♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

कोरिया कांग्रेस: हरकतें तेजतर हैं मगर सफर आहिस्ता आहिस्ता..! कोरिया जिले के तीनों विधायक के अब तक के कार्यकाल की समीक्षा…

कोरिया कांग्रेस:

हरकतें तेजतर हैं मगर सफर आहिस्ता आहिस्ता!
कोरिया जिले के तीनों विधायक के अब तक के कार्यकाल की समीक्षा
लेखक-महेंद्र दुबे हाईकोर्ट के अधिवक्ता, लेखक व प्रसिद्ध साहित्यकार हैं
लेखक- महेंद्र दुबे
 छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार को काम करते लगभग आठ माह बीत चुके है। इन आठ महीनों में मन्त्रिमण्डल सहित किसी भी सियासी इदारों में न कोई परिवर्तन हुआ है और तमाम अंतर्विरोध और गुटीय समीकरण के बावजूद न ही कोई बड़े फेरबदल की कोई हलचल ही सुनाई दी है। इसका सीधा मतलब यहीं है कि वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व और संगठन को पूरी स्थिरता हासिल हो चुकी है। कांग्रेस में नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद भी पार्टी संगठन में सभी पुराने चेहरे जिनमें ज्यादातर ट्विटर योद्धा और सोशल मीडियाबाज भी शामिल है, अभी भी काबिज है। कोरिया जिले में भी जनप्रतिनिधियों और पार्टी संगठन का सूरते हाल कमोबेश ऐसा ही है।
      जिले की तीनों असेम्बली सीट कांग्रेस की झोली में आने के बाद मेरे जैसे सैकड़ो कांग्रेस सिम्पेथासाइजर्स (हमदर्दों) को उम्मीद थी कि कोरिया जिले में कांग्रेस, जनता की भाजपा सरकार से मुक्ति की चाह और बदलाव की छटपटाहट के नतीजे में मिली एक्सीडेंटल जीत को अपनी जीत समझने की बजाय, अपने विधायकों के काम और संगठन के कार्यक्रमों से जिले की अवाम को पार्टी ऑडियोलॉजी से मुतासिर करने में अपनी पूरी ताकत झोकेगी और मई 2019 के लोकसभा चुनाव तक आम वोटर को कांग्रेस के पाले में रोके रख कर “मोदी मैजिक” की कोई काट तैयार करेगी मगर अफसोस कि लोकसभा चुनाव की तारीख आते आते जिले के तीनों विधायक अपनी अपनी अलग अलग राजनैतिक निष्ठाओं तक महदूद होकर एक दूसरे से दूर होते गए और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया और स्थानीय न्यूज लिंक्स में फिजूल की कलाबाजियां करके अपने ही विधायक को सबसे आला और बाकी को नाकारा साबित करने की मुहिम छेड़े हुए थे! इधर संगठन का हाल कुछ यूं रहा कि जो पदाधिकारी या कार्यकर्ता जिस विधायक के क्षेत्र का रहा या जिस विधायक के प्रति निष्ठावान रहा, वो, केवल उसी विधायक के जयकारे लगाने को अपना राष्ट्रीय पार्टी दायित्व समझा हुआ था! निष्ठाएं बटीं तो सामूहिक उत्तरदायित्व का बोध भी जाता रहा नजीतन लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस जिले की तीनों विधानसभा में अपना ग्राफ पांच महीने में ही गिरा चुकी थी जिसका असर लोकसभा में दिखा और कांग्रेस हर क्षेत्र से पिछड़ गयी!

