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ज़िम्मेदार अधिकारियों ने उड़ाई राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) के आदर्शों की धज्जियां – संजीव अग्रवाल..

 

आरटीआई एक्टिविस्ट और विसलब्लोअर संजीव अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में वेदांता समूह को बारनवापारा वन क्षेत्र में सोने के पूर्वेक्षण के लिए दी गई अनुमति से होने वाले नुकसान और सरकारी पक्ष की दलीलों की जांच के लिए माननीय NGT न्यायालय द्वारा गठित 4 सदस्यीय समिति 20/6/2022 को मौके पर जाकर स्थल निरीक्षण कर इस क्षेत्र में खनन से जंगल को होने वाले नुकसान का आंकलन करने के लिए आदेशित किया था।

जिला बालौदाबाज़ार के बारनवापारा देवपुर रिजर्व फारेस्ट में सोना निकालने ड्रिलिंग करने के इस मामले में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एनजीटी के आदेश पर उक्त रिज़र्व फारेस्ट में ड्रिलिंग के लिए चिन्हित पॉइंट का निरीक्षण करने के लिए चार अधिकारियों की टीम बनाई गई थी। आदेश स्पष्ट था कि इन्हें ही मौके पर जाना था। बावज़ूद उसके 20 जून को निरीक्षण पर गई टीम ने एनजीटी के आदेश की अवहेलना की। पीसीसीएफ फारेस्ट राकेश चतुर्वेदी के अलावा मौके पर नामित व्यक्ति प्रतिनिधि रीजेनल ऑफिस ऑफ मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट एण्ड फॉरेस्ट नागपूर, प्रिन्सपल सेक्रेटरी माइंस छत्तीसगढ़, कलेक्टर बलौदाबाजार नहीं पहुंचे थे।

परंतु कल जो टीम मौक़े पर पहुँची थी उसमें न्यायालय के आदेश अनुसार जिन सदस्यों को होना चाहिए था उनमें से सर्फ़ राकेश चतुर्वेदी (PCCF) ही मौजूद थे। बाक़ी सभी सदस्यों ने अपने प्रतिनिधि को भेजा था जो की यह दर्शाता है के छत्तीसगढ़ के अधिकारी NGT के आदेश की भी अवमानना करने से नहीं चूकते हैं। हालांकि कलेक्टर बलौदाबाजार ने प्रतिनिधि अपर कलेक्टर राजेन्द्र गुप्ता को भेजा था और खनिज से संयुक्त संचालक कैलाश डोंगरे पहुंचे थे।

संजीव अग्रवाल ने बताया कि जब हम सदस्यों के साथ निरीक्षण करने पहुँचे तब यह बात सामने आई कि वन विभाग के अधिकारी सुनील मिश्रा की अध्यक्षता टीम ने पहले अपनी स्वीकृति बोरेवेल्ल के लिए नहीं दी थी, उन्होंने ही अपने दूसरी रिपोर्ट में स्वीकृति प्रदान कर दी। ध्यान देने योग्य बात यह भी सामने आई कि सुनील मिश्रा ने स्वयं उन जगहों को (जहां खुदाई होनी है) प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा है।

हमारी टीम को मौक़े से 5 किमी पहले ही गाड़ी से उतरना पड़ा क्योंकि आगे जंगल का रास्ता गाड़ियों के जाने लायक था ही नहीं बल्कि वहां तो दो पहिया वाहन भी नहीं जा पाए। अब जबकि गाड़ियाँ आगे नहीं जा सकती थीं इसीलिए PCCF राकेश चतुर्वेदी और Addl. PCCF सुनील मिश्रा वहीं से लौट गए। गाड़ियां मौके तक जा नहीं पाई। ऐसे में पीसीसीएफ चतुर्वेदी रास्ते मे ही रुक गए। जबकि अपर कलेक्टर गुप्ता, डीएफओ केआर बढ़ई, एसडीओ फारेस्ट ठाकुर, कैलाश डोंगरे व अन्य अमला 5 किमी तक पैदल चल कर सपोर्ट तक पहुंचे। और पैदल ही वापस लौटे। आमतौर पर एसी कार व केबिन में रहने वाले अधिकारी हांफते हांफते जंगल की चढ़ाई करते रहे।

संजीव अग्रवाल ने बताया कि वहां से गाड़ी छोड़ कर मैं मेरे साथ अडिशनल कलेक्टर, माइनिंग के अधिकारी, डिस्ट्रिक्ट फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर और एक फ़ॉरेस्ट रेंजर बिना किसी सुरक्षा के आगे जंगल में गए। लगभग 5 किमी की पैदल चढ़ाई करने के बाद जो कि घने जंगल के बीच से होते हुए कंकड़ पत्थर की छोटी सी पगडंडी से होते हुए हम पहले पॉइंट तक पहुँचे जहां रास्ते से 1 मीटर अंदर जंगल की ओर एक लकड़ी जिसपर लाल रंग लगा हुआ था वह गड़ी थी। कक्ष क्रमांक 254 में ड्रिलिंग के सिर्फ सात पाइंट ही देख पाए, जिनमें तीन जंगली रपटा के दायें बाएं थे, जबकि चार पाइंट रपटा से 50- 60 मीटर घने जंगल के भीतर थे। एक पाइंट खाई से लगा हुआ था।

