
बढ़ता ओद्योगिक क्षेत्र घटती जैव विविधता मानव जीवन पर पड़ रहा खतरनाक प्रभाव …… खतरों से अनजान विनाश रूपी विकास की ओर बढ़ रहे …..औद्योगिक विस्तार के लिए लगातार जनसुनवाई विनाश रूपी विकास को दे रहा आमंत्रण ….
रायगढ़।
जिले में जिस तरह से ओद्योगिक कल कारखानों का विस्तार हो रहा है वह भी बिना किसी पूर्व सुनियोजित प्लानिंग के लगातार पुराने उद्योगों की क्षमता के विस्तार का रूप दिया जा रहा है। जबकि पर्यावरण प्रदूषण के एक अध्ययन के मुताबिक एनजीटी द्वारा क्षेत्र विशेष में और ओद्योगिक विकास विस्तार पर प्रतिबंध लगा रखा है। क्षेत्र में बढ़ते ओद्योगिक प्रभाव की वजह से इसका सीधा असर जैव विविधता पर पड़ रहा है। जैव विविधता का विनाश यानि जल, जंगल जीव जंतु सहित मानव जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। यही वजह है कि इसे देखते हुए क्षेत्र में और उद्योगों के स्थापना व विस्तार पर बिना आगामी पर्यावरण प्रदूषण के अध्ययन रिपोर्ट के आये बिना न तो विस्तार किया जा सकता है और नए उद्योग की स्थापना तो दूर की बात है।
जिले के इसी क्षेत्र विशेष में तमाम उस आदेश को धता बताते हुए ओद्योगिक विस्तार के लिए लगातार जलवायु परिवर्तन को लेकर जन सुनवाइयां आयोजित की जा रही है। इसके गम्भीर दूर गामी दुष्परिणाम को नजर अंदाज करते हुए एनजीटी के उस आदेश को धता बताते हुए जन सुनवाइयां आयोजित की जा रही है वह भी जलवायु प्रदूषण के नाम पर ऐसे जो महज खाना पूर्ति के लिए जनसुनवाई आयोजित की जा रही है।
जिस क्षेत्र में सर्व विदित है कि वन्य जीवों का वास है लेकिन उनके ईआईए रिपोर्ट में उद्योगों की स्थापना या विस्तार से न तो जैव विविधता पर कोई सुष्प्रभाव पड़ रहा है और न ही वन्य जीवों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है । विस्तार के लिए जनसुनवाई के लिए तैयार होने वाली ईआईए रिपोर्ट बिना वास्तविकता के धरातल पर अध्ययन किये ऐसी कमरे में बैठकर ईआईए रिपोर्ट तैयार कर दी जा रही है और इसे सच मानकर स्थापना व विस्तार के लिए जनसुनवाई आयोजित कराने अनुमति प्रदान कर दी जा रही है।
जबकि यह सब सर्व विदित है कि आज भी इन क्षेत्रों में वन्य जीव हाथी के साथ विभिन्न प्रकार के वन्य जीवों का आज भी क्षेत्र में जंगल मे वास है। अंधाधुंध व बिना प्लांनिग के ओद्योगिक विकास से हमारी जैव विविधताओं का विनाश विनाश हो रहा है। मानव जीवन हो या वन्य जीवों के जीवन पर भी खतरनाक दुष्प्रभाव पड़ रहा है यही वजह हैं की वनों का आकार तेजी से सिकुड़ रहा है । हम ओद्योगिक विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
तमनार, घरघोड़ा व रायगढ़ के कुछ क्षेत्र जहां औद्योगिक प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर पर है यही वजह है कि कुछ वर्ष पूर्व एनजीटी ने इस क्षेत्र में और औद्योगिक विस्तार व स्थापना पर रोक लगा रखी है लेकिन इस पर न सरकारें ध्यान दे रही है और न ही स्थानीय जिला प्रशासन , लगातार विस्तार से न सिर्फ मानव जीवन बल्कि जैव विविधता खतरे में पड़ता जा रहा है।
सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन की गाइडलाइन और ग्राम सभा अनुसूचित जनजाति विस्तार अनुबंध पेसा कानून अनुसूची 5 के लगातार उल्लंघन हो रहा है। जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन प्रबंधन पर केवल पेड़ या जानवर ही नहीं आते है बल्कि सरीसृप , किट पतंगे ,जल स्रोत ,कई खनिज भंडार पर भी प्रतिकूल असर होता है कई जीव जंतु के अस्तित्व खत्म होने से जैव मंडल पर भारी नुकसान हो रहा है कई प्रजातियों के पेड़ पौधे कांड मूल के बीज गायब हो रहे है।
जिसे सामुदायिक वन प्रबंधन के माध्यम से पहचान करने और संकलित कर वन्य बीजों को पर बायोडायवर्सिटी चार्ट गावों में समितियां बना रही है मतलब साफ है कुछ तो खोते जा रहे है लोग और इस नुकसान कि भरपाई सीएसआर और जिला खनिज न्यास या फिर कैंपा मद की राशि से दूसरी नकली प्रचार प्रसार करने से वो वापस नहीं आने वाले और ओद्योगिक प्रदूषण की वजह से जैव विवधता जहां खत्म होते जा रही है इससे मानव जीवन बच जाएंगे ये बाते केवल बेमानी है सरकार समुदाय उद्योगपति इस अंधाधुंध लालच की सीमा को पार कर चुके है जिसका आगामी परिणाम बेहद खतरनाक साबित होगी।
उद्योगों को विस्तार या खनन को विस्तार देने से पहले शहर की सेहत पर असर की नापना होगा कि अब स्तिथि आईसीयू के स्तर की हो चली है मशीनों के बीच इंसानी जीवन की बलि के साथ साथ ही पूरे प्रकृति को समुल नष्ट करके हम किसका और कितना विकाश करेंगे वनों के रकबा खत्म हो रहे है तेजी से ,भूजल स्तर गिर चुका है जीव जंतु बीमार और नष्ट हो रहे है फसल जहरीला ,मिट्टी जहरीली और हवा जहरीला होता जा रहा है। इसकी वजह से बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है दमा टीवी कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां सर चढ़ कर बोल रहा है। उद्योग स्थापना व विस्तार के लिए पर्यावरणीय मुद्दों की जनसुनवाई तक सीमित कर देने कि प्रक्रिया सब कुछ डुबो दे रही है।