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*अडानी का रसूख पड़ा सब पर भारी,कोयला खदान का हुआ भूमि पूजन,*

रायगढ़ /महाजेकों के लिए कोयले का खनन करने वाली अडानी कंपनी की तमनार में मनमानी चरम पर है। तमाम विरोधों के बाद भी कंपनी तानाशाही अंदाज में कार्य कर रही है। ग्रामीण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से लेकर हाईकोर्ट की शरण में हैं इसके बावजूद अडानी कंपनी दमनात्मक रवैया अपनाते हुए येनकेन प्रकारेण खदान शुरू करने पर आमादा है। जिसकी झलक गुरुवार को देखने को मिली। ग्रामीणों के विरोध के बीच आज सुबह अडानी कंपनी के गुर्गे, अधिकारी, महाजेंको कंपनी के अधिकारियों के साथ मिलकर मुड़ागांव में कोयला खदान का जबरन भूमिपूजन कर डाला।
सवाल लोकतंत्रीय व्यवस्था पर उठता है कि जब सत्ता दल, विपक्ष, जनप्रतिनिधि और ग्रामीण सभी खदान के विरोध में हैं और ऐसे में अडानी अपने गुर्गों और पैसे के बूते कोयला खदान शुरू करने जा रही है। शुरू से ही अडानी के विरोध में भाजपा और जनप्रतिनिधि थे। फिर जुलाई महीने की शुरुआत में कांग्रेस ने इसका भव्य विरोध किया पूरा प्रदेश संगठन आया। नतीजा सिफर रहा, विरोधों के बाद भी धीरे-धीरे अडानी कंपनी गांवों के जंगल को काटती रही। जंगल साफ करने के ठीक ढाई महीने बाद कंपनी ने खदान का भूमिपूजन कर डाला। विरोध करने वालों में जनचेतना मंच और ग्रामीण ही अभी तक डटे हुए हैं। हाल ही में अडानी कंपनी ने मंच कुछ लोगों पर फर्जी एफआईआर दर्ज करवाई है। ग्रामीणों की आवाज दबाने के लिए अपने गुर्गों को फर्जी ग्रामीण बनाकर संबंधित जगहों पर प्रस्तुत कर खदान की कथित फर्जी अनुमति ले ली है।
*अडानी का चल रहा माफिया राज*
विदित हो कि तमनार के 9 ग्राम पंचायतों के 14 गांव में महाराष्ट्र की बिजली कंपनी के लिए कोल ब्ल़ॉक आबंटित हुआ था जिसका एमडीओ अडानी कंपनी के पास है। खनन माफिया अडानी कंपनी ने आदिवासी क्षेत्र में बल प्रयोग किया। ग्रामीणों को धमकाया, अपने गुंडों को ग्रामीण बनवाया और अंतत: छलपूर्वक खदान शुरू करने की सीमा तक पहुंच गया है। लोगों को जिस बात से भय था आखिर वही हुआ अडानी कंपनी ने माफिया राज की तरह यहां काम कर रही है।  जलाई के पहले सप्ताह की बात हो या फिर सितंबर मध्य की, कहानी में कुछ नहीं बदला बस तथाकथित विरोधियों को छोड़कर। अडानी कंपनी ने उन्हें शांत कराने में कामयाब हो गई जिसमें जन प्रतिनिधि और स्थानीय नेता आते हैं। अभी जो विरोध में हैं वे हैं जिनका घर,खेत,जंगल सब कुछ उजड़ रहा है।
किसी का विरोध करने की जितनी व्यवस्था लोकतंत्र ने दी है उसी आधार पर प्रभावित गांव के लोग चल रहे हैं। लेकिन अडानी कंपनी ने शुरू से ही दमनात्मक रवैया अपनाया। जब ग्रामीणों ने बताया कि जंगल काटने के लिए ग्राम सभा हुई ही नहीं है तो कंपनी फर्जी ग्राम सभा का दस्तावेज तैयार किया। ग्रामीण कटाई और मुआवजा के लिए नहीं माने तो अडानी के गुर्गे ग्रामीण बनकर कंपनी का सर्मथन करने संबंधित विभाग पहुंच गए। जिन-जिन बड़े लोगों ने विरोध किया उसे अपने हिसाब से सेट कर लिया। कई नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने विरोध का दिखावा किया और अडानी कंपनी ने उन्हें साट कर कईयों को साटने का भी कार्य किया। कंपनी के विरोध में मामले चल रहे हैं पर कंपनी ही लोकतंत्र की हत्या कर मनमानी में व्यस्त है।

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