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जब पांच गांव भी न दोगे तो कुरुक्षेत्र तो सजेगा ही ! सन्दर्भ-कोरिया विभाजन..महेंद्र दुबे की कलम से

महेंद्र दुबे ( अधिवक्ता हाईकोर्ट )

दृष्टिविहीन राजा धृतराष्ट्र के पुत्रमोह की कीमत तो कुरुवंश को ही चुकानी पड़ती है! राजसभा में कुरुवंश को सर्वनाश से बचाने भगवान वसुदेव कृष्ण स्वयं उपस्थित हुए थे! उन्होंने दुर्योधन को उसका अधिकार न होते हुए भी सारा हस्तिनापुर दे दिया था और पांडवों के याचक बन कर महज पांच गांव ही तो मांगे थे मगर बुद्धिविहीन धृतराष्ट्र और कुलनाशक दुर्योधन वो भी न दे सके! बस उसी दिन यशोदानन्दन की हाजिरी में, धृतराष्ट्र के पुत्रमोही अंधत्व और अन्यायी दुर्योधन की धृष्टता ने कुरुवंश का विनाश लिख दिया था! उसी दिन ही आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य और आचार्य विदुर ने प्रभु श्रीकृष्ण के विश्वरूप में कुरुक्षेत्र के अवश्वसम्भावी धर्मयुद्ध में दुर्योधन की पराजय का दर्शन कर लिया था! उसी दिन ही महाभारत की पटकथा लिखी गयी थी और उसी दिन ही युधिष्ठिर के राज्यभिषेक का अध्याय लिखा गया था !

जिला गठन की घोषणा के बाद प्रारंभ हुआ विरोध कोरिया जिले के विभाजन के विरोध से निकल कर ब्लाक खड़गवां को कोरिया जिले के साथ रखने तक सीमित हो गया! यूं समझिये कि सम्पूर्ण हस्तिनापुर से दावा छोड़ दिया गया और “पांच गांव” अर्थात मात्र खड़गवां ही दे देने पर अपनी सन्तुष्टि का एलान भी कर दिया गया! इधर कोरिया बचाव मंच क्रमिक धरना चलता रहा और उधर बैकुंठपुर विधायक और संसदीय सचिव श्रीमती अम्बिका सिंहदेव अपनी ही सरकार के फैसले के खिलाफ कुछ करने की स्थिति में नहीं दिख रही थी! विधायक महोदय, बैकुंठपुर और चर्चा नगरीय निकायों की घोषणा होने तक “कोरिया के साथ अन्याय नहीं होगा”, “मुख्यमंत्री को कोरिया जिले की भावना से अवगत करा दिया गया” जैसे कुछ जुमले बोल कर सरकार के फैसले का सीधा विरोध करने से बचती रही! हां सरकारी आयोजन में शरीक नहीं होने की घोषणा करके, उन्होंने प्रतीकात्मक तौर पर ही सही मगर विभाजन के फैसले के प्रति अपना रोष व्यक्त जरूर किया था, ये अलग बात है कि वो अपनी इस घोषणा पर भी कायम न रह सकी और बाद में हुए सरकारी आयोजनों में शामिल होती रही! यहां महाभारत के दिलचस्प महारथी कर्ण को याद करना जरूरी है जो उच्चकुलीन था, संस्कारवान था और न्यायप्रिय भी था, मगर कभी जीवन की किसी विपरीत परिस्थिति में उसने वचन देकर स्वयं को कपटी और कुपात्र सम्राट दुर्योधन की राजसभा का बंधक बना लिया था! राजसत्ता को दिए गए उसी वचन के दासत्व ने दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण को “पांच गांव” देने के श्रीकृष्ण के प्रस्ताव पर खामोश रहने को विवश किया था! लिखने जरूरत नहीं कि उस महारथी को इस निष्ठा की क्या कीमत देनी पड़ी थी! क्या पता कर्ण की ही तरह विधायक महोदया को भी सत्ता की किसी वचनबद्धता ने कोरिया को पांच गांव अर्थात “खड़गवां” के प्रस्ताव/मांग पर मुखर होने से रोक रखा हो!

कोरिया बचाव मंच का आंदोलन ऊपरी तौर पर सभी पार्टियों द्वारा चलाया गया, जरूर लगता था मगर सत्ताधारी कांग्रेस की भागीदारी महज औपचारिक या नैतिक समर्थन से ज्यादा कुछ नहीं थी! बीससाला कांग्रेसी पट्टे पर नियुक्त हुए कोरिया जिला अध्यक्ष नजीर अजहर जिले विभाजन के विरोध में भाजपा नेताओं के साथ घूम घूम कर शहर बंद करवाते जरूर दिखते थे मगर स्थानीय चुनाव में नामांकन भरने की तिथि आते आते जिलाध्यक्ष सहित ज्यादातर कांग्रेसी पूरी तरह चुनावी मोड में आ गये! पूर्व में स्थानीय चुनाव के बहिष्कार का ढंका पीट चुकी कांग्रेस और भाजपा में भाजपा ने कांग्रेस पर धोखे का आरोप मढ़ कर जबकि कांग्रेस खड़गवां की बात सुने जाने के मुख्यमंत्री के कथित आश्वासन के रास्ते नगरीय निकाय बैकुंठपुर और चर्चा में अपने अपने अध्यक्ष और पार्षद बनाने दौड़ गयी! स्थानीय चुनाव के दौरान नगरीय निकाय मंत्री शिव डहरिया, पंचायत और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव भी चुनावी सभाओं और दीगर फोरम में खड़गवां की जनभावना के अनुरूप फैसला किये जाने का आश्वासन दोहराते रहे! चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से खड़गवां का आश्वासन दिया जाना कोई अतिरिक्त बात नहीं थी क्योंकि चुनाव के पूर्व स्वयं विधायक अम्बिका सिंहदेव कोरिया बचाव मंच के पदाधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री से मिली थी और ऐसा ही आश्वासन उन्होंने मुख्यमंत्री के हवाले से भी दिया था!

