स्मृति शेष कैलाश अग्रवाल 28 अगस्त “* स्मृतियां विस्मृत नहीं होती।” तुम्हारा सपना साकार होने जा रहा है, जननायक रामकुमार अग्रवाल की प्रतिमा अनावरण 30 अगस्त 22 को …. गणेश कछवाहा
*दिया बाती को तरस गई ,मंदिर की देहरी
*वो पूजारन फिर परदेश से लौट कर नहीं आई।।
– गणेश कछवाहा रायगढ़
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‘वो लोग जो अपने ज़हन में ,आईने नहीं रखते
ऐसे लोग मेरे नज़दीक, कोई मायने नहीं रखते।।
हम नुकसान में सही,मगर मुनाफों की खातिर
ज़िन्दगी के सौदों में ,दिल को दाहिने नहीं रखते।।
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यह कविता और ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां हैं जो प्रगतिशील , समाजवादी विचारधारा के संस्कारों में बढ़े पले भाई कैलाश अग्रवाल की है। जिसे उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों के साथ अपनी डायरी के कुछ पन्नों तथा कुछ सोशल मीडिया के पृष्ठों में लिखें हैं।
कैलाश भाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजवादी आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के सदस्य तथा लगभग लगातार 18 वर्षो तक विधायक रहे जिसे शासन ने नहीं जनता ने अपने हृदय से जन नायक विभूषण से विभूषित किया, जन नायक रामकुमार अग्रवाल के सुपुत्र हैं।
पिता के राजनैतिक ,सामाजिक व वैचारिक संस्कारों को भाई कैलाश अग्रवाल पूरी शिद्दत से जिए। उनकी स्पष्ट सामाजिक व राजनैतिक समझ, दूर दृष्टि,अदभुत प्रबंधकीय कौशल ,सरल सहज स्वभाव, मित्रों की निश्छल स्नेहिल मंडली, और सामाजिक ,राजनैतिक विसंगतियों के खिलाफ सकारात्मक सोच के साथ बेहतर व खुशहाल समाज तथा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के जनसंघर्षों को सही मार्गदर्शन देना, उन्हे प्रेरित व उत्साहित करना आज भी स्मृतियों को झकझोरते रहती है।
आपका सपना था की जननायक रामकुमार अग्रवाल की प्रतिमा लगे ताकि आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिले, वे अपने बुजुर्गों के इतिहास को जान सके। आपने बहुत सद्प्रयास किया । सभी राजनैतिक दलों ने एकस्वर में सहमति दी।नगर निगम एम आई सी ने मूर्ति के लिए आदेश भी जारी किया।कैलाश भाई आपके सपनों ने साकार रूप ले लिया है। 30 अगस्त 22 को आपके सबसे लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता गांधीवादी विचारक, गांधी पीस फाउंडेशन के पूर्व उपाध्यक्ष एवं संस्थापक अध्यक्ष एकता परिषद के पी वी राजगोपाल जी के करकमलों से सम्पन्न होगा। तुम्हारी इच्छा के मुताबिक विभिन्न प्रदेशों के गांधीवादी कार्यकर्ता, समाजवादी विचारक व सोशल एक्टिविस्ट शामिल होंगे।
पूरा शहर अपने जननायक के प्रतिमा अनावरण के ऐतिहासिक अविस्मरणीय क्षण का साक्षी होने का बेसब्री से प्रतिक्षा में है।पूरा शहर बड़े बड़े होर्डिंग्स से सज गए हैं। हमे मालूम है कैलाश भाई सबसे ज्यादा खुश आप होंगे ।आप इस ऐतिहासिक क्षण के प्रेरणास्त्रोत है। आप देख रहे है और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा होते रहेगा।