उसके बाद के 3 – 4 पॉइंट जंगल में 50 – 60 मीटर घने जंगल के बीच वैसी ही लकड़ियां गडी हुई थीं। वहाँ मौजूद अधिकारीयों को यह तक नहीं पता था कि पॉइंट कहाँ कहाँ हैं। उनका कहना था के पॉइंट प्राइवट कम्पनी आके लगा के गई है और उन्होंने कहाँ कहाँ पर लगाया है इसकी जानकारी सरकार को नहीं है।

मौके पर गई टीम ने माना कि यहां ड्रीलिंग की अनुमति देना जंगली जीवन, प्रकृति से खिलवाड़ होगा। ड्रीलिंग की अनुमति मांगने वाली कंपनी हैंड लोडेड मशीन लेकर जाती है तब भी पेड़ कटेंगे। डीजल चलित मशीन चलाती है तो शोर होगा। जबकि ग्रामीणों के अनुसार यह क्षेत्र हाथी, भालू, बुंदीबाग विचरण क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कई वन्य जीव जंतु हैं, जिनकी नैसर्गिक स्वतंत्रता प्रभावित होगी। लोगों की आवाजाही भी बढ़ेगी।

कुछ दूर आगे चलने पर एक पॉइंट ऐसा आया जहां लकड़ी गड़ी थी और उससे लगभग 1 मीटर के बाद गहरी खाई थी। जिससे यह साफ़ होता है के यह सारे पॉइंट घने जंगल के बीच हैं और बिना पेड़ पौधों को कटे और जीव जंतुओं को हानि पहुँचाए यह काम नहीं हो सकता है, इस बात की पुष्टि कुछ स्थानीय ग्रामीणों ने भी की। मौक़े पर मौजूद स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह हाथियों के आने जाने की जगह भी है और वक्त वक्त पर तेंदुआ, हाथी, भालू, हिरण, जंगली सुअर, खरगोश व अन्य वन्य प्राणियों का विचरण क्षेत्र है। साथ ही उस वन क्षेत्र में ऐसे कई कीड़े, मकोड़े, जीव, जन्तु और औषधीय गुणों से युक्त पेड़ पौधे उपलब्ध हैं जोकि दुर्लभ हैं।

बता दें कि छत्तीसगढ़ की एक नामी कंपनी देवपुर जंगल मे सर्वे कर 53 जगहों पर भूमिगत स्वर्ण भंडार का परीक्षण करने ड्रिंलिंग की अनुमति मांगी है।अनुमति मिलने से परसा कोल ब्लॉक हसदेव अरण्य की तरह यहां भी जंगल प्रभावित होता देख आरटीआई कार्यकर्ता संजीव अग्रवाल ने इस पर आपत्ति ली।

उन्होंने आनलाइन शिकायत एनजीटी को भेजा। एनजीटी ने मामले में संवेदनशीलता दिखाई।

अग्रवाल ने एनजीटी न्यायालय में छत्तीसगढ़ के एक निजी समूह को बारनवापारा वन क्षेत्र में सोने की खदान में सोने के पूर्वेक्षण के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दी गयी अनुमति पर रोक लगाकर जंगल बचाने के लिए एक याचिका दाखिल की। जिसकी सुनवाई करते हुए एनजीटी न्यायालय ने नौ मई 2022 को इस पूरे मामले को बेहद गंभीर मानते हुए एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन का आदेश दिया। जिसे तीन माह के भीतर रिपोर्ट एनजीटी न्यायालय के समक्ष पेश करने के आदेश है। इस मामले में एनजीटी न्यायालय में पुनः सुनवाई की दो अगस्त 2022 को होगी।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण न्यायालय द्वारा जो संयुक्त कमेटी जांच हेतु गठित की गई उसमें पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन के नागपुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिनिधि , प्रमुख सचिव माइनिंग विभाग छत्तीसगढ़ सरकार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक छत्तीसगढ़ वन विभाग, एचओडी छत्तीसगढ़ राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल और कलेक्टर बलौदाबाजार जिला शामिल है।

संजीव अग्रवाल की आपत्ति –

20 जून को निरीक्षण पर पहुंची टीम में पीसीसीएफ जरूर नजर आए। जबकि प्रतिनिधि रीजेनल ऑफिस ऑफ मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट एण्ड फॉरेस्ट नागपूर, प्रिन्सपल सेक्रेटरी, माइनिंग छत्तीसगढ़, कलेक्टर बलौदाबाजार नहीं थे। जिस पर अग्रवाल ने आपत्ति जताई और इसे एनजीटी के आदेश की अवमानना कहते हुए शिकायत की बात कही। उन्होंने पत्र भेजकर पुनः दूसरी कमेटी बनाने की मांग रखी है।

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