
जिले का सबसे लोकप्रिय विधायक कौन ……किसकी सीट पक्की किसकी खिसक सकती है जमीन ….रायगढ़, धरमजयगढ़ लैलूंगा खरसिया सारंगढ़ ….. कौन खिलाड़ी कौन अनाड़ी … कौन होगा अगाड़ी कौन किसके पिछाड़ी ये है सियासत
रायगढ़ । इन दिनों हर जगह एक बहस चल पड़ी है सबसे लोकप्रिय विधायक कौन, कितनों विधायकों की टिकट कटेगी कौन है इसमें शामिल किसकी जमीन खिसकने वाली है कौन अपने क्षेत्र काम के मामले में आगे है किसकी लोकप्रियता का पायदान सबसे ऊपर है इसे लेकर अलग अलग राय बन रही है। लोग अपने अपने तरीके से अलग अलग तर्क रख रहे हैं।
रायगढ़ विधायक प्रकाश नायक की बात करें तो उनके बारे में कहा जा रहा है कि उनकी टिकट कटने वाली है उधर लैलूंगा विधायक को लेकर भी अमूमन यही बात निकलकर सामने आ रही है। प्रकाश नायक के कभी बेहद करीबी रहे उनके करीब से जानने वाले तो यहां तक कहने से नहीं चूक रहे हैं की विधायक चाहे जैसा भी किंतु उनमें व्यवहार में बदलाव नहीं आना चाहिए और उनके व्यवहार में बदलाव ही एक कारण भी बनता है जो उन्हें सत्तासुख से बाहर करने के लिए यह एकमात्र कारण भी पर्याप्त माना जा रहा है। और यही उनकी लोकप्रियता के पायदान में भी कहीं न कहीं एक बड़ी बाधा बन रही है। यही वजह है की कई ग्रामीण दिग्गज नेता इनसे अलग होकर शंकर अग्रवाल के खेमे में नजर आते हैं। हालांकि प्रकाश नायक भी अपने पिता की तरह चाणक्य की राजनीति में माहिर खिलाड़ी बनते जा रहे हैं और ऐन मौके पर शंकर अग्रवाल को मात भी देकर टिकट लाने का दम रखते हैं। इसके बाद जीत और हार का फैसला भाजपा प्रत्याशी पर टिकती है।
रायगढ़ विधायक प्रत्याशी के लिए रायगढ़ विधायक प्रकाश नायक के पैरलर सरायपाली से पलायन कर रायगढ़ से राजनीति की पारी शुरू करने वाले मूलतः व्यापारी अब विधायकी की पारी खेलने को उतारू हैं। जमीनी स्तर पर सघन मुलाकात अभियान चला रहे हैं। अपनी पैठ बनाने में लगे हुए लगातार विधान सभा क्षेत्र में दौरा कीर्तन करवाकर धार्मिक सामाजिक सद्भाव बनाकर लोगों को अपने पक्ष में करने जुटे हुए है।
यह सब आखिर बिना किसी के इशारे के संभव नहीं है। एक चर्चा के अनुसार राजनीतिक हल्कों में शंकर अग्रवाल को आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बना सकती है ।यही वजह है की शंकरलाल अग्रवाल रायगढ़ विधान सभा के अधिकांश प्रकाश समर्थकों को अपने खेमे में करने से नहीं हिचक रहे हैं।
प्रकाश नायक से नाखुश ऐसे बड़ी संख्या में ग्रामीण नेता शंकर अग्रवाल के खेमे में पहुंच कर सलामी बजा रहे हैं ।
आरंभ में प्रकाश नायक की कार्यशैली से उनकी साख में काफी गिरावट आई थी किंतु पिछले कुछ समय से वे अपनी साख को बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी एक करने में लगे हुए हैं। लगातार आम जन मानस के बीच पहुंच रहे हैं क्षेत्रवासियों के हर सुख दुख में शामिल होने और उनके लिए हमेशा अपना दर खुले रहने की बात करते हुए लगातार क्षेत्र में सघन दौरा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है। इसके बाद भी उनकी लोकप्रियता के पायदान में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की बात बेमानी है।
एक वर्ग चर्चाओं में ये भी मानकर चल रहा है की यदि कांग्रेस रायगढ़ से प्रत्याशी नहीं बदलती है तो सीट खोनी पड़ सकती है। ऐसा ही कुछ लैलूंगा विधायक को लेकर भी सवाल खड़े किए जाने लगे हैं।
