
तमनार में 2 अक्टूबर को आयोजित होने वाले कोयला सत्याग्रह में फिर दहाड़ेंगे देश भर से आए दिग्गज सामाजिक कार्यकर्ता …. उमड़ेगी ग्रामीणों की फौज …देश हमारा…गांव हमारा… हवा हमारी … पानी हमारा …जमीन हमारी …कोयला हमारा से गूंजेगी
रायगढ़ ।
जिले के तमनार ब्लॉक में कोयला सत्याग्रह की तैयारी जोर शोर से चल रही है। तमनार ब्लॉक के लगभग 56 गांव के ग्रामीण अपनी जमीन अपना संसाधन के आधार पर साल 2010 से कोयला सत्याग्रह करते चले आ रहे हैं। और सत्याग्रह का दिन चुना है महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को। आज के दिन तमनार ब्लॉक में वृहद कोयला सत्याग्रह का आयोजन होता है। जिसमे देश भर के ख्याति प्राप्त समाजिक कार्यकर्ताओं का भी जमावड़ा होता है।
जिले के घरघोड़ा, धरमजयगढ़ तमनार ब्लॉक कोयला बाहुल्य क्षेत्रों में शामिल है। ग्रामीण पूर्व में कोयला खदान के लिए अपनी जमीन देने के बाद विकास रूपी विनाश का नमूना देख चुके हैं। ग्रामीणों को कोयला खदान से लाभ से ज्यादा नुकसान और क्षति का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण आदिवासियों जिनका जीवन ही प्राकृतिक संसाधनों के बीच जल जंगल पर निर्भर रहता है और यह कोयला खदान की वजह से आदिवासियों की पारंपरिक जीवन शैली पर संकट आ खड़ा हुआ और वे अपने मूल जड़ से दूर होते जा रहे हैं। जमीन के बदले मिली रकम चंद दिनों के मेहमान की तरह है जो कुछ दिनों में रफूचक्कर हो जाने वाला होता है। अब तक ग्रामीणों ने जिन खदानों के लिए जमीन दिया उसका खामियाजा सर्वाधिक आदिवासियों की जीवन शैली पर पड़ा। आदिवासियों को अपनी पारंपरिक जीवन शैली जल जंगल जमीन परंपरा से दूर होना पड़ा हरियाली की जगह काले डस्ट और धूल गुबार से सामना हुआ।जिसकी वजह से आज आदिवासी एकजुट होकर क्षेत्र और कोयला खदान न खुलने के लिए अपनी जमीन नहीं देना चाहते हैं।
अंचल के ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ताओं में राजेश त्रिपाठी और सविता रथ का ग्रामीणों को जल जंगल जमीन को लेकर जागरूक करने का श्रेय जाता है जिनकी वजह से आज यहां हरियाली और जल जंगल जमीन बची खुची हुई है। इनके प्रयास से ही आज तमनार के लोग न सिर्फ जागरूक हुए बल्कि अपने हक अधिकार के लिए तटस्थता के साथ खड़े हैं। और जल जंगल जमीन को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। और हर वर्ष गांधी जयंती के मौके पर कोयला सत्याग्रह कर खुद को मजबूती से स्वयं को एकजुट करते हैं।
पूर्व में खदान के लिए जमीन देने के बाद मिले कड़ूए अनुभव को देखते हुए ग्रामीण किसी भी स्थिति में जमीन नहीं देना चाहते है। खदान के नाम से किसी भी तरह की बात ग्रामीण अब सुनना नहीं चाहते हैं अब वे आंख कान दिल दिमाग खोलकर 2008 में हुई फर्जी जनसुनवाई में पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज और बनखेता कांड नहीं भूले हैं बल्कि इन घटनाओं के बाद अधिक जागरूक और सतर्क हो गए हैं। तमनार में पूर्व में दिए खदान के लिए जमीन और विकास के खोखले दावे और भुलावे में आकर उसका खामियाजा भुगत रहे है यहां के विकास की बुनियादी ढांचे सड़क स्वास्थ्य रोजगार सहित अन्य बुनियादी ढांचा के अभाव से जूझ रहे हैं क्षेत्र की धूल उड़ती जानलेवा गड्ढों से भरी सड़क भी किसी से छुपी हुई नहीं है। यहां तक खदान क्षेत्र की सड़के बदहाल हैं बल्कि ये कहें की सड़क हैं ही नहीं । दुबारा इतना देखने और समझने के बाद जमीन तो किसी भी कीमत पर नहीं देना चाहते हैं।
