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पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सरकार ईमानदार नहीं है, प्रशासन गंभीर नहीं और जनप्रतिनिधि सांसद ,विधायक जिम्मेदारी पूर्ण आचरण का निर्वहन नहीं कर रहे हैं यह सामाजिक जन जीवन और मानवीय मूल्यों के लिए खतरनाक है ………. इस गम्भीर मुद्दे पर गम्भीर मंथन जरूरी पढ़े पूरी आलेख क्या कहते हैं ……..

 

रायगढ़।

रायगढ़ जिले की पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर परिस्थितियों से कोई इंकार नहीं कर सकता।किसी दस्तावेज,कोई विशेष ज्ञान विज्ञान या जटिल तकनीकी प्रक्रिया की भी कोई जरूरत नहीं है। आप खुली आंख से कहीं भी किसी भी पेड़ पौधों,नदी तालाब, जलाशयों,खेत खलिहान ,खुले मैदान,नदी के तटों ,स्कूलों यहां तक की घरों के आंगन, छतों, कमरों, बेड रूम और किचन रूम तक,खुले आम काले काले डस्ट, काले काले राखों की परतें, और फ्लाई ऐश की तो बात ही मत कहिए रायगढ़ की धरती पर चारों दिशाओं में बिना किसी शासकीय डर या नियम कानून की परवाह किए जहां तहां मन माने ढंग से डंप किया हुआ आपको ऐसे दिख जायेगा जैसे ‘मानो की बारूद की ढेर के बीच यह शहर बसा हुआ है ‘और शासन प्रशासन नाम की कोई संस्थान शायद यहां नहीं है।

इसे कोई भूल नहीं सकता और कोई सच्चा इंसान इनकार नहीं कर सकता कि कोरोना के कहर से रायगढ़ थरथरा गया था राज्य में मौतों की संख्या में भी रायगढ़ ने नाम कमाया, विशेषज्ञों की रिसर्च रिपोर्ट यह कह रही है कि जहां जहां प्रदूषण खतरनाक स्तर है या ज्यादा है वहां वहां कोरोना का कहर और मौतों की संख्या सबसे ज्यादा रही है क्योंकि वहां प्राकृतिक रूप से ऑक्सीजन की कमी थी। कोरोना ने इंसान को इंसान होने की तथा इंसान को प्रकृति से जुड़े रहने की और प्रकृति की रक्षा करने की सबसे बड़ी शिक्षा दी है।और कड़ी सबक सिखाई है।

रायगढ़ जिले में प्रदूषण का स्तर डेंजर जोन में है।चिकित्सकों ने कई बार चिंता व्यक्त की है स्वांस, दमा, टीबी,लिवर,हृदय एवं केंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। खांसने पर कफ में काले काले कण, सीने में काले डस्ट पाए जा रहे हैं। वैज्ञानिकों,पर्यावरण विदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाचार पत्रों एवं मीडिया कर्मियों ने असंख्यों बार अपनी रिपोर्ट और चिंता से शासन को अवगत कराया है। परंतु पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण से मुक्ति के उपायों की जगह उन्ही दोषी उद्योगों के विस्तार की जनसूनवाई को सम्पन्न कराने में प्रशासन अपनी पूरी शक्ति झोंक दे रहा है। सवाल यह उठता है कि सरकार किसकी है? या सरकार है या नहीं?

ऐसा नहीं है कि शासन और प्रशासन को प्रदूषण की खतरनाक स्थिति का ज्ञान नहीं है। उनके पास तो सबसे ज्यादा तथ्यात्मक रिपोर्ट और दस्तावेज हैं। उनके अपराधों और गुनाहों की पूरी सूची है।शासन है तो उनके पास पूरी जानकारी होनी भी चाहिए।प्रमुख सवाल यह है कि उन्हें सजा या दंड कौन देगा? जनता फरियाद कर सकती है। सो बहुत जिम्मेदारी के साथ कर रही है। जनता शासन और प्रशासन से बार बार निवेदन कर रही है कि “खतरनाक प्रदूषण से समूचा जनजीवन खतरे में पड़ गया है।बूढ़े, बच्चों और आने वाली पीढ़ी के जनजीवन के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। लोगों के जीवन को बचा लीजिए। बहुत से पशु पक्षी यहां से पलायन कर चुके हैं। जलस्त्रोत दूषित हो रहे हैं। खेत खलिहान बर्बाद चौपट हो रहे हैं। अब रायगढ़ में कोयले पर आधारित और किसी नए उद्योग की स्थापना या पुराने उद्योगों के विस्तार की अनुमति न दी जाए।प्रदूषण मुक्त जिला बनाने के लिए ईमानदारी पूर्ण सख़्त कदम उठाए जाएं। दोषियों को कड़ा दंड दिया जाय।”

