
राजनीतिक फिंजा कांग्रेस – भाजपा घमासान शुरू हम भारी या तुम भारी…. कौन किसके लिए खोद रहा खंदक सुलगने लगे मुद्दे …. ये भी चल पड़ी राजनीति की राह … कौन है कांग्रेस का सर्वमान्य नेता …
रायगढ़ ।
जैसे जैसे चुनावी तारीख घटते क्रम में चल रही है राजनीतिक दलों का आपसी दंगल शुरू हो गया है। शुरुवात हो चुकी है शहर बैनर पोस्टर होड़ चल पड़ा है। राजनीतिक जुगलबंदी शुरू हो गई है वहीं दूसरी तरफ आपसी गुटबाजी तो कहीं एकजुटता का पाठ पढ़ते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में जहां गुटबाजी ज्यादा हावी है वही प्रत्याशी को लेकर जमकर चर्चाएं हो रही है। कांग्रेस में इन दिनों सबसे ज्यादा सक्रिय दिखाने वाले नेता बनने की जुगत में लग गए हैं। और स्वयं को भावी एमएलए भी मानकर चलने लग गए जो उनकी क्रियाकलाप से जाहिर होने लगी है और ये वर्तमान विधायक प्रकाश नायक के लिए स्वयं को चुनौती देना प्रतीत करवा रहे हैं। लेकिन क्या इनकी वो साख है जो इन्हें नेताओं की गिनती में ला सके।
इन दिनों रायगढ़ में मुद्दे हावी हो रहे हैं। प्रदूषण पर अब तक खामोश रहने वाली सांसद गोमती साय ने इस मुद्दे पर बोल कर राजनीतिक फिजा को गर्म कर दिया और उस पर सवाल भी उठने लग गए हैं आखिर अब तक इस भयावह हो चले पर्यावरण प्रदूषण मुद्दे पर खामोश क्यों रहीं। जब भयावह प्रदूषण और एनजीटी की रिपोर्ट के विपरीत जन सुनवाइयों का दौर चल रहा था उस समय उनकी मौन सहमति क्यों थी। क्या उन दिनों जिले का पर्यावरण प्रदूषण अच्छा लग रहा था और अब खराब लगने लग गया। जिस तरह से अचानक से रायगढ़ सांसद ने ऐसे समय में पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा उठा दिया है इससे अब ऐसा प्रतीत होने लगा है की रायगढ़ जिले के पर्यावरण प्रदूषण भी अब राजनीति की राह पर चल पड़ा है और पर्यावरण प्रदूषण महज एक मात्र राजनीतिक मुद्दा बन कर न रह जाए।
भाजपा और कांग्रेस में पोस्टर वॉर चल पड़ा है दोनों एक दूसरे से क्षेत्र में विकास कार्यों का ब्योरा मांगने का सिलसिला चल पड़ा है। एक दूसरे से विकास कार्यों का लेखा जोखा मांग रहे है आरोप प्रत्यारोप जड़ रहे हैं।
प्रत्याशी बदलने को लेकर चल पड़ी चर्चाओं के दौर में कई उम्मीद में बड़े जोर शोर से स्वयं को प्रमोट करने में लग गए है। कांग्रेस से अगर बात करें तो भावी एमएलए के तौर पर उद्योगपति स्वयं सबसे आगे स्वयं को प्रमोट करने में लगे हुए हैं। भले ही उनकी उनका नाम टीकिटार्थिओं में हो या न हो, लेकिन लेकिन स्वयं को बेहतर सेवा भावी नेता के रूप में परोसने में कमी नहीं कर रहे हैं और यह बहुत ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं है। लोग चेहरे के ऊपर के मुखौटे को समझने लग गए हैं। कांग्रेस में वासुदेव यादव की प्रबल दावेदारी होती है अनिल अग्रवाल चीकू का नाम भी सामने आता है लेकिन नाम चलने वाले प्रत्याशियों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस में इस बार चुनाव सिर्फ कका के चेहरे पर लड़ी जाएगी इतना तय है कांग्रेस में प्रत्याशी कोई भी हो। रायगढ़ में अब तक प्रकाश नायक के विकल्प के तौर पर कोई नहीं है।
