभी परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव देने की तैयारी की जा रही है। जिसे इन परिसंपत्तियों का मूल्य कभी नहीं माना जा सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि इन परिसंपत्तियों को किराए के भाव बेचने का कार्य किया जा रहा है।

बहुत से परिसंपत्तियों के मामले में निजी क्षेत्र पूंजी का निवेश एक लंबे दीर्घ काल तक करेगा। यह निवेश की जाने वाली राशि केवल अनुमानित है। वर्तमान समय में इसका मूल्य नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि बहुत सारे परिसंपत्तियों के लिए, प्रत्यक्ष तौर पर (upfront) इस समय प्राइवेट कंपनी द्वारा पूरी लागत का कुछ ही हिस्सा दिया जाएगा। जो पैसा दीर्घकाल में निवेश किया जाएगा। उसे एक तरह से सांकतिक मौद्रिक मूल्य कहा जाना चाहिए।

रोड मैप में परिसंपत्तियों के मूल्यांकन को लेकर चार तरीकों या प्रस्ताव को लेकर जानकारी दी गई है। इनमें से एक (Capex Approach) कैपेएक्स एप्रोच वैल्युएशन है।

कैपेक्स मूल्यांकन (Capex Approach) को 20 में से 11 परिसंपत्तियों के मामले में चिन्हित किया गया है। ऐसे में सरकार जिस 6 लाख करोड़ रुपए की बात कर रही है। वह भी सत्य नहीं है। इसकी वजह यह है कि इसमें से काफी राशि प्रत्यक्ष तौर पर निजी क्षेत्र द्वारा निवेश ही नहीं की जा रही है। यह सभी अनुमान आधारित मूल्यांकन है। जो दीर्घकाल में निजी क्षेत्र खर्च करेगा।

रायगढ़ जिला कांग्रेस के ग्रामीण अध्यक्ष अरुण मालाकार ने अपने बयान में कहा कि

*4. सुरक्षा और रणनीतिक हित (Strategic Interest)*

यूपीए शासनकाल में यह निर्णय किया गया था कि रणनीतिक परिसंपत्तियों (strategic asset) का निजीकरण नहीं किया जाएगा। रेलवे लाइन गैस पाइपलाइन को लेकर विशेष सतर्कता रखी जाती थी। उनको लेकर हमेशा एक सुरक्षात्मक दृष्टिकोण रखा गया जिससे वह निजी हाथों में जाने से बची रहे किसी भी तरीके से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी विदेशी शक्ति के हाथों में यह रणनीतिक परिसंपत्तियों न जाने पाएं।

युद्ध के समय सेना के आवागमन के लिए रेलवे और राष्ट्रीय एयरलाइन का अपना महत्त्व हमेशा से रहा है। ऐसे में क्या यह सही नहीं है कि सरकार ने हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी पंगु बनाने का निर्णय किया है। अगर इन रणनीतिक परिसंपत्तियों को बेच दिया जाता है तो किसी आपात स्थिति में किस तरह के हालात होंगे। इसकी कल्पना की जा सकती है। गैस पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन और राष्ट्रीय राजमार्ग भी हमेशा से रणनीतिक महत्त्व रखते रहे हैं। लेकिन इस सरकार को इसकी कोई चिंता नजर नहीं आती है।

*5. रोजगार की सुरक्षा*

सरकारी संस्थानों को प्राइवेट हाथों में देने से पहले यूनियनों से बात कर उन्हें विश्वास में लेना सबसे जरूरी है। कहीं भी अपने दो भागों वाले दस्तावेज में सरकार ने यह बताया है की मौजूद कर्मचारियों के हितों की रक्षा करी जाएगी। भविष्य में भी सार्वजनिक उपक्रम दलित, आदिवासी पिछड़े वर्गों को नौकरी देकर सहारा देने वाले होते हैं। यह सहारा भी छीन लिया जा रहा है।

*6. रेलवे में गरीबों और जरूरत मंदों के द्वारा इस्तेमाल करे जाने वाले स्टेशन और लाइनों को किया नजरअंदाज*

रेलवे की जिन संपत्तियों, रेलवे स्टेशनों और रेलवे लाइनों को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में बेचने के लिए चिन्हित किया गया है। वह हमेशा से बेहतर और फायदे का सौदा वाली परिसंपत्ति रही हैं।

