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1 साल बाद भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी युवक पंकज बेक कस्टोडियल डेथ मामले में पीड़िता पत्नी को अब भी न्याय नहीं…संवेदनशील IG से है उम्मीद…

 

अम्बिकापुर से मनीष सोनी

पंकज बेक नामक एक गांव का सीधा साधा गरीब आदिवासी युवक, पेशे से तकनीशियन जिसका काम था सरगुजा जिले के अम्बिकापुर में ग्लोबल एसोसिएट नामक सन्स्थान में इंटरनेट एवं सीसी टीवी कैमरे सुधारना, बीवी बच्चों सहित उसकी जिंदगी किसी तरह संघर्ष से कट रही थी कि अचानक अपने दैनिक कार्य के दौरान एक दिन उसपर 13 लाख नगद चोरी का इल्ज़ाम लगता है, अंबिकापुर शहर के ही एक व्यवसायी तनवीर ने थाने में लिखित आवेदन दिया कि उसके घर के सीसी टीवी कैमरे को सुधारने के लिए 27 जून 2019 को मृतक पंकज बेक और इमरान खान आये थे उन्होंने उसके अलमारी से नगद 13 लाख रुपये चुराए हैं, ऐसा नही था कि दोनों तकनिशियन पहली दफा उक्त व्यवसायी के घर गये थे वे पिछले कुछ वर्षों से उक्त व्यवसायी के यहां तकनीकी कम्प्लेंट मिलने पर सुधार के लिए जाते रहते थे। पुलिस के मुताबिक शिकायत कर्ता की शिकायत के अलावा पुलिस के पास कोई साक्ष्य नहीं, फिर भी थर्ड डिग्री टार्चर….

यूं तो आम तौर पर पुलिस अकर्मण्यता के लिए बदनाम है ही लेकिन एक व्यवसायी के द्वारा आरोप लगा देने भर से, बगैर किसी ठोस सबूत के अम्बिकापुर पुलिस ने मृतक पंकज बेक साथी इमरान और उनके घर वालों का जीना हराम कर दिया। जब मन लगता पुलिस उन्हें बुला लेती पूछताछ के नाम पर दिनभर नँगें बदन रखती, दोनो को दिनभर मारती कभी मन करे तो छोड़ देती, वैसे तो अनेकों अनसुलझे वारदात थानों की फाइलों में धूल फांक रहे हैं परन्तु अम्बिकापुर पुलिस ने इस केस में इतनी कर्मठता एवं उदारता दिखाई कि जिस व्यवसायी तनवीर सिंह ने चोरी का आरोप लगाया था उसे स्वयं एवं उसके साथी को, आरोपियों से इंट्रोगेशन करने के साथ मार पीट की खुली छूट दे रखी थी।

22 जुलाई 2019 को साईबर सेल से थोड़ी दूर में मिली थी पंकज बेक लाश.

उक्त घटना में दिनांक 20 जुलाई 2019 को आरोपी पुलिस वालों ने पंकज बेक और इमरान को निर्देश दिया था कि अपने परिवार के बैंक खातों के विवरण के साथ अगले दिन यानी 21 जुलाई 2020 को साइबर सेल में उपस्थित होवें अतः वे उपस्थित हुए भी लेकिन वे नही जानते थे कि वे अम्बिकापुर पुलिस के पास नही बल्कि साक्षात यमराज के पास उपस्थित हुए हैं… चश्मदीद गवाहों के बयान से पता चला कि दिन से लेकर रात तक पारी बदल बदल कर पुलिस वालों ने इतना मारा- इतना मारा कि दोनों के पैर के तलुये नीले पड़ गए अगले दिन पंकज बेक की लाश साइबर सेल थाने के बगल में स्थित एक निजी अस्पताल के प्रांगण में बैठी अवस्था में मिली और पानी का एक पाइप फंदे के रूप में गले में बंधा अस्पताल के ही विंडो कूलर से फंसा हुआ मिला था।

मेरा क़ातिल ही मेरा मुन्सिफ़ है क्या मेरे हक़ में फैसला देगा” परिजनों के मुताबिक हत्या शामिल पुलिस कर्मी ही शव का पंचनामा किये.

