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व्यंग्य::भक्तों ! कैसा लगा ? देखो हम दांत चियार दिए है ! ……महेंद्र दुबे !

 लेखक-महेंद्र दुबे ( हाईकोर्ट अधिवक्ता, प्रसिद्ध लेखक,साहित्यकार व व्यंग्यकार)

भक्तों के फूफा डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार गए है……. अरे राष्ट्रवादी भक्तों! लांचिंग के ही दिन चाइनीज मोबाइल बिका करोड़ों में ….भक्तों का कुत्ता अर्नव गोस्वामी कूटा गया, हम कुटाई की कड़ी निंदा करते है…..देख लो भक्तों, नीतीश कुमार की सभा में खाली कुर्सियां….भक्तों! तुम्हारे पप्पा का 56 इंच गलवान/लद्दाख में फुस्स….. ये सुनिये, तेजस्वी यादव ने भक्तों की कैसे बाट लगाई! ये कुछ जुमले या ऐसे ही दूसरे जुमलों को चाट चूस कर देश की कथित सेकुलर लिबरल बिरादरी अपनी बौद्धिक प्यास और भड़ास से पिछले छह साल से फारिग हो रही है! हर वख्त भक्तोफोबिया के रेत में मुंह घुसाए इन कथित भूंजाभंजको के इस शुतुरमुर्गिज्म पर हल्का सा भी हाथ धर दीजिये ये बिलबिला उठते है और आपको भक्त, अंधभक्त, संघी आदि आदि साबित करने या भाजपा आईटी सेल में धकियाने के लिए टूट पड़ते है! जैसे की इन्ही चंद लाइनों से इन्हें मेरे संघी होने पर शक होना शुरू हो चुका होगा!

लोकतंत्र, संविधान, सेकूलरिज्म और लिबर्लिज्म की जड़ों को नोच नोच कर अब तक खाती इस स्वघोषित सेकुलर-लिबरल बिरादरी को वर्ष 2014 से वैचारिक अवशिष्ट प्रवाह जनित गम्भीर उदर रोग; एसिड रिफ्लक्स ने जकड़ा हुआ है! कारण-परिणाम प्रभाव सम्बन्ध से समझियेगा तो ज्ञात होगा कि बुद्धि बेच कर या गिरवी रख कर अब तक खा अघा रही इस परजीवी बिरादरी को सत्ता इनके मन माफिक नहीं होने से सब्सिडी वाला पाचन चूर्ण मिलना बंद हो गया है जिसका परिणाम ये रहा है कि इन्हें लगातार वैचारिक उल्टियां होने लगी हैं! नेहरू गांधी डायनेस्टी की चरण लोटन बिरादरी उनके राज में इमरजेंसी या और किसी और मौके पर जब भी लोकतंत्र की मैयत निकलती थी ये शहनाई बजाते झूम उठते थे, संविधान सभा की डिबेट में जिन अवधारणाओं को बाबा साहब अम्बेडकर सहित ढेरों मनीषियों ने सिरे से खारिज किया था उन्हें जब संविधान में इनके बादशाह सलामत घुसा रहे थे तब इन्हें देश का संविधान कुलांचे भरता नजर आया था, सेकूलरिज्म की इनकी परिभाषा ये है संविधान निर्माता डॉक्टर अम्बेडकर की आत्मा से दगाबाजी करके पूरी बेशर्मी से तुष्टीकरण का खेल खेलते इनके आकाओं के इस खेल में भी आला दर्जे का सेकूलरिज्म ही दिखता रहा है, लिबर्लिज्म की इनकी लिबिर लिबिर सुनियेगा तो हैरान सोचने लगियेगा कि ट्वेंटी फोर सेवन विरोधी आइडियोलॉजी को गाली देने में किस प्रजाति के लिबर्लिज्म के दर्शन होते है? यहां तक पढ़ते पढ़ते तो इस महा चिंतक बिरादरी का शक यकीन में तब्दील हो गया होगा कि लिखने वाला भाजपा आईटी सेल से बहुत लंबा हाथ मार चुका है!

