
13 साल पहले हुए आदिवासी जमीन घोटाले पर प्लांट स्थापना की अनुमति …तत्समय में प्रशासन द्वारा खरीदी बिक्री निरस्त करने दिया था आदेश… कैंप लगाकर कुनकुनी जमीन घोटाले की हुई थी जांच …अब उसी विवादित जमीन पर अवैधानिक तरीके से प्लांट स्थापना की अनुमति…..सार स्टील एंड पावर की स्थापना …..न्यायालय का दरवाजा ……
रायगढ़।
13 साल पहले प्रदेश में आदिवासियों की जमीन को धोखाधड़ी पूर्वक हथियाने और सबसे बड़ा जमीन घोटाला खरसिया के कुनकुनी में सामने आया था। 300 एकड़ के इस जमीन घोटाले में बड़े रसूखदारों ने प्लांट स्थापित हो चुके हैं और स्थापित हो रहे हैं। सार स्टील प्लांट भी इसी यानि कुनकुनी जमीन घोटाले पर ही स्थापित हो रही है। नियमानुसार अब तक इस जमीन घोटाले पर कार्रवाई हो जानी थी और खरीदी बिक्री निरस्त हो जानी थी। जो हो नहीं सका इसकी सिर्फ और सिर्फ दो वजह हैं। एक ब्यूरोक्रेट और दूसरा हमारे जनप्रतिनिधि इसके लिए जिम्मेदार हैं। खास बात ये है की जमीन घोटाले के तार की शुरुवात नीव ही राजनीति रसूख के बल पर ही रखी गई थी।
कुनकुनी के प्रभावित आदिवासी पर रसूखदारों द्वारा शाम दाम दण्ड भेद की नीति अपना कर अवैधानिक रूप से खरीदी-बिक्री कर उस पर कोल वाशरी व स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है। कुनकुनी जमीन घोटाले की जांच व जमीन खरीद फरोख्त की सच्चाई सामने आने के बाद जिला प्रशासन द्वारा आदिवासियों की जमीन वापसी की प्रक्रिया कर मूल आदिवासी को जमीन वापस करने का निर्देश जारी किया गया था। लेकिन अब तक जमीन वापसी की प्रक्रिया सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गई है। अब इस जमीनों में वृहद उद्योग खोलने की तैयारी की जा रही है।
300 एकड़ के इस जमीन घोटाले में कोलवाशरी और स्टेशन का निर्माण हो गया। अब इसी बेनामी खरीदी वाले कुनकुनी में सार स्टील एंड पावर प्राइवेट प्लांट लगने वाला है। जिसकी जन सुनवाई पर्यावरण विभाग ने 20 जनवरी 2023 को रखी है। जमीन घोटाले के समय भी जनप्रतिनिधियों की आँखें बंद थी और अब भी बंद है। हाल ही में पूर्व गृह मंत्री ननकी राम कंवर ने विधानसभा मे कुनकुनी जमीन घोटाले का मामला उठाया था। बावजूद इसके वर्तमान सरकार की भी आंखे नहीं खुली और सारे नियम कानून को घता बताकर एक सार स्टील एंड पावर के नाम से प्लांट की स्थापना होने जी रही है।
चर्चाओं की मानें तो ऐसे समय में कद्दावर दिग्गज जनता से सीधे जुड़े रहने वाले जनप्रतिनिधियों का अभाव ही है जो जनता की आवाज बन सके। यही वजह है की अनियंत्रित औद्योगिक विकास जिसकी वजह से बेलगाम हो चुकी आबोहवा जो सीधे तौर पर जीवन पर सीधा प्रभाव डाल रही है इस पर कोई बोलने को तैयार नहीं है। बचे खुचे सोसल वर्कर लोगों की आवाज बनने की कोशिश करते जरूर हैं लेकिन उनकी आवाज को कौन सुनता है। और अंत में ये सामाजिक कार्यकर्ता कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। कुनकुनी जमीन घोटाले पर जो एक तरह से कानूनन तरीके से विवादित जमीन की श्रेणी में आएगा उस पर उद्योग स्थापित होना ही अवैध है। अब देखना है की इस जमीन घोटाले पर अवैधानिक तरीके से लग रहे उद्योगों को लेकर न्यायालय का दरवाजा कब और कौन खटखटाता है।