तमनार के उरबा गांव में होने वाली कोयला सत्याग्रह आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है इसकी गूंज समूचे देश के साथ विदेशों में पहुंच चुकी है। ग्रामीणों की मुहिम ‘जमीन हमारी संसाधन हमारा’ को सुप्रीम के केस बालकृष्णन बनाम केरल हाईकोर्ट का निर्णय कि संसाधनों पर पहला हक भूस्वामी का होता है। इसी के आधार पर मेहनत कश मजदूर किसान एकता संगठन बनाकर गांव की एक कंपनी गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड की स्थापना किया। इस कंपनी की स्थापना के पीछे ग्रामीणों की मंशा यदि देश विकास में कोयले की नितांत आवश्यकता कि स्थिति में कम्पनी के बैनर तले अपनी जमीन से खुद कोयला निकाल कर सरकार को देने की है। यदि सरकार उनसे कोयला लेना चाहती है तो ग्रामीण इसके लिए गारे और सरईटोला गाँव की लगभग 700 एकड़ जमीन का एग्रीमेंट भी करवा रखें हैं।
ग्रामीणों ने अब तक कोयला खदान और उद्योग स्थापना के लिए कम्पनी के नुमाइंदे द्वारा शर्तों के साथ बड़े बड़े लोक लुभावन वायदों को भी देखा परखा है। इसी लोक लुभावन वायदों की वजह से एक बड़ा ग्रामीण आदिवासी वर्ग इसका बड़ा खामियाजा भुगत चुका है। यही वजह है की तमाम कवायद के बाद भी संगठन में शामिल करीब 56 गांव के ग्रामीण किसी भी कीमत पर खदान के लिए जमीन देना नहीं चाहते हैं। और 2 अक्टूबर को सांकेतिक रूप से अपनी जमीन से कोयला निकाल कर शासन को सौंप कर अपनी प्रतिज्ञा को दोहराते हैं।
इसके पहले आदिवासियों को मिले कानूनन अधिकार पेसा कानून पर देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचने वाले दिग्गज समाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपने अपने विचार और अनुभवों को ग्रामीणों के समक्ष रखेंगे और सभी गांव की एक सामूहिक ग्राम सभा पारित किया जाएगा। अब तक क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासी देश विकास के नाम पर कॉरपोरेट घरानों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट को करीब से देखा है और देख रहे हैं। प्रभावित क्षेत्र में होने वाला विकास कागजों में ज्यादा शोभा बढ़ाती है और ग्रामीणों के लिए यह महज ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर होती है। औद्योगिक प्रयोजन के लिए लगातार वनों की अंधाधुंध कटाई का खामियाजा स्थानीय ग्रामीण आदिवासियो के अलावा वन्य जीव जंतुओं के जीवन पर भी संकट गहराता जा रहा है । खदान की वजह से आदिवासियों को विस्थापित होने से प्रकृति से दूर होते जा रहे है जो आदिवासियों की जीवन का और अपनी आस्था और देवी देवताओं से भी दूर होते जा रहे हैं। और इसके साथ हरियाली की जगह धूल गुबार मिल रहा है। वनांचल ग्रामीणों की रीढ़ की हड्डी वनोपज आधारित जीवन शैली भी कोसो दूर होते जा रही है। इन सबको लेकर ग्रामीण पूरी तरह से मुखर होकर और नए कोयला खदान के विरोध में है।