♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

रहने को घर नहीं.. सोने को बिस्तर नहीं.. अपना तो खुदा है रखवाला.. परशुराम को घर की छत और ना ही बिस्तर है मयस्सर..

झोपड़ी के अंदर मचान बनाकर रहने को मजबूर परशुराम..
पिछले साल ही झोपड़ी के अंदर काटा था उसे जहरीले सांप ने…
अनूप बड़ेरिया
रहने को घर नहीं.. सोने को बिस्तर नहीं.. अपना तो खुदा है रखवाला.. 1990 के दशक की फिल्म सड़क का यह गीत कोरिया जिले के विकासखंड खड़गवां के जनकपुर पारा निवासी परशुराम के लिए अक्षरसः सही साबित हो रहा है। नाम तो इसका परशुराम है जो कि ब्राह्मणों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। लेकिन यह परशुराम इतनी दयनीय स्थिति में है कि इसके पास ना तो रहने के लिए घर है ना सोने के लिए  बिस्तर है, केवल सरकारी राशन के भरोसे इसकी जिंदगी चल रही है।
ग्राम पंचायत खंडवा के जनकपुर पारा में परशुराम अपने परिवार के साथ पिछले कई वर्षों से झोपड़ी बनाकर रह रहा है इसकी पत्नी की उम्र 22 वर्ष है लेकिन वह मूक बधिर दिव्यांग है। परशुराम के तीन बच्चे हैं। उसमें भी एक बच्चा इतना छोटा है कि वह मां की गोद में ही रहता है।
 विकासखंड  मुख्यालय खडगवां, ग्राम पंचायत खडगवां के जनकपुर पारा में परशुराम  अपने परिवार के साथ बिगत कई सालों से झोपड़ी बनाकर रह रहा है।
 गांव में परशुराम की नाले से लगी  हुआ 60 डेसिमल जमीन है और इस भीषण बारिश में वह अपने परिवार के साथ झोपड़ी मैं किसी तरह गुजर-बसर कर रहा है। लेकिन उसे रहने के लिए अभी तक एक छत भी मयस्सर नहीं हुई है।बारिश के पूर्व है जमीन पर बिछौना डालकर किसी प्रकार पूरा परिवार सो लेता था। लेकिन बारिश में पानी झोपड़ी के अंदर आ जाता है इसलिए उन्हें मजबूरी में मचान बनाकर रात गुजारनी पड़ती है।
 आपको बता दें कि ग्राम पंचायत खडगवां में प्रधानमंत्री मंत्री आवास योजना के तहत वर्ष 2016 -17 में 74 लोगों के नाम से आवास स्वीकृत हुए, वर्ष दो हजार 2018- 19 में 9 लोगों के नाम से, वर्ष 2019 -20 में 45 से 46 लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल चुका है, कुल  128 हितग्राहियों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल चुका है। मगर गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे परशुराम को अब तक प्रधानमंत्री आवास का लाभ नहीं मिल पाया है।
 1 वर्ष पूर्व भी जब परशुराम की कहानी मीडिया में आई थी तब ग्राम पंचायत की ओर से उसे 5 हजार की सहायता राशि से तिरपाल खरीद कर दिया गया था। मगर वह भी अब वह प्लास्टिक का तिरपाल भी एक साल में इतिहास के पन्नों में समा गया । बेचारा परशुराम प्लास्टिक के बोरे से जगह-जगह पर झोपड़ी को ढक कर किसी प्रकार गुजर बसर अपने परिवार के साथ कर रहा है। झोपड़ी के अंदर बांस एवं लकड़ी की मदद से खटिया नुमा मचान बनाया गया है।
इतना ही नहीं पिछले वर्ष परशुराम को झोपड़ी में घुस आए जहरीले सांप ने काट दिया था । खड़गवां हॉस्पिटल में भर्ती कराने के बाद उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया था। बारिश के इस मौसम में परिस्थिति को देखते हुए सरपंच-सचिव ने परशुराम को प्राथमिक शाला में रहने को कहा था मगर वहां के गुरुजी ने यह कहकर मना कर दिया कि बच्चे गंदगी करेंगे।
 परशुराम को सरकारी राशन बराबर मिल रहा है,।परशुराम का कहना है उसके नाम से आवास क्यों नहीं आ रहा है यह नहीं मालूम। परशुराम मजदूरी कर अपना जीवन यापन किसी प्रकार से कर रहा है, पर उसकी आमदनी इतनी नहीं है कि वह अपने लिए एक छत का इंतजाम कर सके।
अब उसकी याचक दृष्टि जिले के संवेदनशील और दयालु कलेक्टर डोमन सिंह पर टिकी हुई है।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close