
जिले के आबोहवा में कौन घोल रहा जहर ? फ्लाईऐश डंपिंग यार्ड बने जिले के ग्रामीण अंचल एन एच 49 का क्या है हाल? पढ़े पूरी खबर
14 July 2021
रायगढ़ से शशिकांत यादव
रायगढ़-/-उधोगो से निकलने वाले फ्लाईऐश ने जिले की आबोहवा बिगाड़ कर रख दी है।जहाँ इनसे ग्रामीण अंचलों के खेत खलिहान अपनी अस्त्तित्व होने की कगार में है तो वही इससे होने वाले प्रदूषण से बीमारी की आशंका प्रबल हो चुकी है।जिले के एन एच 49 का इन दिनों ऐसा हाल देखने को मिल रहा है। जहां सड़को के किनारे जगह जगह डम्प फ्लाईऐश पर्यावरण विभाग के कुम्भकर्णीय नींद को दर्शा रहा है।हालांकि कम्पनियों से निकलने वाले फ्लाईऐश तो निर्धारित स्थल पर ही फेका जाना है। परन्तु इसके परिवहनकर्ता ज्यादा माल कमाने के चक्कर मे जल, जंगल जमीन मो बर्बाद करने में आमदा है। जिन पर यदि जिला प्रशासन द्वारा जल्द ही कोई सख्ती न बरती गई तो स्थिति भयावह हो सकती है।
गुनाहगार कौन?
गौरतलब हो कि उधोगो से निकलने वाले फ्लाईऐश को परिवहन कर पूर्व से तय निर्धारित स्थल पर ही फेकना होता है। जिसके लिए बतौर ठेका बड़ी रकम तय होती है। सूत्रों की माने तो एक मंत्री के करीबी सहित कुछ नामी गिरामी शहरी ट्रांसपोर्टर ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर मे कम्पनियों से महज चंद किलोमीटर के फासले पर ही सड़को के किनारे खेतो में डम्प कर देते है।बहरहाल उनके इस नियम विरुद्ध कार्य मे सम्बन्धित क्षेत्र के ग्राम पंचायतों में निर्वाची जनप्रतिनधियो की सहभागिता से इंकार नही किया जा सकता है।जो महज चंद पैसों के चक्कर मे अपने ग्राम पंचायत के रहवासियों के जीवन से खिलवाड़ करने से भी गुरेज नही कर रहे है।वही पर्यावरण विभाग द्वारा कार्यवाही का नही किया जाना उसकी कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान उठाता नजर आ रहा है।

कहा गए तथाकथित पर्यावरण प्रेमी?
विदित हो कि शहर ही नही किंतु समूचे जिले में भी पर्यावरण प्रेमियों की भरमार है।जो गाहे बगाहे पौधरोपण जैसे कार्यक्रमो का आयोजन करते हुए अपने को पर्यावरण प्रेमी निरूपित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ते है।परंतु पर्यावरण पर ही जब फ्लाईऐश के प्रहार की बात आती है तो कोई सामने नजर नही आता है।तो क्या फ्लाईऐश के उचित निष्पादन के बिना ही उनका यह वृक्षारोपण अभियान कारगार साबित हो पायेगा? न तो उधोग प्रबंधनों को एन जी टी व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की परवाह है। और न ही ट्रांस्पोटरो को जो किराया भाड़ा बचाने के चक्कर मे समुचे जिले को नर्क करने पर तुले है। जिन्हें पर्यावरण विभाग की मौन स्वीकृति मिली नजर आ रही है।यदि पर्यावरण विभाग कभी एन एच49 की ही जांच कर ले तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। शायद जिसकी जहमत उठाना पर्यावरण विभाग को नागवारा गुजर सकती है?