
भक्तों पर कृपा करने श्री मंदिर से निकले महाप्रभु …51 स्थल के जल से स्नान कराया गया …56 भोग एवं महाआरती पश्चात प्रसाद का वितरण
रायगढ़।
रायगढ़ के पूर्वांचल ग्राम जुर्डा में स्थित है श्री जगन्नाथ महाप्रभु का भव्य मन्दिर जहां नित्य प्रभु की सेवा प्रातः गीत गोविन्द से प्रारम्भ होती है एवं संध्या काल में नन्हें नन्हे बच्चों द्वारा मधुर भजनों से ठाकुर जी की शयन सेवा होती है साथ ही श्रीक्षेत्र पुरी की तर्ज में यहां उत्सव भी पालन किए जाते हैं , इसी तारतम्य में रथ यात्रा की तैयारी जोरों पर है जिसका एक अंग उत्सव स्नान यात्रा है उक्त महोत्सव का पालन बड़े भव्य रूप में किया गया जिसमें भगवान जगन्नाथ,बलभद्र, माता सुभद्रा जी को 51 स्थल के जल से स्नान कराया गया ,विग्रहों को सुन्दर वस्त्रों ,पुष्पों से सुशोभित कर इत्र सेवा 56 भोग एवं महाआरती करने के पश्चात लोगों ने मिलकर महाप्रसाद का भी आनन्द उठाया।
मनुष्यों की भांति प्रभु जगन्नाथ भी आज से 15 दिन तक ज्वर लीला करेंगे मान्यता है अपने भक्तों पर आ रही समस्त बीमारियों को अपने ऊपर लेने ठाकुर जी यह लीला करते हैं ।
इस विषय में मंदिर के प्रधान सेवक डॉ महेन्द्र मिश्रा जी ने बताया कि – इससे जुड़ी मान्यता बहुत रोचक है. दरअसल, पुरी में माधव दास नाम के एक भक्त थे, जो भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना में लीन रहते थे और उनके चढ़ावे के प्रसाद से अपना जीवन यापन किया करते थे. एक बार माधव दास बहुत बीमार पड़ गए बावजूद इसके उन्होंने भगवान की सेवा और भक्ति नहीं छोड़ी. लोगों ने माधव दास को वैध के पास जाने के लिए भी कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया यह कहते हुए कि जब मेरे साथ भगवान हैं, तो मुझे किसी की क्या जरूरत. ऐसे चलता रहा और एक दिन माधव गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और अचेत पड़ गए. तब स्वयं भगवान जगन्नाथ उनके पास आए और उनकी सेवा करने लगे. माधव दास के ठीक होने पर, जब उन्होंने भगवान को अपनी सेवा करते देखा, तो वह भावुक हो गए और पूछा कि आप मेरी सेवा क्यों कर रहे हैं? जिसके जवाब में जगन्नाथ जी ने कहा मैं अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ता, लेकिन सबको अपने कर्मों का फल यहीं भोगना पड़ता है. लेकिन बाकी की बची 15 दिन की तुम्हारी बीमारी मैं अपने ऊपर ले लेता हूं. यह घटना जिस दिन हुई उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी. यही कारण हर साल 15 दिन के लिए पूर्णिमा के दिन भगवान बीमार पड़ जाते हैं. इस परंपरा को अनासर भी कहते हैं. वहीं, जब 15 दिन बाद ठीक हो जाते हैं तो नेत्रोत्सव ‘ मनाया जाता है यानी रथयात्रा निकालती है.