
गजब है इंडस्ट्रीज रायगढ़ में भर्ती के लिए इंटरव्यू पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में ….सवाल का जवाब जनप्रतिनिधियों को देना होगा, जिले के बेरोजगारों के साथ राजनीतिक छल
रायगढ़। रायगढ़ से चंद किलोमीटर दूरी पर कोटमार गांव में इंड सिनर्जी लिमिटेड स्थापित है। पिछले दो दिनों से सोसल मीडिया में यह खूब सुर्खियां बनी हुई है की इंड सिनर्जी में विभिन्न पदों के लिए 460 पदों पर भर्ती होगा और इसके लिए इंटरव्यू पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में आयोजित है।
इंड सिनर्जी लिमिटेड कोटमार के मालिक भी जिले के ही रहने वाले हैं और रिक्त पदों की भर्ती के लिए दुर्गापुर पश्चिम बंगाल में इंटरव्यू कर रहे हैं। इससे जाहिर सी बात है कि वे स्थानीयों को अपने कारखाने में प्राथमिकता बिल्कुल भी नहीं देना चाहते हैं। जबकि जिले में बेरोजगार युवाओं की कोई कमी नही है। इनके पास बड़ी संख्या में युवाओं के आवेदन भी आते रहते हैं लेकिन अभी जरूरत नहीं का एक मात्र बोल, बोलकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
आज जब इस उद्योग द्वारा दुर्गापुर में इंटरव्यू कर रायगढ़ में स्थित उद्योग में नौकरी देने का षड्यंत्र किया जा रहा है ऐसे में हमारे जनप्रतिनिधियों की क्या जिम्मेदारी इस पर भी बात करना जरूरी है। जिले की सम्पदा का दोहन करने में जरा भी संकोच नही कर रहे जबकि स्थानीय लोगो को रोजगार देने में बड़ा संकोच हो रहा है। पिछले दो दिनों से सोसल मीडिया में यह सुर्खियां बनी हुई है। एक सामान्य युवा जिसके पास एक अदद रोजगार का कोई साधन नही है आय का कोई जरिया नही है। वह दुर्गापुर पश्चिम बंगाल जा कर इंटरव्यू देने की सोच भी नहीं सकता है अगर सोच भी लिया तो वह वहां तक पहुंच नहीं सकता है।
राजनीतिक दल एक दूसरे पर खूब आरोप प्रत्यारोप लगाती है केंद्र अपने घोषणा पत्र में 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का झांसा दिया छत्तीसगढ़ सरकार बेरोजगारी भत्ता सहित संविदा कर्मचारियों को 10 दिन में नियमित करने का झांसा दिया। रोजगार को लेकर कांग्रेस से सवाल करो तो वह भाजपा के पाले में पासा डाल देती है भाजपा से सवाल करो तो कांग्रेस के पाले में पासा डाल देती है। आखिर अपने प्रदेश जिले व शहर के बेरोजगारों को रोजगार मिले तो मिले कैसे।
सरकार और जनप्रतिनिधियों को इसका जवाब देना होगा और अब अगर युवा सवाल नहीं करेगा तो कभी भी अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल नहीं कर पायेगा। मीडिया अगर सवाल करती है तो उस पर कानून का शिकंजा कस दिया जाता है। दरअसल आवाज कोई उठाना नहीं चाहता है और जो आवाज उठाता है उसे कानून का ऐसा भय दिखाया जाता है कि वह खामोश बैठ जाता है।
आवाज उठाने का एक ताजा उदाहरण तमनार की खस्ताहाल सड़क को लेकर आवाज उठाने वाले भाजयुमों नेता को उठाकर थाने ले जाया जाता है। इस तरह आवाज उठाने पर कानून का भय दिखाना और जेल में डालना आज की मौजूदा सरकारों की यह सबसे बड़ा हथियार बना रखा है।
आज जनता इतनी डरी सहमी रहती है कि वो इस मामले में कुछ बोलना ही नही चाहती है क्योंकि उसके अंदर जेल का ऐसा डर समाया है कि आवाज उठाने से पहले दस बार सोचती है।
हम कहते है कि होने दो जो हो रहा है हमें क्या लेकिन हम भूलते जा रहे है इसका असर हम पर ही पड़ेगा एक दिन ऐसा आएगा जब हमारी आवाज भी उठाने वाला कोई नहीं होगा।