भाजपा में अगर विजय अग्रवाल के अलावा वर्तमान भाजपा जिला अध्यक्ष उमेश अग्रवाल, युवा चर्चित भाजपा काम को महत्व देने वाले विकास केडिया, सशक्त भाजपा नेता गुरपाल भल्ला का नाम लिया जाता है। राजनीति चश्मे को हटा कर यदि देखा जाए तो वर्तमान में रायगढ़ भाजपा का कोई सशक्त नेता है तो विजय अग्रवाल के बाद गुरपाल भल्ला वो नाम है, जिसने पार्टी के लिए अपनी पूरी तल्लीनता के साथ समर्पण देने वालों में शामिल है जिनका नाम फल की चिंता करने वालों में गिनती नहीं आती है। यही वजह है की इनका नाम हर चुनाव में सशक्ता के साथ लिया जाता है। यूं तो भाजपा में कई और ऐसे हैं जो भावी एमएलए के तौर पर स्वयं को आंकने में कमी नहीं रखते हैं। गौतम अग्रवाल का भी नाम लिया जाता है लेकिन गौतम अग्रवाल अपने पिता की राजनीति से बहुत कुछ सीखा समझा यही वजह है की वो वर्तमान को देखते हुए स्वयं को भावी एमएलए के तौर पर प्रजेंट करने में विश्वास नहीं रखते हैं और अभी अपने आप को मांजने में लगे हुए हैं राजनीतिक चश्मे से चाहे उनके बारे में कुछ भी चर्चा करें । नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष पूनम दिबेश सोलंकी भी चुनावी रेस की दौड़ में गिनी जाती है अगर विजय अग्रवाल न हो तब की स्थिति में इनकी दौड़ टिकट तक पहुंचना माना जाता है। इसके अलावा तमनार से बिलांग करने वाले रत्थु गुप्ता, विलास गुप्ता सहित पूर्वांचल के कई भाजपा नेता भी भावी एमएलए की दौड़ में गिने जाते हैं। भाजपा जिला अध्यक्ष उमेश अग्रवाल भी स्वयं को भावी एमएलए के तौर पर आंकने से परहेज नहीं करते हैं। रायगढ़ से भाजपा को टिकिट यदि विजय अग्रवाल को मिलती है जिसकी चर्चा सर्वाधिक हो रही है ऐसी स्थिति में अगर भाजपा में गुटबाजी हावी हुई तो कांग्रेस के लिए वाकोवर मानी जायेगी और ऐसा अक्सर होता भी है। कुल मिलाकर प्रकाश नायक के सितारे अभी बुलंदी में है।
भले ही रायगढ़ विधायक पूरे साल भर माला पहनने और भाषण प्रतियोगिता में ही व्यस्त रहे। यही वजह है कि राजनीतिक रिपोर्ट बेहद कमजोर दर्ज की गई है। और चेहरे बदलने वाले सूची में प्रकाश नायक का नाम भी लिया जाता है पर अंत में प्रकाश नायक ही चेहरे के रूप में नजर आएं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। और फिर से प्रकाश नायक, नायक बनकर उभर जाएं तो बड़ी बात नहीं होगी। इसके पीछे का तर्क ये है की पूरे पांच सालो में कांग्रेस का कोई नेता कद्दावर कांग्रेसी नेता के रूप में छवि नहीं बना पाया। कांग्रेस में यूं तो कई गुटों में बंटकर राजनीतिक गुणाभाग कर स्वयं को भी श्रेष्ठ बताने में जुटे हैं। और ये प्रकाश नायक के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम भी नहीं हैं और उनकी छवि भी ऐसी बनी है की आम पब्लिक उन्हें सर्वमान्य कांग्रेसी नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही है। रायगढ़ में वर्तमान में ऐसा कोई धाकड़ नेता नहीं है जिसे सर्वमान्य स्थापित नेता के रूप में हो ऐसा कोई चेहरा नहीं है इसलिए अंत में प्रकाश नायक ही विकल्प बनकर उभर सकते हैं। कांग्रेस में नगर निगम के सभापति जयंत ठेठवार एक सशक्त नेता के रूप में उभर सकते हैं लेकिन वे स्वयं को निगम की राजनीत से बाहर नहीं ला पा रहे हैं। कहा जाता है की यदि जयंत ठेठवर यदि निगम की राजनीति से ऊपर उठकर काम करें तो उनकी छवि ऐसी है वे कांग्रेस में एक सर्वमान्य नेता के रूप में सामने आ सकते हैं लेकिन वे ऐसा करने से हमेशा परहेज करते नजर आते हैं। ऐसे में कांग्रेस की राजनीत में कुछ चंद के बीच धुरी बनकर घूम रही है।