मौका- ए -वारदात पर पुलिस को छोड़, डेड बॉडी को देखने वाले हर चश्मदीद के मुंह पर एक ही बात थी कि घटना आत्महत्या का नही है, शक़ के पर्याप्त एवं ठोस कारण मौजूद थे जिन्हें समझने के लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नही थी, मौका-ए- वारदात पर 9 फीट ऊपर कूलर तक पहुंचने के लिए ना तो कोई सीढ़ी थी ना अन्य कोई माध्यम, जिस पाइप से गर्दन से बंधी लाश मिली थी उसका दूसरा सीरा ऊपर कूलर से बंधा तक नही था जो 5 फीट 8 इंच ऊंचाई के एक 28 वर्ष के युवक की बॉडी का वजन सह सके, पूरे बदन पर जगह जगह चोट के निशान जो खुद दास्तां ब्यान कर रहे थे, बाउजूद इनसब के पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारी मृतक के पिता से ही उसके पुत्र के डेड बॉडी को इस तरह उठवाकर ऑटोप्सी एवं पंचनामा कर रहे थे जैसे किसी का मवेशी मरा हो और नगरपालिका की टीम आयी हो, ऑटोस्पी वीडियो को देखने पर समझा जा सकता है कि किस प्रकार वर्ग एक मजिस्ट्रेट, एसडीएम अम्बिकापुर अजय त्रिपाठी जैसे सक्षम अधिकारीयों की मौजूदगी में एफएसएल क्राइम सीन के प्रभारी मृतक पंकज बेक के पिता से दुर्व्यवहार कर रहे हैं “मेरा क़ातिल ही मेरा मुन्सिफ़ है क्या मेरे हक़ में फैसला देगा” विडम्बना देखिये जिन पुलिस वालों ने बारी बारी से रात को थर्ड डिग्री उसे टॉर्चर किया था वही लोग खुद उसकी लाश का पंचनामा करते सुबह वीडियो में दिखाई दे रहे हैं।

विपक्ष में बैठी भाजपा ने कमेटी बनाकर जाँच किया ,जाँच में भी हत्त्या का मामला बताया.

अन्य कस्टोडियल डेथ की तरह इसमें भी शुरू हुआ भ्रष्ट और सड़ चुके सिस्टम का गन्दा खेल, घटना दिवस को पूरे शहर से लेकर मृतक के पैतृक गांव को पुलिस छवानी में तब्दील कर दिया जाता है, आनन-फानन में पोस्टमार्टम करवाकर खुद लकड़ी लाकर अंतिम संस्कार फटाफट करवाने के लिए पुलिस मृतक के परिजनों पर दबाव बनाती है, सूत्र बताते हैं कि पोस्टमार्टम के रिपोर्ट को अपनी मर्जी से बनवाने एवं पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने में देर करने के लिए डॉक्टरों की टीम पर दबाव बनाया जाता है , गिने चुने जो अखबार सवाल उठा रहे थे उन्हें लालच देकर या डराकर शांत कराने का प्रयास किया जाता है, खुद पुलिस अधीक्षक के द्वारा वरिष्ठ पत्रकारों को बुला कर दबाव बनाया जाता है, स्थानीय विपक्षी दल के नेताओं द्वारा चक्का जाम किया जाता है पूर्व गृह मंत्री के नेतृत्व में जांच कमेटी गठित कर साक्षियों के ब्यान एवं घटनास्थल का मुआयना कर विपक्ष के कमेटी द्वारा जो रिपोर्ट दी जाती है उसमें प्रथम दृष्टया हत्या का मामला बताया जाता है।

मृतक की पत्नी को पति के पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने पुलिस अधीक्षक ने आरटीआई लगाने कहा और दो माह तक घुमाया.

पीड़िता रानू बेक को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बहुत कठनाई से धक्के खाने के बाद दो बार आईटीआई लगाने पर लगभग 2 महीने बाद मिलती है, मजिस्ट्रियल जांच की रिपोर्ट भी अखबारों में प्रकाशित होती है जिसमें मौत कारण फांसी बताया जाता है फिर क्या था अब तो अख़बारों की हेडलाइन बदल जाती है पोस्टमार्टम के रिपोर्ट के आधार पर सब तरफ आत्महत्या की खबरें फैल जाती हैं, मृतक की पत्नी रानू बेक को सामाजिक तानों का शिकार होना पड़ता है सड़े हुए सिस्टम से तंग आकर पीड़िता रानू बेक लिखित आवेदन देकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा खोजी पत्रकारों से इंसाफ की गुहार लगाती है फिर शुरू होता है जंग, सर्वशक्तिमान सत्ता और आम आदमी के बीच।

पुलिसकर्मियों द्वारा सोशल मीडिया में पीड़िता के पक्ष में आवाज उठाने वाले पत्रकारों को धमकी

पुलिसकर्मियों एवं उनके समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया में पीड़िता के पक्ष में आवाज उठाने वाले पत्रकारों एवं समाजिक कार्यकताओं को सार्वजनिक एवं फोन पर धमकियां दी जाती हैं, शिकायत करने पर पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी भी चुप्पी साध लेता है और पीड़िता को कार्यालय के चक्कर कटवाया जाता है, वह जिला कलेक्टर से लेकर प्रधानमंत्री तक, मानवाधिकार से लेकर अनुसूचित जनजाति आयोग तक शिकायत करती है, लंबे संघर्ष के बाद अंततः मात्र 5 आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर लिया जाता है पुलिस जानबूझकर आईपीसी 306 एवं 34 के तहत आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण का मामला दर्ज करती है, अब पुलिस पक्ष की कहानी ही ज्यादातर अखबारों में प्रकाशित होती है कि मृतक पंकज बेक ने पुलिस की अभिरक्षा से भागकर आत्महत्या की है जिससे कि आरोपियों को हत्या के मामले से बचाया जा सके।

