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जूटमिल में कल होगा रथयात्रा का आयोजन…आइए जानते हैं जूटमिल के रथ यात्रा का इतिहास..!!* जूटमिल में बह रही आस्था की बयार, भक्तों को इस वर्ष रथ यात्रा में नई प्रतिमाओं के होंगे दर्शन…!!* *नई प्रतिमाओं का बीते 4 दिनों से चल रही प्राण प्रतिष्ठा,भगवान जगन्नाथ , माता सुभद्रा ,बलभद्र भगवान के जयकारों से गुंजित हो उठा जूटमिल क्षेत्र…!!*

रायगढ़:- जिले में रथ यात्रा की परंपरा बहुत पुरानी है, रायगढ़ में जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर रथोउत्सव का आयोजन कई दशकों पूर्व सर्वप्रथम राज परिवार द्वारा शुरू किया जो अब भी पूरी श्रद्धा और हर्ष उल्लास के साथ अनवरत जारी है! राजापारा के बाद जिले में रथोउत्सव का आयोजन जूटमिल में शुरू किया गया! लगभग 67 वर्ष पहले एक समय था जब रायगढ़ जिले में केवल दो ही जगह पर रथयात्रा होती थी, जिसमे पहला राजापारा और दूसरा जुटमिल था, फिर तो धीरे-धीरे लगभग जिले के हर मोहल्ले और गांव में रथ यात्रा आयोजन होने लगा है! जुटमिल के मशहूर पुरोहित स्व. श्री शंकर आचार्य ने आज से लगभग 67 वर्ष पहले जूटमिल में रथ यात्रा का आयोजन शुरू किया, तब से लेकर अब तक प्रत्येक वर्ष जूटमिल में पूर्ण श्रद्धा व हर्षो उल्लास के साथ रथ यात्रा का आयोजन होता आ रहा है!

 

देश आजाद होने के पूर्व हमारा रायगढ उड़ीसा के संबलपुर रियासत के अंतर्गत आता था, तथा आजादी के बाद मध्यप्रदेश में शामिल किया गया, बाद में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई तो रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ में शामिल हुआ! आजादी के पूर्व रायगढ़ जिला उड़ीसा का ही अंग हुआ करता था! संपूर्ण उड़ीसा में महाप्रभु जगन्नाथ रथ उत्सव को विशेष रुप से पूर्ण श्रद्धा और हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है! रायगढ़ के राजघराने ने भी जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर रायगढ़ में रथ यात्रा की परंपरा शुरू की थी, राज परिवार के बाद प्रख्यात पुरोहित स्व. श्री शंकर आचार्य जी द्वारा जूटमिल में रथोत्सव का आयोजन शुरू किया गया! पुरोहित जी का 1994 में स्वर्गवास हो गया, पुरोहित जी के स्वर्गवास उपरांत उनके छोटे सुपुत्र श्री मनोहर आचार्य पुरोहित अपने पिता द्वारा शुरू किए गए रथ यात्रा की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जूटमिल के जानें माने पंडित श्री मनोहर आचार्य लगभग 28 सालों से रथ यात्रा का आयोजन करते आ रहे है! कोरोना के कारण लगभग दो वर्षो से रथ यात्रा का आयोजन कर पाना सम्भव नही था। थो इस वर्ष नई प्रतिमा लाकर के प्राण प्रतिस्ठा बीते 5 दिनों से जुट मिल थाना के पीछे किया जा रहा है जिसमे  प्रथम दिवश में प्राण प्रतिष्ठा कर के पूजा अर्चना किया गया वही ,दुतीय दिवश में भगवान जगन्नाथ प्रभु को 108 दिप प्रज्वलित कर छपन्न भोग का भोग लगाकर के श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया गया । वही तीसरे दिन 108 हनुमान चलिशा का पाठ किया गया, चौथे दिन पूरे दिन गाने बजाने के साथ सुंदर कांड का पाठ किया गया, श्रद्धलुओं की भीड़ पूरे चारो दिन उमड़ पड़ी पूरा जुटमिल बीते चार दिनों से भगवान जगन्नाथ , माता सुभद्रा ,बलभद्र भगवान के जयकारों के साथ गुंजित हो उठा है।

 

*नई प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा और एक दिलचस्प किस्सा…*

नई प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी एक दिलचस्प किस्सा आप सब को बताना लाजमी होगा कि जुटमिल के मशहूर पुरोहित स्व. श्री शंकर आचार्य लगभग चार-पांच दशक नई कास्ट की मूर्तियां बनवाकर प्राण प्रतिष्ठा की थी तथा पुराने हो चुके प्रतिमाओं को केला मैया में विसर्जित किया गया था, जो बहते बहते उड़ीसा राज्य से लगे पुसौर विकासखंड के अंतिम छोर में बसे ग्राम कांदागढ़ तक पहुंचा, नदी तट पर महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी को देखकर ग्रामीण अपने गांव में प्रभु की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो ना मानकर बहुत खुश हुए, फिर पूरे गांव के लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ ढोल नगाड़े बजाते,भजन कर नाचते गाते हुए ग्राम कांदागढ़ के देव स्थल (देवगुड़ी) में लाकर विराजित प्रतिदिन पूजा अर्चना करने लगे! और आसपास के क्षेत्र में महाप्रभु के दर्शन के लिए लोग भी आने लगे! संपूर्ण किस्सा आसपास के क्षेत्र में आपके तरफ फैल गई और चर्चा का विषय बन गया! चूँकि पुरोहित जी की बहू भी इसी गांव की थी, तथा कुछ महीनों बाद जानकारी हुई, पुरोहित जी की बहू ने भी अपनी मायके में जाकर उस मूर्ति को देखा और पहचाना तथा ग्रामीणों को बताया फिर भी ग्रामीण प्रभु का आशीर्वाद मानते हुए प्रतिदिन पूजा अर्चना करते रहे! लगभग 1 वर्ष पूजा करने के उपरांत जगन्नाथ प्रभु की प्रतिमा पुरानी होने की वजह से ग्रामीणों ने विधि विधान पूजा अनुष्ठान कर नदी में विसर्जित किया!

 

पंडित श्री मनोहर आचार्य ने बताया कि हर वर्ष की भाती इस वर्ष भी 04/07/2022 दिन सोमवार को रथ मेला का आयोजन होना निश्चित हुआ है। पंडित जी ने मीडिया के माध्यम से सभी भक्तगण और श्रद्धालुओं से आग्रह किया है की रथ यात्रा में शामिल होकर  प्रभु जगन्नाथ , माता सुभद्रा ,बलभद्र भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर पुण्य के भागी बने तथा इस ऐतिहासिक रथ यात्रा को सफल बनाये।

 

 

 

 

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