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तुम्हें हम यूं भुला न पायेंगे ……….”सामाजिक सरोकार के संघर्ष शील नेता थे रोशन लाल- गणेश कछवाहा ने कहा ऐसे लोगों की मृत्यु नहीं होती संघर्षो में जिंदा होते हैं ….पढ़े पूरी आलेख

अपने जीवन के संघर्ष के अनुभव से मनुष्य बहुत कुछ सीखता है। जब अपने जीवन के संघर्ष के अनुभवों से सीख कर वह उसे समाज और राष्ट्र के साथ जोड़ता है तब वह एक सच्चा संघर्षशील सामाजिक कार्यकर्ता बन जाता है।और यही बेहतर समाज या राष्ट्र बनाने का जुनून उसे एक सच्चा राजनेता के रूप में भी गढ़ता है। यही बेहतर समाज व राष्ट्र बनाने के संघर्ष और जुनून के शख्सियत का नाम है रोशन लाल अग्रवाल। ऐसे लोगों की मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा समाज के संघर्षों में जिंदा रहते हैं।

रोशनलाल अग्रवाल एक संघर्ष शील नेता के रूप में जाने जाते थे।उनके लिए कोई जाति,मजहब, भाषा,क्षेत्र , छोटे बडे़, ऊंच नीच का भाव नहीं था बल्कि गरीबों के ज्यादा करीब और उनके हितैषी थे।राजनैतिक भेदभाव भी नहीं रखते थे हर राजनैतिक दलों के नेताओं से उनके गहरे और सौहाद्रपूर्ण संबंध रहते थे। जब जिनसे जो ज़रूरत मदद या सहयोग की जरूरत होती थी लेते थे और देते थे। किसी से कोई घृणा,नफरत,द्वेष नहीं था। माननीय स्व.अटल बिहारी बाजपेई जी उनके राजनैतिक आदर्श थे। अलग अलग राजनैतिक विचारधारा होने के बावजूद वे एक दूसरे से सीखने और समझने की कोशिश करते थे।यही आचरण उन्हें अन्य राजनैतिक कार्यकर्ताओं से अलग कर एक विशेष सम्मानजनक आदर्श स्थान दिलाता था।

मैने उन्हें शहर के विकास के लिए तथा प्रशासनिक व राजनैतिक अव्यवस्थाओं, सामाजिक अन्याय व अत्याचार के खिलाफ प्रत्येक संघर्ष में पूरी ईमानदारी के साथ प्रथम पंक्ती पर खड़े देखा। कई संघर्षों का मैं भी साथी और साक्षी रहा हूं। रोशनलाल अग्रवाल ,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जन नायक रामकुमार के संघर्षों के साथी रहे। जननायक रामकुमार जी के व्यक्तित्व का भी बहुत प्रभाव पड़ा। रोशन लाल अग्रवाल के ही सद्प्रयासों से जननायक रामकुमार अग्रवाल की स्मृति विशेषांक एक भव्य समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय डॉ रमन सिंह तथा राज्यसभा सदस्य माननीय राजबब्बर के करकमलों से विमोचित होकर जनता को समर्पित हुआ।

उनके जीवन का राजनैतिक लक्ष्य विधायक बनना तो पूरा हुआ लेकिन राजनैतिक व्यवस्था और विसंगतियों के चलते सामाजिक विकास का सपना अधूरा रह गया।तब उन्हें और गहराई से समझने का अवसर मिला की सामाजिक कार्यकर्ता होने और राजनैतिक दल विशेष के कार्यकर्ता होने में क्या फर्क है? कभी कभी मेरे घर आ जाते गहरी विमर्श करते।सामाजिक विषयों व समस्याओं पर समाधान ढूंढने और राजनैतिक प्रपंचों से शांति की तलाश करते। उनसे मिलना बात करना, सामाजिक राजनैतिक विषयों पर विमर्श करना बहुत अच्छा लगता था।

राजनैतिक और सामाजिक गलियारे में आज भी यह चर्चा, चिंतनऔर विमर्श का विषय बना हुआ है कि रोशन राजनीति मे हार गए या राजनीति उन्हें स्वीकार नहीं कर सकी। ऐसी विषम और जटिल परिस्थितियों में उनकी विरासत और अधूरे सपनों को पूरा करने की महत्वपूर्ण चुनौति व ज़िम्मेदारी उनके समर्थकों और नई पीढ़ी पर है।

स्मृतियां और सवाल ,विचार विमर्श बहुत से हैं।रोशन भाई आप नहीं रहे पर आपका राजनैतिक सामाजिक संघर्ष, कुछ करने की जिजीविषा, सामाजिक सारोकार,बहुत सारे सुंदर सपने हमारे बीच हैं।तुम्हें हम यूं भुला न पायेंगे।

गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़।
94255 72284

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