शांति व सौहार्दपूर्ण वातावरण में निकाला गया मोहर्रम का जुलूस… पुलिस की चॉक चौबंद व्यवस्था…
अमरजीत सिंह
मुहर्रम पर मंगलवार को आशूर का जुलूस कोरिया जिले के बैकुण्ठपुर,मनेंद्रगढ़, चरचा व चिरमिरी सहित अनेक जगहों से निकला। अजादारों ने ताजिया निकाला और मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद भी किया।
कोरिया जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर में इसके लिए शहर भर में पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए। बड़ा जुलूस डबरी पारा से निकला जो घड़ी चौक पहुंचा। जहां ताजिया देखने शहर भर के लोग बड़ी तादात में इकट्ठा हुए।जुलूस में शामिल बच्चों से लेकर बड़े अजादार छुरी, तलवार व डंडों के प्रदर्शन से मातम मना रहे थे। इस बीच अजादारों को पानी व शरबत पिलाने के लिए जगह जगह इंतजाम किए गए। हर गली की बैरिकेटिंग कर वहां बड़े पैमाने पर पुलिस की तैनाती की गई।
आज से लगभग 1400 साल पहले मुहर्रम के महीने में इस्लामिक तारीख की एक ऐतिहासिक और रोंगटे खड़े कर देने वाली जंग हुई थी. इस जंग की दास्तां सुनकर और पढ़कर रूह कांप जाती है. बातिल के खिलाफ इंसाफ की जंग लड़ी गई थी, जिसमें अहल-ए-बैत (नबी के खानदान) ने अपनी जान को कुर्बान कर इस्लाम को बचाया था.
इस जंग में जुल्म की इंतेहा हो गई, जब इराक की राजधानी बगदाद से करीब 120 किलोमीटर दूर कर्बला में बादशाह यजीद के पत्थर दिल फरमानों ने महज 6 महीने के अली असगर को पानी तक नहीं पीने दिया. जहां भूख-प्यास से एक मां के सीने का दूध खुश्क हो गया और जब यजीद की फौज ने पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को नमाज पढ़ते समय सजदे में ही बड़ी बेहरमी से कत्ल कर दिया.
इस जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके 72 साथियों को भी बड़ी बेहरमी से शहीद कर दिया गया. उनके घरों को आग लगा दी गई और परिवार के बचे हुए लोगों को कैदी बना लिया गया. जुल्म की इंतेहा तब हुई जब इमाम हुसैन के साथ उनके उनके महज 6 महीने के मासूम बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम (हसन के बेटे) को भी बड़ी बेरहमी से शहीद किया गया.