पंकज बेक की हत्त्या हुयी या आत्महत्त्या ? इन गंभीर सवालों के जवाब पुलिस के पास नहीं

पीड़िता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार जंगी संघर्ष करते हैं और गम्भीर तकनीकी सवाल उठाते हैं जिसका जवाब किसी के पास नही था कि जब मृतक पंकज बेक के पैर के तलुए में गहरी चोट के निशान पोस्टमार्टम में उल्लेखित हैं तो वह भाग कैसे सकता था?

इतना ही नही 4 दीवाल जिनमें एक 12 फीट तक कि ऊंचाई का दीवाल था उसे वह कैसे लांघ सकता था जबकि उसके पैर में कंटयूजन था?

पीड़िता आला अधिकारियों से लिखित सवाल करती है कि आखिर मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच में शरीर के चोटों का जिक्र क्यों नही किया?

मजिस्ट्रियल जांच में मुख्य आरोपी का बयान क्यों नही लिया गया?

पीड़िता को जांच में क्यों नही बुलाया गया ?

पीड़िता मांग करती है कि आरोपियों के विरुद्ध एस.सी./एस. टी. प्रताड़ना अधिनियम के तहत हत्या का अपराध पंजीबद्ध किया जावे, लेकिन भ्रष्टाचार और भर्राशाही का घुन पुलिस विभाग के जड़ों तक इस प्रकार घुस चुका है कि इंसाफ की तनिक उम्मीद भी बेमानी है, नतीजा पोस्टमार्टम के रिपोर्ट में चोट के प्रकार को फर्जी तरीके से बदलकर षड्यंत्रपूर्वक एवं विभाग की मिलीभगत से फोरेंसिक एक्सपर्ट से आत्महत्या की रिपोर्ट बनवा लिया जाता है आरोपीगण सरे आम घूमते रहते हैं लेकिन किसी की गिरफ्तारी नही होती है।

इस बीच रानू बेक कई बार शिकायत करती है कि आखिर एफआईआर दर्ज होने के बाद भी आरोपियों की गिरफ्तारी क्यों नही की जा रही है?

विधानसभा में जांच कमेटी गठित करने का निर्णय पर कोरोना और लॉक डाउन के कारण सब ठंडे बस्ते में.

आरोपीगण बाकायदा पार्टी मनाते हुए अपने फोटो, सोशल मीडिया में डाल रहे हैं, शायरी कर रहे हैं पीड़ित पक्ष को धमका रहे हैं परन्तु सुनने वाला कोई नही, आरोपियों का मनोबल आखिर क्यों ना बढे ! मामला गरमाता है और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह विधानसभा में प्रश्न उठाते हैं, हंगामा होता है, विधानसभा, एक जांच कमेटी गठित करने का निर्णय लेती है लेकिन कोरोना संक्रमण के लॉक डाउन के कारण सब ठंडे बस्ते में चला जाता है।

लॉक डाउन के इस अंतराल के बाद आरोपियों को बचाने में फिर भ्रष्ट पुलिस अधिकारी जुट गये

लॉक डाउन के इस अंतराल के बाद अब विभागीय जांच के नाम पर मिलीभगत से आरोपियों को बचाने में फिर कतिपय भ्रष्ट अधिकारी जुट गये हैं जैसे ही रानू बेक ने विभागीय जांच कमेटी में वर्तमान यातायात प्रभारी एवं पूर्व थाना प्रभारी दिलबाग सिंह का नाम पढ़ा तो उसने आईजी रतन लाल डांगी से लिखित आवेदन देकर इंसाफ की पुनः गुहार लगाई है, पीड़िता ने बताया कि वैसे तो उनका पुलिस विभाग से भरोसा उठ चुका है परन्तु अखबारों में और सोशल मीडिया में सूबे में पदस्थ वर्तमान आईजी के लेख पढ़कर थोड़ी सी आशा की किरण उन्हें जरूर दिखाई दी है।

पीड़िता रानू बेक ने आईजी श्री डांगी से अत्यंत मार्मिक अपील की है कि वे निष्पक्षता का ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण पेश करें कि गरीबों और निर्बल लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास कायम हो एवं अपराधी किस्म के पुलिस वालों में भय उतपन्न हो।

उम्मीद है कि सूबे के रेंज में पदस्थ आईजी रतनलाल डांगी के सोशल मीडिया एवं अखबारों के लेख और विचारों की झलक उनकी कार्यशैली में भी देखने को मिलेगी।

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