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एसईसीएल के बिजारी कोल माइंस के प्रभावितों के साथ छलावा …. 2022 के अनिश्चित कालीन हड़ताल पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं…. पुनः बैठे धरने पर.. बड़ा सवाल बिना मुआवजा पुनर्वास के खनन कैसे …क्या यह मानवाधिकार का हनन नहीं …सामाजिक कार्यकर्ता ने लगाया ये आरोप …

 

रायगढ़ ।

रायगढ़। जिले के घरघोड़ा क्षेत्र में स्थित एसईसीएल की बिजारी खुली खदान के खिलाफ ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया है। ग्रामीणों ने पुनर्वास योजना के तहत उचित पुनर्वास, मुआवजा और रोजगार की मांग कर रहे है। जमीन कागजों पर अधिग्रहित कर लिया गया और कोयला की खुदाई भी आरंभ कर दी गई है परंतु जो सबसे बड़ा सवाल है वह है मुआवजा और पुनर्वास की जो अब तक अप्राप्त है। और यह सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है यह आरोप लंबे समय से खनन प्रभावित क्षेत्रों में काम कर रहे राजेश त्रिपाठी ने लगाया है।

बिजारी कोल माइंस प्रभावितों द्वारा मुआवजा और पुनर्वास को लेकर साल 2022 में भी व्यापक धरना प्रदर्शन आंदोलन किया गया था और तब उन्हे शीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया गया किंतु आज दो साल गुजर जाने के बाद भी मुआवजा और पुनर्वास का मामला एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है। धरना पर बैठे ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि उनकी मांगे जब तक पूरी नही होती, तब तक वे अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठे रहेंगे।

 

बीजारी कोल माइंस के प्रभावितों का कहना है कि कोयला खनन की वजह से आसपास की कृषि भूमि पूरी तरह से प्रभावित हो चुकी है, जिससे किसानों की आजीविका पर संकट गहराया है। खुली खदान और क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण की वजह से उनकी बची हुई कृषि योग्य भूमि भी बंजर हो चली है। इतना ही नहीं खदान से कुछ ही दूरी पर प्रभावित ग्रामीणों की बस्ती है, जिससे खदान में हो रही ब्लास्टिंग के कारण ग्रामीणों के मकानों की दीवारें दरक रही हैं, लेकिन अभी तक एसईसीएल और अन्य जिम्मेदारों ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया है और न ही कोई कार्रवाई की जा रही है।

धरने पर बैठे ग्रामीणों ने बताया कि उनके मकान का सर्वे 2018 में हुआ था, लेकिन ग्रामीणों को अब तक मुआवजा नहीं मिला है। उन्हें कंपनी प्रबंधन द्वारा मुआवजे के नाम पर केवल तारीखें ही दी जा रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि उनकी जीविका कृषि पर आधारित थी, लेकिन एस ई सी एल कंपनी ने खुली खदान के लिए उनकी भूमि खरीद ली, जिससे वे बेरोजगार हो गए । यदि जमीन उनके पास होती तो कृषि कार्य कर वे अपनी आजीविका चलाते किंतु आज ग्रामीण उससे भी वंचित हो गए हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा कि ये आर्टिकल 21 का सीधा सीधा उलंघन है और जमीन ली गई किंतु न तो मुआवजा मिला न पुनर्वास लाभ दिया गया और न ही नौकरी बिना इन सबके कोयला निकाला जा रहा है यह मानवाधिकार हनन हनन है इस पर एसईसीएल के खिलाफ मनाधिकार उलंघन का मामला दर्ज होना चाहिए और कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए। ग्रामीणों की खेती किसानी की जमीन छीन गई यदि आज वो जमीन किसानों के पास होती तो वे इससे खेती किसानी कर जीवन यापन आसानी से कर सकते थे पर प्रभावित ग्रामीण आज दो राहे पर खड़े है जिन्हे माया मिली न राम वाली कहावत चरितार्थ हो रहा है।

शमशाद अहमद /-

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