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एक ऐसा महाराजा…जो करता है लोगो के दिलों में राज..सम्पत्ति ही नही दिल से उदार..सरगुजा महाराज व कद्दावर मंत्री टीएस सिंहदेव के जन्मदिन पर विशेष..

अनूप बड़ेरिया
एक ऐसा महाराजा जो शासन नही लोगो के दिलो में जगह बना कर राज करता है..जो छत्तीसगढ़ में सबसे धनवान विधायक होने के बाद भी दिल का उदार है। सादगी ऐसी की लोगो के दिलों को प्रभावित करती है..वाणी ऐसी की लोगो का मन मोह जाता है…व्यवहार ऐसा जैसे कोई अपनत्व का रिश्ता…ये कोई और नही सरगुजा के महाराज व छत्तीसगढ़ सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री हेल्थ मिनिस्टर त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव जिन्हें सब प्यार से टीएस बाबा कहते हैं..यह शख्स अपनेआप में वी शख्सियत है… जिनकी छवि आंखों में उभरते ही एक बेहद सौम्य, खानदानी, राजशाही ठाठबाट होने के बावजूद सादगी भरा व्यक्तित्व और जमीन से जुड़े शख्स की मूरत आंखों में घूम जाती है। जो भी उनसे एक बार मिल लेता है, वो उन्ही का होकर रह जाता है। बेहद नरमदिल और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी टीएस सिंहदेव किसी को भी पहली ही मुलाकात में अपना बना लेते हैं और लोगो को उनके नाम से जानते हैं… यही वजह है कि जनता में वे बेहद लोकप्रिय हैं..टीएस सिंहदेव वो नाम हैं, जिसने कांग्रेस का जन घोषणा पत्र तैयार कर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आंधी चलाई…प्रदेश में एक बार फिर 15 साल के बाद कांग्रेस की वापसी हुई।
परिवार के साथ टीएस सिंहदेव की पुरानी तस्वीर
 31 अक्टूबर 1952 को जन्मे प्रयागराज में जन्मे टीएस सिंहदेव सरगुजा महाराज व अविभाजित मप्र में चीफ सेक्रेटरी रहे IAS मदनेश्वर शरण सिंह देव और राजमाता व मप्र सरकार में मंत्री रहीं श्रीमती देवेन्द्र कुमारी के बेटे हैं।
टीएस सिंहदेव के पहले जन्मदिन की तस्वीर

एक नाम जिसने सब कुछ होते हुए भी संघर्ष का रास्ता चुना…. एक नाम जो राज परिवार से होते हुए भी गांव-गांव गरीबों की समस्याओं को दूर करने के लिए जूझता रहा… एक नाम जिसके पास कई विकल्प थे चाहते तो बिना कुछ किए ऐसो आराम की जिंदगी जी सकते थे….. किसी बड़ी कंपनी में नौकरी भी कर सकते थे… खुद की कोई बड़ी कंपनी या उद्योग स्थापित कर सकते थे… लेकिन इन्होंने जन सेवा को अपना ध्येय बनाया… एक नाम जो आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग की उन्नति और प्रगति के लिए संघर्षरत रहा..सरगुजा राज परिवार उत्तरी छत्तीसगढ़ में एक बड़ा कद और रूतबा या यूं कहे कि राजनीति में एक बड़ा नाम है। स्कूली शिक्षा शिमला और ग्वालियर से पूर्ण करने के बाद स्नातक दिल्ली के हिन्दू कालेज से और स्नातकोत्तर की पढ़ाई हमेरिया कालेज भोपाल से पढ़ाई पूरी की। स्नातकोत्तर के बाद उनके पास काफी विकल्प थे, टीएस सिंहदेव शल्युजा शाही परिवार से हैं और वे छत्तीसगढ़ राजघराने के 118वें राजा हैं।