एक बार निजीकरण हो जाने के बाद लाभ कमाने वाले सभी रूट निजी क्षेत्र को सौंप दिए जाएंगे। जबकि घाटे में चलने वाले रूट और छोटे स्टेशन को सरकार चलाएगी जहां पर सरकार पैसे की कमी का हवाला देते हुए उदासीन बनी रहेगी इससे इन स्टेशनों और लाइनों पर यात्रा करने वाले यात्रियों को हमेशा बदतर सेवाओं के साथ ही रहना होगा।

यह बताता है, जो क्लस्टर वर्तमान पैकेज के तहत निविदा के लिए चुने गए हैं। वह सबसे अधिक मुनाफे वाले रूट हैं
इनमें दिल्ली – मुंबई दिल्ली- चेन्नई, मुंबई – चेन्नई आदि रूट शामिल है।

( इसमें मुंबई – अहमदाबाद रूट गायब है क्योंकि यहां पर बुलेट ट्रेन चलाई जानी है। जो प्रधानमंत्री का सपना है। जबकि सभी जानते हैं कि इस रूट पर बुलेट ट्रेन की उपयोगिता को स्वयं कई सरकारी अधिकारी ही नकार चुके हैं।) जिन 10 रेलवे स्टेशनों को बिक्री के लिए चुना गया है। उनको यहां पर ऊपर ग्राफिक्स में देखा जा सकता है। यह सभी निवेश के लिहाज से आकर्षक रेलवे स्टेशन हैं।

लिहाजा बाको के स्टेशनों पर और दूसरे रेल मार्ग, जहां गरीब ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन सब पर कोई ध्यान नहीं देगा।

*7. CAG (कैग) और संसदीय समीक्षा का रास्ता बंद*

सरकार ने InvIT ( इन्फ्राट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) REAT (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) या अन्य विशेष कंपनी SPV के सृजन की बात की है। क्या इनका ऑडिट कैग कर पाएगी। इसका उत्तर है, ‘नहीं’।

2007 से ही कैग के लिए यह मुश्किल बना हुआ है कि वह सार्वजनिक निजी भागीदारी या पीपीपी प्रोजेक्ट की समीक्षा कर पाए। लेकिन नई विशेष कंपनियां, जो SEBI रजिस्टर्ड, InvIT या REAT है. वह कैग के दायरे से बाहर ही बनी रहेंगी। जिससे उनकी समीक्षा कभी संभव ही नहीं हो पाएगी।

इतना ही नहीं, सरकार ने निजी निवेशको और कंपनियों को यह वादा किया है कि उन्हे संचालन और प्रबंधन में उच्च स्तरीय लचीलापन या फ्लैक्सिबिलिटी प्रदान की जाएगी। ऐसे में यह सभी निवेशक किसी भी तरह की संसदीय समीक्षा से बाहर बने रह सकते हैं।

शहर जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला ने केंद्र की मोदी सरकार को जमकर लताड़ा और बिन्दु बार उनके द्वारा किए गए कार्यों को देश की आम जनता के लिए पड़ने वाले प्रभाव को भी बताया।

*8. सूचना का अधिकार नहीं होगा प्रभावी*

जिन कंपनियों को परिसंपत्तियों के संचालन के लिए बनाया जाएगा। वह उन नए नियमों के तहत संचालित होंगी। जो सूचना के अधिकार या आरटीआई के दायरे में आने में दिक्कत होगी। इन कंपनियों का सृजन गुप-चुप तरीकों से किया गया, जो आने वाले समय में गुप-चुप तरीके से ही संचालित होंगी और चुनिंदा औद्योगिक पूंजीपति मित्रों को ही लाभ पहुंचाने का कार्य करेंगे।

कुछ इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के संदर्भ में भी घटित हुआ है। सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने ऑस्ट्रेलिया के अनुभव को उल्लेखित करते हुए लिखा है कि वर्ष 2018 में BestConnex की बिक्री हुई थी। यह ऑस्ट्रेलिया के बड़े Metropoils Motor way में शामिल विवादित मामला है इसमें सूचना की आजादी के दायरे को सीमित कर दिया गया। (भारतीय संदर्भ में इसे सूचना का अधिकार पढ़े)। इसके अलावा स्टेट ऑडिटर जर्नल (भारतीय संदर्भ में कैग) को इस प्रोजेक्ट की समीक्षा से भी बाहर करने जैसे नियम प्रभावी कर दिए।

