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फील कोल वाशरी की चोरी छिपे जनसुनवाई की तैयारी …. हाथी प्रभावित क्षेत्र को छुपा कर तैयार हुई दस्तावेज … पर्यावरण व फारेस्ट विभाग ने साधा मौन ……अंधाधुंध औद्योगिकरण का खामियाजा …

 

रायगढ़।
जिले के घरघोड़ा ब्लॉक के नवापारा टेंडा में फील कोल नाम की एक कोल वाशरी की जनसुनवाई होने की खबर सुर्खियां बटोर रही है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार फील कोल कंपनी की कोल वाशरी के लिए 21 अप्रैल को जन सुनवाई रखी गई है। खास बात ये है कि इसके लिए कब अधिसूचना का प्रकाशन कराया गया किस अखबार में कराया गया इसकी किसी को भनक तक नहीं है। सूत्रों की माने तो इस कंपनी की एक कोल वाशरी पहले से जंगल के बीच संचालित है और वह भी अवैध तरीके से और तो और यह पूरा क्षेत्र हाथी प्रभावित एरिया में आता है।

फील कोल वाशरी कि जनसुनवाई को इतना गुप्त रखा गया है कि इसकी भनक अब तक प्रभावित ग्राम पंचायतों तक को नहीं है। बताया जा रहा कि विरोध न हो इसलिए पूरी प्रक्रिया चोरी-छिपे सम्पन्न कराई जा रही है। जनसुनवाई में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न न हो इसके लिए फील कोल वाशरी और प्रशासन के बीच मजबूत सांठ गाठ हुवा है।
औद्योगिक जिला रायगढ़ में उद्योगपति अपने प्लांट को विस्तार करने के लिए कानूनी प्रक्रिया को किस तरह से कचरे की टोकरी में डालना है इसे भलि भांति सूझबूझ के साथ निपटाते हैं। किसी भी प्लांट के विस्तार या नई स्थापना के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की आवश्यकता होती है जिसके लिए जनसुनवाई कराया जाता है लेकिन कुछ ऐसे उद्योग भी हैं जो जनसुनवाई की महत्वपूर्ण औपचारिकताओं को भी ना पूरा कर अधिकारियों से मिलीभगत करके जनसुनवाई को पूरा करना चाहते हैं । मामला घरघोड़ा के नवापारा टेंडा स्थित फील कोल बेनिफिकेशन का है इस कंपनी की गांव में कोल वाशरी पहले से है अब एक और कोल वाशरी लगाने के लिए जनसुनवाई 21 अप्रैल को रखी गई है। जन सुनवाई कब होना है इसके लिए एक अधिसूचना अखबारों के माध्यम से जारी की जाती है लेकिन इस कंपनी ने न तो किसी तरह का विज्ञापन जारी किया और ना ही प्रभावित गांव में सूचना दी है।


सूत्रों की माने बीच जंगल में इस कंपनी की कोल वासरी है जो अवैध तरीके से संचालित हो रही है। भारी प्रदूषण से पहले ही ग्रामीण हलाकान है वहीं यह पूरा क्षेत्र हाथी प्रभावित क्षेत्र में आता है। जिस जगह पर कोल वाशरी लगाने के लिए जन सुनवाई रखी गई है वह एरिया एलीफेंट कारीडोर के लिए चिन्हांकित है ऐसा नहीं है इसकी जानकारी वन विभाग, पर्यावरण विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों को नहीं है बावजूद इसके अधिकारी कंपनी के सामने नतमस्तक दिख रहे हैं। उद्योग लगे भले ही

ग्रामीण पर्यावरण प्रदूषण की मार झेले जगंल नष्ट हो वन्य जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़े। अंधाधुंध औद्योगिक रण से वन्य जीव ख़त्म हो रहे है वनों का आकार सिमटने से वन्य जीव और मानव के बीच द्वंद बढ़ता जा रहा है जिसका खामियाजा हम आये दिन देखते हैं।

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