मुख्यमंत्री से लेकर विधायक तक जिस आश्वासन की जमीन पर बैकुंठपुर और चर्चा में निकाय पार्षद और निकाय अध्यक्ष की फसल उगाने निकले थे, उसकी हकीकत से भी रूबरू हो लीजिये! 15 अगस्त 2021 को मुख्यमंत्री अपने संदेश में मनेन्द्रगढ़ सहित चार नए जिले के गठन की घोषणा करते है, 18 अगस्त 2021 को शासन स्तर पर कलेक्टर कोरिया से नए जिले का प्रस्ताव मंगाया जाता है और 11 नवम्बर 2021 को अधिसूचना जारी करके प्रस्तावित नए जिले “एमसीबी” में खड़गवां ब्लाक को शामिल करते हुए आपत्ति और दावा मंगाया जाता है! आश्वासनों की थेथरई करते मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक में से कोई ये नहीं बताता की खड़गवां के लोगों की भावनाएं जानने का तरीका क्या होगा? क्या जनमत संग्रह कराया जायेगा? या खड़गवां की ग्राम सभाओं से प्रस्ताव मंगाया जायेगा? या कोई और तरीका होगा? बस “भावनाओं का ख्याल रखा जायेगा” के हवाहवाई झूले में आश्ववासनों का झुनझुना लटका कर सत्तापक्ष निकाय चुनाव से फारिग हो चुका है। अगर इनके आश्वासनों में थोड़ी भी ईमानदारी और सत्यता होती तो संशोधित अधिसूचना जारी करके खड़गवां को विभाजन प्रक्रिया से अलग कर दिया गया होता और खड़गवां के सम्बंध कथित जनभावना के आंकलन के बाद फैसला अलग से किया जाता! जाहिर ऐसा हुआ नहीं इसका मतलब इससे ज्यादा कुछ भी नहीं कि कांग्रेस सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार नहीं है!

सरकार का अड़ियलपन तो समझ में आता है मगर खड़गवां के मुद्दे पर बैकुंठपुर विधायक का मुखर नहीं होना सवाल जरूर खड़ा करता है! सिंहदेव राजपरिवार की रियासत “कोरिया” का नाम बैकुंठपुर से लगभग 25 किमी दूर खड़गवां ब्लाक में स्थित पुरातनकालीन पहाड़ “कोडयागढ़” से निकला है! खड़गवां के कोरिया जिले से अलग होने का अर्थ कोरिया का जन्मना नामधारी विरासत से वंचित होना है! विधायक महोदय की हर दूसरी बात, कोरिया कुमार के सपने से शुरू होती है मगर उन्ही के कोरिया राजपरिवार के विरासत नाम स्थल को रियासत से काटे जाने पर वो मुखर नहीं होती है! सवाल बड़ा है और जवाब भी ऊंचा, स्पष्ट और पारदर्शी होना चाहिए था मगर उधर से खामोशी के अलावा कुछ नहीं है! हस्तिनापुर राजसभा में कर्ण सब कुछ अनैतिक, अन्यायकारी और विनाशकारी होते देखकर भी मौन रहा जबकि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण प्रस्ताव रख रहे थे, यहां कृष्ण जरूर नहीं है मगर राजसभा है, राजसत्ता भी है और प्रस्ताव भी है! पूरी हस्तिनापुर भी तो नहीं मांगा रहा है, मांग रहे है सिर्फ पांच गांव-खड़गवां! कुरुक्षेत्र तो पौने दो साल बाद तो सजना ही है हम सबको सिर्फ इतना ही तय करना की 2023 के चुनावी कुरुक्षेत्र में धर्म अर्थात प्रस्ताव के पक्ष में खड़ा होना है या नहीं! हम तय कुछ भी करे मगर महाभारत हर दौर में होती है, दुर्योधन का अंहकार हर दौर में पराजित होता है, कर्ण का मौन हर दौर में पश्चाताप को विवश होता है, राजसभा को अपने अन्यायी कृत्यों का परिणाम भी हर दौर में भोगना पड़ता है और युधिष्ठिर का सत्य देर से सही मगर अन्ततः हर दौर में जीतता है! कोरिया जिले की आगामी महाभारत के कुरुक्षेत्र बैकुंठपुर में ये पांच गांव रूपी खड़गवां किसकी किसकी राजनैतिक बलि लेता है, इंतजार कीजिये! अंत में बिना किसी पूर्वाग्रह और दुर्भावना के दाग देहलवी का एक शेर अर्ज है….

खूब पर्दा है, कि चिलमन से लगे बैठे हैं..
साफ छुपते भी नही, सामने आते भी नहीं !

 

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