बाजारवाद ने लोकतंत्र को बाजार में खड़ा कर दिया ? ….सरकारों की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए.. पर कोई विचार विमर्श नहीं होती ……पढ़े पूरी आलेख इनकी कलम से
कला, संस्कृति, साहित्य,सभ्यता,नैतिक मूल्य,आदर्श, रिश्ते, भावनाएं यहां तक की मनुष्य पूंजीवाद में सब कुछ बिकाऊ होता है।सबकुछ आकर्षक एवं मनलुभावन बाजारवाद का हिस्सा हो जाते हैं ।बाजारवाद बहुत क्रूर और निर्मम होता है।उसका एक मात्र उद्देश्य, येन केन प्रकारेण पूंजी अर्थात लाभ कमाना होता है।
जनतंत्र का मूल आधार होता है मतदान।जनता अपने मतदान का उपयोग कर लोकतंत्र को मजबूत व समृद्ध करता है। जिसका मुख्य उद्देश्य होता है कि – जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के हित में कार्य करे। बिना किसी भय,प्रलोभन या दबाव के मतदान सुनिश्चित करना सरकार की स्वतंत्र एजेंसी चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है।जनता को भी काफी जागरूक होकर बिना किसी भय,प्रलोभन या दबाव के मतदान करना चाहिए।लेकिन कुछ प्रमुख राजनैतिक दलों के घोषणा पत्रों और उम्मीदवारों की घोषणाओं में राज्य की समृद्धि व विकास हेतु कहीं कोई नीतिगत मुद्दे व समस्यायों के स्थाई समाधान की कोई योजनाएं नहीं है बल्कि त्वरित लाभ या जुमले बाजी से भरी घोषणाएं शामिल है।जो लोकतंत्र पर ही गंभीर प्रश्न चिन्ह अंकित करते हैं।ऐसा लगता है मानो लोकतंत्र का बहुत बड़ा बाजार लगा है। लोग एक से बढ़कर एक आकर्षक,लुभावने वायदे एवं ऑफर दे रहें हैं।कुछ आकर्षक व लुभावने ऑफर मतदाता को व्यक्तिगत या ग्रुप में भी दिए जा रहे हैं।ऐसा लगता है जैसे बाजारवाद ने लोकतंत्र को बाजार में खड़ा कर दिया है।
छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है।
छत्तीसगढ़ में मौलिक अधिकारों के तहत शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार के साधन,और कृषि पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी),सिंचाई परियोजना,पेशा कानून,रायगढ़ सहित पूरे छत्तीसगढ़ में बढ़ते खतरनाक प्रदूषण,नदी ,तालाब,जलाशयों,जलस्रोतों के संरक्षण और संवर्धन आदि मूलभूत मुद्दों पर कोई नीतिगत बातें नहीं कर रहा है।लोकतांत्रिक समाजवादी व्यवस्था में फ्री ( निः शुल्क)शिक्षा और चिकित्सा और रोजी – रोटी,कपड़ा और मकान के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी सरकारों की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए इस पर कोई विचार विमर्श नहीं है। इसके लिए जागरूक और समृद्ध लोकतंत्र की आवश्यकता है।
जागरूक व मजबूत लोकतंत्र खुशहाल और समृद्ध राष्ट्र निर्माण को सुनिश्चित करता है।इसलिए लोकतंत्र के उत्सव में संवैधानिक अधिकार प्राप्त नागरिकों को मतदान अवश्य करना चाहिए। सरकार की स्वतंत्र एजेंसी चुनाव आयोग की अहम भूमिका भी जरूरीहै।
गणेश कछवाहा
रायगढ़, छत्तीसगढ़
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