*9. ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर का अनुभव*

न्यू साउथ वेल्स में बिजली के पोल और तार के निजीकरण के बाद 5 साल में बिजली के दाम दुगने हो गए। वहां पर सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। सरकार ने उपभोक्ताओं पर बढ़ते दाम का बोझ घटाने के लिए एनर्जी अफॉर्डेबिलिटी पैकेज शुरू किया। इसकी वजह यह थी कि सरकार को यह अनुभव हो गया था कि निजीकरण के बाद दाम घटने की जगह बढ़ते ही रहेंगे।

वहीं दूसरी ओर, सिंगापुर को अपनी (sub-urban train) सब-अर्बन ट्रेन के सिगनलिंग सिस्टम का राष्ट्रीयकरण करना पड़ा। यह भारत में मोदी सरकार के द्वारा करी जा रही छडच नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन या परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण योजना के विपरीत है। जिसमें मोदी सरकार रेलवे का भी निजीकरण करना चाहती है। सिंगापुर सरकार के इस निर्णय की वजह यह थी कि यहां पर मुख्य प्राइवेट ऑपरेटर ने रखरखाव / देखभाल में कम पैसा खर्च करना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से रेलगाड़ियां लगातार ब्रेकडाउन की स्थिति में पहुंच रही थी। इसकी वजह से यात्री जहां-तहां फस जाते थे। जिससे यात्रियों के बीच गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

*10. अधिकतर परिसंपत्तियों सरकार के पास नहीं रहेंगी*

सरकार उस समय पूरी तरह से झूठ बोलती है। जब वह कहती है कि बेची गई परिसंपत्तियों हमेशा सरकार के पास रहेंगी। जब भी इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट InvIT और REIT जैसे ट्रस्ट बना कर संपत्ति बेची जाएगी तो वह कभी भी सरकार के पास कैसे रह सकती है
इसके तहत सरकार अपने एक, या उससे ज्यादा संपत्तियों को एक ट्रस्ट में डाल देता है। फिर ट्रस्ट उसके यूनिट बना कर खुले बाजार या चुने हुए खरीददारों को बेचता है। एक बार बिक गया तो बिक गया। सरकार की मलकीयत गई। बहुत सारी सरकारी संपत्तियों को इस प्रकार बेचने का इरादा इन दो भागों में छपी स्कीम में सरकार ने बताया है।

इसके अतिरिक्त 30 से 60 साल की लीज होती है। यह भी एक तरह से संपत्ति को बेचने जैसा ही है। जब दीर्घकाल तक किसी संपत्ति पर किसी निजो निवेशक का अधिकार बन जाता है।

लेकिन दुख की बात यह है कि सरकार इनको बेचने के भाव की जगह किराए के भाव पर इतनी लंबी अवधि के लिए दे रही है। इस अवधि में एक बच्चा प्रौढ़ावस्था में पहुंच जाएगा। लेकिन उस अवधि के दौरान उस सरकारी परिसंपत्ति का कोई भी लाभ देश के नागरिक को नहीं हो पाएगा। जबकि निजी क्षेत्र उससे इस अवधि में लगातार कमाई करता रहेगा।

*11. संघीय ढांचे पर चोट*

सार्वजनिक उपक्रमों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने रियायती दरों पर जमीन दी थी। जमीन या भूमि राज्यों का विषय होता है। ऐसे में विभिन्न राज्य सरकारों को भी केंद्र सरकार को भरोसे में लेना चाहिए था। लेकिन उसकी नीयत में खोट है। इसकी वजह से उसने ऐसा नहीं किया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यरूप से
जिला कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष दीपक पाण्डेय, सारंगढ़ बूथ प्रभारी सूरज तिवार,नगर पालिक निगम महापौर श्रीमती जानकी अमृत काटजू,जिला कांग्रेस ग्रामीण शहर प्रभारी महामंत्री द्वय विकास शर्मा, शाखा यादव किरण पंडा उपस्तिथ थे

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close