देश को बौद्धिक और वैचारिक दिशा देने की क्षमता रखने वाला और खुद को इंटेलेक्चुअल समझने वाला ये पठनशील, ज्ञानवान और चैतन्य वर्ग अपने वैचारिक और राजनैतिक विरोध में इस कदर मतांध हो चुका है कि ये देश के खिलाफ चल रहे प्रायोजित प्रोपेगेंडा, फिफ्थ जनरेशन वार या डिसइन्फॉर्मेशन वार का हिस्सा तक बनने से परहेज नहीं कर पाता है! इनकी लिये संविधान, लोकतंत्र, सेकूलरिज्म और लिबर्लिज्म पूरी तरह से एकतरफा रहता है! यहीं वजह है कि भारतीय राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष में नरेंद्र मोदी को स्थापित करने वाले 31 प्रतिशत देशवासी, अपना वोट अपनी पसंद से देने वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रक्षक नहीं मूर्ख और अंधभक्त नजर आते है! संविधान पर इनकी आस्था इस कदर एकतरफा है कि देश के संविधान के अधीन हुए आम चुनाव में 324 के आंकड़े के साथ बहुमत से स्थापित सरकार इन्हें जनमानस की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि फासीवादी और हिटलरशाही लगती है! इनके लिबर्लिज्म और टॉलरेंस का आलम ये है कि अर्नव गोस्वामी या किसी और विरोधी के पुलिस द्वारा कानून को तार तार करके लतियाये जाने को न केवल टॉलरेट करते है बल्कि पुलिस ज्यादती को डिफेंड करने की हद तक लिबरल हो जाते है मगर अरसे से सरकारी आवास में अवैध कब्जा जमाए प्रियंका गांधी को सरकार बंगला खाली करने की नोटिस भर दे दे तो सारा टॉलरेंस हवा हो जाता है और लिबर्लिज्म फांसी के फंदे में लटकने लगता है! इनके सेकूलरिज्म की तो बात ही निराली है, नजीर के तौर पर सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर का फैसला आने पर का सेकूलरिज्म आत्महत्या कर लेता है मगर उसी कोर्ट से शाहबानो फैसले को शून्य करके संसद द्वारा पारित कानून से सेकूलरिज्म की रक्षा हो जाती है!

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश का सेकुलर और लिबरल समझा जाने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग वैचारिक और बौद्धिक रूप से जनमानस की अभिव्यक्ति को दिशा देने में सक्षम भी है और उसके नजदीक अपनी अभिव्यक्ति को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने के लिए प्लेटफार्म भी मौजूद है। अगर ये रचनात्मक विरोध करता, सरकार के फैसलों में कमियां निकालता, आम आदमी की उम्मीदों और अपेक्षाओं के साथ हो रही कथित सरकारी दगाबाजियों से देश को अवगत कराता, वर्तमान सरकार के गवर्नेंस को देश के लिए अनफिट समझा कर इससे बेहतर और उपयोगी गवर्नेस का विकल्प प्रस्तुत करता या ऐसे ही अन्य मुद्दों को जनता के सामने रखता तो देश की सारी जनता हर वख्त अफीम ही नहीं खाई रहती है जो अपने हित में बदलाव के विचार से हमेशा उदासीन ही रहेगी! मगर मोदीफोबिया से ग्रसित इस बिरादरी ने अपनी सारी बौद्धिक क्षमता, अपने वैचारिक आग्रह और रचनात्मक विरोध को नरेंद्र मोदी केंद्रित और बीजेपी टार्गेटेड निगेटिविटी में कैद कर रखा है, ये मोदी ही ओढ़ता बिछाता है, हर वख्त भक्तों से ही मुखातिब रहता है, अंधभक्तों की बैंड बजाता और बजवाता रहता है, भाजपा नेताओं की ऊलजुलूल हरकतों पर तालियां पीटता है, अगर इसके बाद भी थोड़ा मोड़ा गुबार बचता रहता है तो सावरकर को माफीवीर, संघियों को गांधी हत्यारा, हिन्दू राष्ट्र को कलंक, चाइना अग्रेशन को 56 इंच का फुस्स कह कर और गोडसे .. गोडसे … गोडसे चिढ़ा कर पूछ लेता है…..भक्तों कैसा लगा? और दांत चियार देता है! अगर ये इसी दतनिपोरी में इसी तरह लगा रहा तो 2024 में इसकी ये आदत उसके अगले पांच साल और काम आयेगी और ये फिर पूछेगा…भक्तों कैसा लगा?

शंका समाधान के लिए सर्वसाधारण सूचित होवें और सनद रहे….लिखने वाला पूर्ण भुगतान पेशगी में ही प्राप्त कर चुका है! नमस्ते सदा वत्सलये!

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