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प्रधान मंत्री की अमेरिका यात्रा और यहां की पार्लियामेंट के 75 सीनेट ने नीतियों का खुला विरोध ….भारत के बाहर भी यह चिंताभरे स्वर उठ रहे हैं कि भारत में मणिपुर जल रहा है….देव भूमि में एक वर्ग विशेष पर राक्षसों सा व्यवहार हो रहा….विश्व महिला खिलाडियों पर यौन शौषण और अत्याचार का मामला शिखर पर…. आखिर इन पर बहस क्यों नहीं …..

 

त्वरित टिप्पणी

किसी राष्ट्र का इतना बड़ा अपमान अभी तक कभी नहीं हुआ।यह शायद पहली घटना है। किसी देश के प्रधान मंत्री को सम्मान पूर्वक आमंत्रण देकर बुलाया जाय और जिसने बुलाया(अमेरिका) वहां की सर्वोच्च संस्था पार्लियामेंट के 75 सांसदो (सीनेट ) ने पत्र लिखकर उनकी नीतियों का खुला विरोध किया हो। और दो सांसदों ने उनके अभिभाषणो का बहिष्कार करने की घोषणा की हो। यह कोई छोटी मोटी या घरेलू घटना नहीं बल्कि वैश्वविक जगत में घोर अपमान जनक और गंभीर चिंताजनक है। अंतर्राष्ट्रीय अखबार,मिडिया सोशल , मीडिया और वेबन्यूज की मुख्य सुर्खियों में हैं। यह किसी भी सभ्य,संस्कारिक और आदर्श राष्ट्र व मुखिया के लिए ही नहीं पूरे देश वासियों के लिए घोर शर्मनाक,अपमान जनक , पीड़ा दायक व निंदनीय है ।

राजनैतिक विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों का यह मानना है कि विरोध महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि विरोध में जो सवाल उठाए गए हैं।जिन मुद्दों को रेखांकित किया गया है वह काफी महत्वपूर्ण है। हर देश को समझना चाहिए कि वह एक क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं हैं अब वैश्वीकरण का और वैज्ञानिक युग है।इंटरनेट ने पूरे विश्व को मुट्ठी में पकड़ रखा है। पूरा विश्व ही एक है और मानवता को बचाने के लिए प्रत्येक जागरूक व्यक्ति हर जगह पूरी ताकत से एकजुट होकर हाथ से हाथ,कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। भारत और भारत के बाहर भी यह चिंताभरे स्वर उठ रहे हैं कि भारत में मणिपुर जल रहा है। देव भूमि में एक वर्ग विशेष पर राक्षसों सा व्यवहार हो रहा ,विश्व महिला खिलाडियों पर यौन शौषण और अत्याचार के मामले शिखर पर हैं,प्रेस,मीडिया,सामाजिक और मानव अधिकार कार्यकर्ता प्रताड़ित हो रहे हैं और उस देश का मुखिया उनकी समस्याओं को सुलझाने के बजाय एक राष्ट्र के बुलावे पर देश को जलता हुआ और समस्याओं में घिरा हुआ छोड़कर चले जाते हैं। इसे भगोड़े की संज्ञा से संबोधित किया जाता है।कोई भी देश का प्रधान या मुखिया ऐसा कैसे कर सकता है? क्या उन्हे अपने देश की प्रजा (जनता) से ज्यादा खुद का जीवन और मान सम्मान प्यारा है? कौन सा और कैसा राजनैतिक संस्कार , चरित्र और आदर्श हैं?बहुत सावधानी पूर्वक खबर यह आ रही है की कहां, किससे मिले,किसको हीरे की माला भेंट किए और किसे क्या दिए,कहां किसके साथ लंच और डिनर किए,उनका मीनू क्या था? आदि आदि। जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से मिलता है तो दो देशों के बीच अपने अपने राष्ट्र की विदेश नीति के तहत,नीतिगत चर्चाएं,विमर्श,और निर्णय लिए जाते हैं ।जिसके भावी प्रभाव और मूल्यों पर विश्लेषण होते हैं।यही किसी राष्ट्र की उपलब्धि होती है।

राजनीति में अब शुचिता , मर्यादा आदर्श और नैतिक मूल्यों का काफी ह्रास होता हुआ दिखाई पड़ता है जो वास्तव मे एक गहन चिंता का विषय है।देश,लोकतंत्र,संविधान ,एकता,शांति,सद्भाव यह हमारी आत्मा है,और यह इंसानों से बनता है। इंसानियत बगैर किसी का कोई मूल्य नहीं है।अलगाव,नफरत,हिंसा, घृणा,द्वेष,झूठ,लफ्फाजी, धर्म के नाम पर अधर्म का आचरण,इंसान को इंसान से बांटने की दरिंदगी पूर्ण आचरण घोर चिंता का विषय है।लगातार सवाल उठ रहे हैं कि इंसानियत बचेगी या नहीं ? यह कहीं भारत की एकता अखंडता और महानता की गौरव गरिमा को कहीं नष्ट न कर दे। जरूरत है कि इंसानियत को बचाने की।

गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़।
gp.kachhwaha@gmail.com
9425572284

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