
एसईसीएल की पेलमा ओपन कोयला खदान की वन भूमि व मोरगा पहाड़ बचाने की जद्दोजहद ….. दलाल नुमा लोगों के आगे हारते गरीब आदिवासी …..आदिवासी परंपरा, प्राचीन देव स्थल व जैव विविधता के संरक्षण के लिए
रायगढ़।
जिले के तमनार ब्लॉक में एसईसीएल पेलमा ओपन कोयला खदान के लिए सरकारी प्रक्रिया जहां एक तरफ जोरों पर है वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदाय जल जंगल जमीन सहित प्राचीन देव स्थल को बचाने व अपनी परम्परागत आजीविका को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
एसईसीएल के पेलमा ओपन कोयला खदान के लिए 8 गांव की निजी राजस्व, वन व आरक्षित वन की 2035.935 हेक्टेयर भूमि जाने वाली है। यानी लगभग 5 हजार एकड़ से अधिक भूमि जो अब तक हराभरा और वन्यजीवों सहित जैव विविधता से भरा पड़ा है दूर दूर तक वीरान हो जाएगा जहां धूल गुबार और कोयले का डस्ट नजर आएगा। खास बात ये है कि इसमें रिजर्व फारेस्ट की 19 हेक्टयर यानि करीब 47 एकड़ में फैला रिजर्व फारेस्ट का भी समूल नाश हो जाएगा। इतना ही नहीं एसईसीएल के प्रस्तावित ओपन माइंस के दायरे में आने वाले वन क्षेत्र में वन्य जीवों की बहुलता है। जिसमें भालू चीतल सांभर सहित कई प्रकार के वन्य जीवों का वास स्थल भी है।
इसी क्षेत्र में आदिवासियों की प्राचीन परंपरागत देव स्थल मोगरा पाठ भी स्थित है जिसे जिलेवासी वाकिफ भी है मोगरा पहाड़ व आसपास के वन को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासी लंबे समय से जद्दोजहद भी कर रहे हैं। इस दायरे में वन अधिकार अधिनियम के तहत 318.445 हेक्टयर वन भूमि के लिए जिला प्रशासन द्वारा वन अधिकार अधिनयम के तहत ग्राम सभा से एनओसी की मांग की गई थी जिस पर ग्राम सभा मे वन भूमि को कोयला खदान व अन्य निजी प्रयोजन के लिए वन भूमि को देने से साफ इंकार कर दिया है।
जानकारी के मुताबिक जरहिडीह जिसमे मोगरा पहाड़ भी आता है यह जंगल वन्य जीवों के साथ जैव विविधता से भरा पड़ा है और यही एक प्राचीन तालाब के साथ आदिवासियों की प्राचीन देव स्थल भी है। जिसे लेकर आपत्ति दर्ज कराई गई है इस क्षेत्र के लिए डीएलसी में आवेदन भी लंबित है।
2035.935 हेक्टयर यानि 5 हजार एकड़ क्षेत्र से एसईसीएल हर साल 15 एमटी कोयला हर साल निकलेगा। इस लिहाज से 5 हजार एकड़ जहां पर आज हरियाली है वह पूरी तरह से धूल गुबार व कोयला कोयला होना तय है। अब सवाल यह भी है कि कोयला के लिए रिजर्व फारेस्ट को भी नहीं छोड़ा जा रहा है मोगरा पाठ जो ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर स्थित है उसका भी अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा।
सूत्रों की माने स्थानीय आदिवासी तो लड़ कर अपना अधिकार ले सकते है लेकिन लेकिन इसमें कुछ दबंग दलाल नुमा लोग हैं जो लंबे समय से आदिवासियों की लड़ाई में रंग में भंग डालने का काम करते है। गरीब आदिवासी वर्ग स्वयं के बूते जहां तक हो सकता है लड़ाई लड़ता है लेकिन दलाल नुमा लोगों के आगे वह बहुत ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता यही वजह है कि तमनार कोल प्रभावित गांव में आज भी कई आदिवासी परिवार अपने हक की लड़ाई लड़ते थक चुके हैं लेकिन अब तक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।

ग्राम सभा करते ग्रामीण