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फ़र्ज़ी कंपनी खोल दम्पति ने लोगों को लगाया करोड़ों का चूना, पुलिस के हाथ से निकली महिला…

51 फर्जी कम्पनियों का कर रहे थे संचालन.. 77 गाड़ियों के मालिक..

सौ करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा करने वाले फरार ऋण माफिया संजय और नेहा द्विवेदी पर जीएसटी का भी 11 करोड़ रुपए बकाया शेष है. प्रदेश के वाणिज्यिक कर विभाग ने इस संबंध में ईओडब्ल्यू को जानकारी दी है. वही 20 जनवरी को ईओडब्ल्यू की टीम ने आरोपियों के इंदौर स्थित ठिकानों पर छापामार कार्रवाई की गई. लेकिन आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. आरोपियों के खिलाफ बेटमा और देपालपुर थाने में किसानों ने एफआईआर दायर कराई थी।
ईओडब्ल्यू के अनुसार, 20 जनवरी को आरोपी संजय और नेहा के इंदौर स्थित 5 ठिकानों पर छापामार कर कार्रवाई को अंजाम दिया था. कार्रवाई के बीच 25 बोरे दस्तावेज बरामद किए जा चुके थे. जांच में यह पता चला था कि आरोपियों द्वारा 51 फर्जी कंपनियों का संचालन किया जा रहा था. इन कंपनियों के संबंध में ईओडब्ल्यू की टीम ने कमर्शियल टैक्स विभाग को खत लिखा था. वहां से आए जवाब के मुताबिक़ आरोपियों पर जीएसटी के 11 करोड़ रुपए बकाया शेष है. जिसकी वसूली के लिए कमर्शियल टैक्स विभाग द्वारा नोटिस भी जारी किया जा चुका था.वही आरोपी दंपत्ति ने अपनी कंपनियों के नाम पर 77 गाड़ियां भी खरीदी थी.
इन आरोपियों की तलाश में पुलिस ने कई स्थानों पर छापेमारी भी की है. दो दिन पहले ही हातोद पुलिस ने आरोपियों के एक साथी देपालपुर में रहने वाले यशवंत बलीराम को गिरफ्त में ले लिया है. यशवंत पर भी तीन हजार रुपए का इनाम रखा गया था. इस मामले में आठ मुलजिमों के नाम सामने आए है. आरोपी संजय ने निवेश और पार्टनर बनाने के नाम पर जो करोड़ों रुपए ठगे, वही इन पैसो से  उनसे महाराष्ट्र में चार लग्जरी बंगले खरीदे थे. और इन बगलों की कीमत करीबन 80 करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकती है. वही आरोपी संजय 2012-13 से ठगी कर रहा है. वह ऑनलाइन जारी होने वाले टेंडर के प्रिंट आउट निकालकर वह लोगों को प्रोजेक्ट मिलने का झांसा देता था. उन लोगो को पार्टनर बनाता,फिर उनकी संपत्ति बैंक में बंधक रखवाता और लोन निकाल लेता था. जांनकारी के मुताबिक संजय और पत्नी नेहा 2006-07 में एक निजी बैंक में नौकरी करते थे. यहीं दोनों ने सीखा कि किस तरह फर्जी कंपनी, दस्तावेज बनाकर लोन लिया जा सकता है. इसके पश्चात् दोनों ने नौकरी छोड़ दी और इस तरह के फर्जीवाड़े में लग गए.

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