जहां शंका है वहां श्रद्धा नहीं, जहां श्रद्धा है वहां समाधान है….साध्वी डॉ. विचक्षण श्री
दक्षिणापथ, दुर्ग। चातुर्मास प्रारंभ युवा चातुर्मास के साथ ही आनंद मधुकर रतन भवन में धर्म का अराधना प्रारंभ हो गयी साध्वी प्रियदर्शना जी की प्रेरणा से जप एवं तप अनुष्ठान भी प्रारंभ हो गया है। श्रमण संघ के प्रचार-प्रसार प्रमुख नवीन संचेती ने बताया प्रात: 6 बजे से दोपहर 3 बजे तक नवकार महायंत्र का जाप प्रारंभ हुआ। जिसे श्रमण संघ के परिवार बारी- बारी अपने परिवार के साथ मिलकर जाप करेंगे।
साथ ही दो उपवास एवं तीन उपवास का तप भी प्रारंभ हुआ जिसमें श्रमण संघ के परिवार बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यह उपवास का क्रम पूरे चार माह चलेगा। साध्वी रत्न ज्योति जी की प्रेरणा से छोटे- छोटे संकल्प दिलाकर त्याग करने की भावना मन के अंदर जागृत हो इस भाव से त्याग दिलाया जा रहा है। महासती डॉ.विचक्षण श्री ने धर्मसभा में कहा जहां मन में शंका है वहॉ श्रद्धा नहीं आ सकती और जहॉ पर श्रद्धा है वहां पर हर तरह का समाधान है भगवान की जिनवाणी सुनना दुर्लभ है कानों से निंदा सुनते श्रद्धा दुर्लभ है।
साध्वी डॉ.विचक्षण श्री जी ने कहा-चातुर्मास के चार मास ज्ञान दर्शन, चरित्र, तप की आराधना के द्योतक है। चातुर्मास समाज में चेतना जागृत करने में अहं भूमिका निभाते है। चातुर्मास एक ऐसा निमित्त है, जिसमें गृहस्थ जन संतसतियों के संपर्क में अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। हमें तीन कार्य करना है-पहला अवलोकन करना आत्मा का देखो और सीखो। दूसरा अध्ययन करना आगम का जानो और सीखो तीसरा आचरण करना सोचों और सीखो। चार्तुमास आगमवाणी सुनने का तप त्याग करने का धर्मध्यान करने का एवं सत्संग का लाभ लेना हैं। साध्वी रत्न ज्योति ने कहा-चार्तुमास काल श्रावकों के जीवन निर्माण का काल होता है। धर्माराधना के रस का आन्तरिक अनुभव ही जीवन निर्माण में सहायक है। चार मास दान, शील, तप, भाव रूप पथ के परिचायक है। क्रोध, मान, माया और लोभ सभी कषायों पर विजयके बोधक है। संत सतियों को स्वयं अपनी साधना के प्रति सजग रहते हुए समाज परिवार व्यक्तियों में धर्मभावना जागृत करने का आध्यात्मिक अभियान है।