आपकी विशिष्ठ निश्छल स्नेहिल मित्र मंडली थी ।जिसमे विभिन्न राजनैतिक दलों,सामाजिक वैचारिक चिंतकों, साहित्यकारों,कलाकारो तथा व्यवसायिक जगत से जुड़े लोग शामिल थे। भाई उपेंद्र शर्मा के शर्मा टैंट हाउस में रोजाना शाम को मित्रो का मिलना राजनैतिक, सामाजिक, परिवारिक विचार विमर्श करना। हल्की फुल्की कभी कभी कड़ी नोक झोंक हो जाना परंतु फिर दूसरे दिन शाम को सभी एक दूसरे मित्रों का इंतजार करना फिर वही मौज मस्ती, विचार विमर्श, हंसी मजाक , कुछ पीड़ितों को सामाजिक मदद करने की योजना बनाना यह सब उनके जीवन की अनिवार्य दिन चर्या का अभिन्न हिस्सा बन गई थी। उपेंद्र शर्मा,गुरुपाल भल्ला,मुकेश जैन आदि मित्रों की यदि शाम को शर्मा टैंट हाउस में बैठकी न हो तो उनका दिन अधूरा और जीवन के अनमोल रस की कमी उन्हें भासती थी।आज भी शाम को शर्मा टैंट हाउस की वह जगह, वह बैठक खोजती है अपने साथी को।
हम अब भी जब शाम को शर्मा टैंट हाउस की उस जगह से कभी गुजरते हैं तो एकबार नजर वहां घूम ही जाती है। वह गंभीर विचार विमर्श,अत्याचारऔर अन्याय के खिलाफ संघर्ष की रणनीति , पीड़ितों को मदद करने की योजना और बिंदास निश्छल हंसी ठिठोली स्मृतियों में समा जाती हैं।
यह मित्र मंडली पूरे तन मन धन से जोश व ऊर्जा से आपके (कैलाश भाई) के सपनों को साकार करने में जुट गई है।यह प्रतिमा अनावरण समारोह कई मायने में अविस्मरणीय होगा।
प्रगतिशील,जनवादी, समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। राजनीति में धर्म के गठजोड़ को देश के लिए गंभीर खतरा मानते थे। वे हमेशा सर्वधर्म समभाव, सत्य,अहिंसा,राष्ट्रीय एकता अखंडता और सद्भाव को देश की सबसे सुंदर खूबसूरत संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक तथा विश्व की सबसे बड़ी शक्ति मानते थे।हमेशा इसकी हिफाजत, समृद्ध और मजबूत करने पर जोर देते थे।
स्वास्थ ने उनका सही साथ नहीं दिया परंतु वे बहुत जतन से अपने स्वास्थ को सहेजते रहे।जीवन संगिनी श्रीमति संजू अग्रवाल की सेवा सुश्रुषा और समर्पण ने भाई कैलाश अग्रवाल को बहुत साहस और शक्ति प्रदान की। अपने जीवन के मिशन में और साथियों तथा संगठन के बीच स्वास्थ को कभी आड़े आने नहीं दिया । 28 अगस्त 2019 को बॉम्बे हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली और इस सांसारिक जीवन को अलविदा कह दिया।
अशेष स्मृतियां हैं जो विस्मृत नहीं होती।कभी विस्मृत नहीं होंगी।
कैलाश भाई की एक गजल प्रस्तुत है –
वो ख्वाब नई दुनिया का तस्सवूर क्या हुआ।
राह ए इंकलाब में मरना था मंजूर क्या हुआ।।
आंखों में चिंगारी,फूली नसें तनी मुट्ठियां।
जुल्म ओ सितम से लड़ने का फितूर क्या हुआ।।
धरती के बदन को हरारत क्यूं है इन दिनों।
कुदरत तो तंदरुस्त थी भरपूर क्या हुआ।।
उजड़ा महल सुना अस्तबल सूखे तालाब।
यहां रहता था एक शख्स मगरुर क्या हुआ।।
ये क्या मसहलें हैं सरहद पर हलचलें हैं।
बेटे तो कह के गए थे लौटेंगे जरूर क्या हुआ।।
दिक्कतें तो आयेंगी तू तो जानता था दोस्त।
फिर तेरे जैसे लोग हो गए मजबूर क्या हुआ।।-कैलाश
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सादर श्रद्धांजलि
गणेश कछवाहा,रायगढ़ छत्तीसगढ़।