युवावस्था में टीएस सिंहदेव
राज परिवार से होने के अलावा पिता आईएएस और माता मंत्री थी, कुछ भी अच्छा कर सकते थे, जिसमें न तो संघर्ष होता और न मेहनत, लेकिन फिर भी पूर्वजों की कर्मभूमि सरगुजा को उन्होंने चुना और लग गए जनसेवा ..में पिता चाहते थे कि राजनीति में न आए जब टीएस बाबा सरगुजा में रहने लगे। बकायदा पत्र लिखकर आईएएस पिता ने कहा बेटा राजनीति में मत जाना, किंतु वो समय था आपातकाल के बाद का, जब कांग्रेस से लोग दूर हो रहे थे और लोगों को जोड़ने के लिए हर स्तर पार पार्टी के नेता संघर्ष कर रहे थे, सरगुजा में टीएस सिंहदेव की मां राजमाता स्व. देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव संघर्षरत थी, उन्हें संघर्ष करता देख जो टीएस बाबा केवल मां के राजनीतिक कार्यक्रमों को पीछे से देखा करते थे, उन्होंने 1978 में बकायदा कांग्रेस की सदस्यता लेते हुए राजनीति के जमीन पार इंट्री की। राजनीति के शुरूआती दौर में सबसे निचले स्तर और कांग्रेस संगठन के महत्वपूर्ण भाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। आपने कांग्रेस को जन-जन तक पहुंचाने में अपनी भागीदारी निभाई साथ ही अपने राजनीतिक जीवन में जनप्रतिनिधि के रूप में पहली शुरूआत अम्बिकापुर नगर पालिका से की। जहां 1983 से लगातार 1999 तक नपा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 2008 में पहली बार अंबिकापुर से जनता का आशीर्वाद मिला, विधायक निर्वाचित होकर छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचे। इसके बाद 2013 में पुनः विधायक चुने गए और पार्टी में विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया। वहीं 2018 में अंबिकापुर से विजयी होकर प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने स्वास्थ्य और पंचायत मंत्री बने, इस सबके अलावा जो सबसे बड़ी बात है वो यह कि वे अधिकारी व आमजन और कार्यकर्ता सभी के साथ एक सा व्यवहार करते हैं, उनकी यही विनम्रता उन्हें सभी से अलग करती है और पक्ष और विपक्ष सभी के लिए सम्मानित है और सभी उन्हें प्यार से टीएस बाबा के नाम से जानते हैं। 2018 में प्रदेश में सरकार बनाने में टीएस सिंहदेव की अहम भूमिका मानी जाती है, आमजन का यह मानना है कि टीएस सिंहदेव जो बोलते हैं बिना सोचे समझे नहीं बोलते, बहुत ही समझे व सुलझे इंसान बेवाकी से अपनी बात रखते हैं। राजपरिवार से होते हुए भी बहुत ही विनम्र, सीधे व जानकार है, जिससे आमजनों में काफी चर्चित और समान्य है, यही कारण है कि 2018 चुनाव के बाद जब कांग्रेस ने उन्हें घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने सभी विधानसभा क्षेत्र में पहुंच कर जनता का घोषणा पत्र पार्टी के लिए बना दिया, जिससे पार्टी को काफी लाभ हुआ। यही कारण है कि पार्टी समय-समय पर उन्हें दूसरे राज्यों में भी चुनाव के दौरान जिम्मेदारी देकर उनका उपयोग करती है। ओडिसा, राजस्थान, बिहार झारखंड में उन्हें पार्टी द्वारा समय-समय पर प्रभार दिया गया, जहां उन्होंने प्रोफार्मेस भी अच्छा दिया।

टीएस सिंहदेव का रुतबा पूरे छत्तीसगढ़ में है। वे इतने लोकप्रिय हैं कि लोग उन्हें महाराज या राजा साहब बुलाने की बजाय टीएस बाबा कहकर पुकारते हैं। टीएस सिंहदेव के पिता का नाम मदनेश्वर सरन सिंह देव है। इनकी मां का नाम राजमाता देवेंद्रकुमारी सिंहदेव है।
TS अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे प्रमुख और वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। टीएस सिंहदेव काफी अमीर परिवार से आते हैं और इनके पास करीब 560 करोड़ रुपए की संपत्ति है जिसके साथ ही इनका नाम अधिक अमीर नेताओं में गिना जाता है।

टीएस सिंहदेव की कार से जवाहर लाल नेहरू ने की थी रैली-

अब बात करते हैं राजनैतिक रसूख और अनुभव की, तो सिंहदेव के लिए ये सब बिल्कुल भी नया नहीं है. वो बचपन से ही इस स्तर की राजनीति देखते आ रहे हैं, क्योंकि इनके पिता अविभाजित मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्य सचिव थे. वहीं माता जी के मंत्री रहने का अनुभव इनके साथ जुड़ा हुआ है. गांधी परिवार से भी सिंहदेव का काफी पुराना नाता है. एक बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एक रैली के लिए इलाहाबाद आए थे, तब उनके बगल से खुली छत वाली लाल स्पोर्ट कार फर्राटा भरती हुई निकल गई. अपनी रैली के लिए नेहरूजी वैसी ही गाड़ी चाहते थे, लिहाजा अफसरों से उस गाड़ी का पता लगाकर मांगने को कहा। तब पता चला कि वह गाड़ी वहां अध्ययनरत उनके अभिन्न मित्र सरगुजा महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के पोते टीएस सिंहदेव के पिता मदनेश्वर शरण सिंह की है।

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था सिंहदेव से मिलने का इंतजार-

गाड़ी मंगाई गई और शानदार रैली हुई। रात को डिनर में सरगुजा के हिजहाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के कार वाले “पोते” के न दिखने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की, तो पता चला वे आमन्त्रित हीं नहीं हैं। तब नेहरूजी ने कहा कि उनके आने तक वे उनका इंतजार करेंगे। फिर क्या था सकते में आया पूरा प्रशासनिक अमला उनका पता लगाते हुए सिनेमा हॉल पहुंचा, जहां शो रुकवाकर अनाउंस कर सिंहदेव को ढूंढ़कर नेहरूजी के सामने लाया गया।

 

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