लगभग 23 से ज्यादा संगठनों के साझा मंच जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा एवं अन्य समाजिकसंगठनो,ग्रामीणों व जनसंगठनों ने केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन जी टी)दिल्ली तक अपनी आवाज बुलंद की एन जी टी ने सख्त कार्यवाहियों के लिए दिशा निर्देश जारी किए, आर्थिक दंड भी दिया, एनजीटी एवम केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने जांच टीम भी भेजी उन्होंने बारबार दिशानिर्देश भी जारी किया लेकिन उस पर पूरी तरह अमल नहीं किया जाना यह गहरी चिंता का विषय है।उद्योगों द्वारा झूठा धोखा धड़ी पूर्ण दस्तावेज पेश कर उद्योग लगाने या विस्तार करने की अनुमति मांगते है सरकार को उस दस्तावेज की जांच कर सरकार व जनता के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में उन्हें जेल में डालना चाहिए ऐसा न कर बल्कि शासकीय संरक्षण में येनकेन प्रकारेन जनसुनवाई संपन्न कराकर अपना पीठ थपथपाती है। आखिर यह कैसी शासन प्रणाली है?

 

एनजीटी और केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की जांच कमेटी के साथ लंबी विस्तारिक महत्वपूर्ण चर्चा के दौरान उन्होंने साफ साफ कहा कि हमारा काम है सरकार को तथ्यात्मक रिपोर्ट के साथ आवश्यक दिशा निर्देश जारी करना है , परन्तु हमे बहुत जगहों पर सकारात्मक असर दिखाई नहीं पड़ता है।इसका मतलब बहुत साफ है कि पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सरकार ईमानदार नहीं है, प्रशासन गंभीर नहीं है,तथा निर्वाचित जन प्रतिनिधि सांसद और विधायक जिसे जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है वे अपनी जन सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन जनभावनाओं के अनुरूप नहीं कर पा रहे हैं। वस्तुतः जनता की जगह जनता के प्रतिनिधि होने की हैसियत से सांसद व विधायक को जनसूनवायियों में जाकर जनता की ओर से विरोध दर्ज करना चाहिए । जशपुर जिले को छोड़कर रायगढ़ में एक भी जनसुनवाई का सांसद व विधायक ने विरोध नहीं किया यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि आखिर ये किसके प्रतिनिधि है? बिना सांसद या विधायक की सहमति से प्रशासन द्वारा जनसुनवाई कराना क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा नहीं करता है?
हजारों जनजीवन को खतरे में डालकर एक उद्योगपति के पूंजी को बचाना क्या यह जनसरोकार विकास की अवधारणा या किसी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए?
एक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जन सामान्य के सामाजिक सरोकार , जनजीवन , मानवीय मूल्यों एवं संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा सरकारों की प्राथमिक और नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। शायद आवारा पूंजीवाद ने सभी के गले में पट्टा डालकर अपने चौखट में नतमस्तक कर दिया है। यह सभ्य समाज के लिए कदापि हितकर नहीं है।

रायगढ़ जिले में सभी सत्ता दल के विधायक हैं उनमें से एक युवा मंत्री भी हैं और ताकतवर विपक्षी पार्टी से सांसद महोदया हैं, उम्मीद है रायगढ़ जिले को प्रदूषण मुक्त जिला बनाने के लिए जीवजगत की रक्षा के लिए सभी मिलजुलकर दृढ़संकल्पित होंगे।सभी की साझी सहभागिता से हम होंगे कामयाब।

 

 

लेखक –
गणेश कछवाहा
पर्यावरण विद
जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा एवं
ट्रेड यूनियन कौंसिल रायगढ़ छत्तीसगढ़
gp. kachhwaha@gmail.com

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