विधायक के तौर पर गिने जा रहे हैं भले ही उनकी कार्यशैली आम जनता के बीच जैसी हो लेकिन जब भी टिकट कटने की बात आती है तो जिले के रायगढ़ विधायक की सबसे पहले आती है। जिला मुख्यालय होने के नाते शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है। जिला चिकित्सालय खस्ताहाल हो चुका है शहर की सड़कें भी मुख्य मंत्री के आगमन के बाद हुई किरकरी के बाद बनना शुरू हुआ। नेतनागर के किसान आंदोलन की बात की जाए वहां भी भले ही उनकी उपस्थिति तटस्थ जनप्रतिनिधि के तौर पर हुई लेकिन उसका नतीजा भी सिफर रहा। उनकी रही सही कसर को सरायपाली से पलायन करके आए उद्योगपति से नेता बने शंकर लाल अग्रवाल पूरी कर दे रहे हैं। उनके हर उस क्षेत्र में सेंधमारी करने से नहीं चूक रहे हैं जहां उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। उनके हर आदमी को तोड़ा जा रहा है जो कभी उनके साथ हर कदम पर साथ होते थे। फिलहाल तो अभी यह सब राजनीत के गर्भ में है । कब किसके पाले में क्या आ जाए कहा नहीं जा सकता है। भले ही प्रकाश नायक को लेकर कुछ भी कहा जाए लेकिन इस बीच में पके हुए राजनीति के खिलाड़ी की तरह काम कर रहे हैं। और उनकी यही राजनीतिक सुझबुझ शंकर अग्रवाल को टिकट की राजनीत में पटकनी दे दें तो अतिशोक्ति भी नहीं होगी।
धरमजयगढ़ विधायक लालजीत राठिया की बात की जाए तो क्षेत्र में उनकी अब तक कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है किंतु क्षेत्र में उनके अलावा दूसरा कोई कांग्रेसी नेता सशक्त तौर पर सामने नहीं है। हालांकि स्थानीय स्तर पर चल रहे राजनीतिक उठापटक ने लालजीत राठिया के कद पर प्रभाव जरूर डाला है। धरमजयगढ़ जनपद पंचायत के बाद घरघोडा नगर पंचायत का मुद्दा भी लालजीत की कमजोर होती राजनीतिक पकड़ को बताती है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र धरमजयगढ़ के कई दूरस्थ क्षेत्र आज भी विकास से कोसों दूर हैं यहां भाजपा अब तक उसका तोड़ नहीं निकाल पाई है। फिलहाल उनकी सीट को लेकर कोई आम राय पक्की तौर पर अभी स्पष्ट नहीं निकल रही है हालांकि उनकी टिकट पक्की मानी जा रही है लेकिन अगर उपलब्धि की बात करें तो आदिवासी क्षेत्र धरमजयगढ़ के लिए उनकी कोई बड़ी उपलब्धि वे अपने खाते में डाल पाने में असमर्थ ही रहे हैं जो भी काम हुए हैं उसका श्रेय प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को दिया जा रहा है। लालजीत राठिया के लिए इस वर्ष जीत के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है और इनकी जीत होती भी है तो इनके चेहरे पर नहीं अपितु भूपेश सरकार के किए गए कार्यों पर जीत मानी जा रही है।
लैलूंगा विधायक चक्रधर सिदार को लेकर उनके विधानसभा में उनके ही लोग उनसे खफा हैं। कांग्रेसी नेता मजबूरी में उनके साथ है दबी जुबान से कहते हैं हम कांग्रेसी है अपने नेता के खिलाफ कुछ बोला नहीं जा सकता है। चक्रधर सिदार के बारे में कहा जा रहा है की यदि टिकट मिलती है तो 26 हजार मतों से जो उनकी जीत हुई थी लेकिन इस चुनाव में चेहरा नहीं बदला गया तो 26 हजार मतों से नीचे आ जायेंगे। लैलूंगा विधान सभा में उनको लेकर राय ये ही है की उन्हें टिकट नहीं मिलनी चाहिए। लैलूंगा विधायक चक्रधर सिदार एक स्थापित नेता के तौर पर अपने आप को स्थापित नहीं पाने की बात कही जा रही है। आमतौर पर कहा जा रहा है उनके इर्द गिर्द रहने वाले चापलूसों की कोई कमी नहीं है। उनकी छवि इन्ही चापलूसों की वजह से ज्यादा खराब हुई है। सर्वे के अनुसार उनकी टिकट भी कटनी लगभग तय मानी जा रही है। उपलब्धि की बात की जाए तो उनको लेकर जो आदिवासी क्षेत्र में जो उम्मीद की जा रही थी वो उम्मीद भी कायम नहीं रह पाई।
सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े एक ऐसी विधायक हुई हैं जो शुरू से लेकर अब तक अपने क्षेत्र के लिए और क्षेत्र की जनता के लिए कई उपलब्धियों भरा काम किया है। और यह उपलब्धि सारंगढ़ के इतिहास में लिखा जायेगा। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि सारंगढ़ को जिला बनाना रहा है अब तक जितने भी विधायक बने जिला बनाने के नाम पर सिर्फ झुनझुना ही थमाया। सारंगढ़ के स्वास्थ्य सुविधा की बात करें तो इसके विस्तार के लिए भी उन्होंने सार्थक प्रयास किया है। शिक्षा के क्षेत्र में कन्या महाविद्यालय खोलने का सार्थक प्रयास किया। लगातार क्षेत्र कि जनता और क्षेत्र के विकास के लिए प्रयासरत रहीं। उनका प्रयास ही क्षेत्र की जनता के लिए बड़ा काम है अब यह क्षेत्र की जनता पर निर्भर करता है की उन्हें किस तरह सर आंखों पर बैठाती है। उनकी सक्रियता ही उनकी टिकट को पक्की करती है और जीत के प्रति आश्वस्त करती है। सारंगढ़ में अभी तक उनके पैरलर ऐसा कोई शसक्त प्रत्याशी भी नहीं है। सारंगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर विलास तिहारू सारथी का नाम लिया जा रहा है लेकिन अभी यह उनके लिए दूर की कौड़ी है। हालांकि विलास तिहारु सारथी बहुत कम समय में सारंगढ़ विधान क्षेत्र में अपना एक अलग पहचान बनाने में कामयाब जरूर हुई हुई है। लेकिन जिस तरह से उत्तरी गणपत जांगड़े के द्वारा क्षेत्र के लिए मील का पत्थर साबित होने वाला काम किया है इससे कम से कम इस वर्ष तो किसी दूसरे प्रत्याशी की बात ही नहीं की जा सकती हैं । क्षेत्रवासियों को उत्तरी गणपत जांगड़े के द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए उन्हें एक मौका और देना लाजमी होता है अगर इस चुनाव में उत्तरी गणपत जांगड़े की जीत होती है तो आगामी सालों में एक अजेय योद्धा के रूप में सामने आ सकती हैं।
वहीं दूसरी ओर भाजपा की ओर से ऐसा कोई शसक्त प्रत्याशी भी अब तक सामने नहीं आया है जो उत्तरी गणपत जांगड़े को टक्कर दे सके। और सारंगढ़ के इतिहास में पहली बार है की बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक कार्य किए गए हैं हो सारंगढ़ के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। क्षेत्र की जनता यह सब देख रही है। और परिणाम भी इसी के अनुरूप सामने आने की उम्मीद की जा रही है। माना तो यह भी जा रहा हैं की इस वर्ष सारंगढ़ के इतिहास में बड़ा उलट फेर हो सकता है और क्षेत्र की जनता उत्तरी गणपत जांगड़े को पुनः ताज पहना सकती है।
अंत में खरसिया विधायक की बात करें तो उनका कोई काट नहीं है। उनकी टिकट कटना या नहीं मिलना बोलना ही बेमानी होगा न सिर्फ उनकी टिकट पक्की है और जीत भी पक्की है खरसिया में फिलहाल उमेश पटेल का कोई दूसरा सानी नहीं है। भाजपा भी उन्हें यहां से वाक वोव्हर दे रही है क्षेत्र में भाजपा के लिए फिलहाल कोई जगह भी दिखाई नहीं पड़ती है। हालांकि यहां से भाजपा नेता महेश साहू अपनी जमीन तलाशने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
कुल मिलाकर खरसिया और सारंगढ़ को छोड़कर सबसे लोकप्रिय विधायक कौन अंततः कांग्रेस की कोर कमेटी पर निर्भर करता है आने वाले दिनों में देखना है की रायगढ़ और लैलूंगा की राजनीति का किस करवट पर बैठता है इसके लिए थोड़ा इंतजार की जरूरत है।