        लोकसभा चुनाव में जिले में कांग्रेस को मिली शिकस्त को ट्रेलर समझ कर,कोई सबक लेने की बजाय पार्टी पूरी फिल्म रिलीज करने की तैयारी में लगी हुई है! बैकुंठपुर विधायक श्रीमती अम्बिका सिंहदेव कई मामलों में बेहद सुलझी हुई लगती है, उनकी सादगी और जनसुलभता लोगों को अपील भी करती है, उनकी जिले के प्रति सोच और विकास की अवधारणा में “इन द इंटरेस्ट ऑफ पब्लिक एट लार्ज” दिखता भी है, साथ ही उनकी स्व. राम चन्द्र सिंहदेव(कोरिया कुमार) से जुड़ी विरासत और वैचारिक प्रतिबद्धता उम्मीद भी जगाती है मगर चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी उनके करीब समझे जाने वाले “प्लेइंग इलेवन” में शामिल स्थानीय नामों को पब्लिक इंटरेस्ट से शायद ही कोई सरोकार हो! कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप जो खुद को पोलिटिकल प्लेइंग इलेवन से बाहर देखते है वो पार्टी स्तर पर कुछ सकारात्मक काम करके पब्लिक का लीडर बन कर नेतृत्व को उन पर तवज्जो देने पर मजबूर करने की बजाय पिच खोदने की नई नई तरकीब सोचने में अपनी ऊर्जा गवांते रहते है। पार्षद और पंच का चुनाव खुद के अपने ही वार्ड से हार जाने वाले मोहल्लावीरों पर पार्टी संगठन भरोसा करेगा और  ऐसे लोगों को विधायक और पब्लिक के बीच की जगह पर कब्जा करने सुविधा देगा तो 28 कर्मचारियों के स्थानांतरण पर कुछ महीने पहले हुए बवाल जैसे भूचाल तो पार्टी में आते ही रहेंगे!  आखिर सरकारी ठेके के चाहत रखने वालों, ट्रांसफर में वसूली करने वालों, अधिकारियों कर्मचारियों का भयादोहन करने वालों को अपनी “दीदी” की सादगी और सोच से, कोरिया कुमार के सपने से और इंटरेस्ट आफ पब्लिक से लेना देना ही क्या होगा?
     मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल इतने सहज और सादा है कि उनके लिए ये याद रख पाना थोड़ा मुश्किल ही होता होगा कि उन्होंने किस विभाग के किस कार्यालय के लिए किसको विधायक प्रतिनिधि/प्रभारी नियुक्त किया है! उन्हें तो अपने प्रतिनिधियों/प्रभारियों की लिस्ट साथ में लेकर चलना पड़ता होगा ताकि वख्त जरूरत सनद रहे और याद आ सके कि मिस्टर एक्स फलाना कार्यालय के प्रभारी या प्रतिनिधि है! स्थानीय सोशल मीडिया स्पेस, खासकर स्थानीय वेब न्यूज लिंक्स जो आमतौर पर व्हाट्सएप ग्रुपों में शेयर करके पढवाया जाता है, में विधायक जायसवाल की ताबड़तोड़ उपस्थित का अंदाजा लगाने के लिए इतना बताना काफी होगा कि माननीय के समर्थकों ने इनकी हर छोटी बड़ी बात करामात का डिजिटल बतंगड़ बनाना मनेंद्रगढ़ को जिला बनाने से ज्यादा अहम समझते है। यहां तक कि महोदय मुख्यमंन्त्री की स्व. माताजी दुःखद निधन के बाद अंतिम संस्कार में शामिल होते है तो भी जिले को बाकायदा वीडियो शेयर करके बताया जाता है कि  देखिए आपके नेता कद्र कितनी है। ये विधायक साहब केंद्र सरकार या राज्य सरकार को किसी जन सुविधा संस्था जैसे अस्पताल के लिए पत्र भी लिख देते है तो इनका प्रचार तन्त्र उसको इस तरह प्रचारित करता है कि वो सुविधा रातोंरात स्थापित होकर काम करने लगी है।साथ ही स्वेच्छानुदान स्वीकृति के मामलों में खुद उनकी पार्टी के भीतर से विरोध उभरता रहा है! कुल मिला कर विधायक साहब के खाते में इन आठ माह में बतौर उपलब्धि घोषणाओं के अलावा, बताने के लिए कुछ भी ठोस नहीं है हालांकि उनसे उम्मीद अभी भी की जा सकती है।  कुल मिलाकर उनकी छवि मिलनसार, जनोन्मुखी और उद्यमी जरूर बनी हुई है मगर विधायक से उठकर आम जनता के बीच भविष्य में कांग्रेस पकड़ मजबूत करने में उनकी भूमिका अभी तक शिफर ही रही है!

 

       लोकल व्हाट्सएप और न्यूज लिंक्स के चैंपियन, भरतपुर-सोनहत के अति विशिष्ट विधायक माननीय श्री गुलाम कमरो का नूर तो रायबरेली से दिल्ली तक पसरा हुआ है! सरगुजा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बनने के बाद माननीय को विधायक की बजाय मंत्री ही लिखा जाता है! वैसे वो मंत्री नहीं है केवल प्रोटोकॉल के हिसाब से उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा भर प्राप्त हैं मगर उनके समर्थक उन्हें बिना विभाग या सभी विभाग का मंत्री ही समझते है और उन्हें हर जगह राज्य मंत्री ही लिखा समझा जाता है। विधायक कमरो ने सविप्र के उपाध्यक्ष बनने के बाद अपने विधानसभा क्षेत्र का दायरा जिले की सीमाओं तक फैला लिया है और दो अन्य विधायकों से जुदा अंदाज में अपनी पहुंच और सक्रियता जिले के कोने कोने तक फैला ली है हालांकि इस पर कई मौकों पर शिकवा शिकायत की भी खबरें आती रही है मगर उनकी अति सक्रियता और सर्व व्यापकता का आलम कुछ यूं रहा है कि माननीय महोदय, लोकसभा चुनाव के दौरान श्रीमती सोनिया गांधी को वोट दिलवाने रायबरेली तक का फेरा लगा कर आ चुके है हालांकि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में लोक सभा चुनाव में कांग्रेस धराशायी हो गयी थी! उनके प्रशासनिक जलवे के किस्से उनके समर्थकों से सुनियेगा तो वो गर्व से बताएंगे कि जिले में अल्पकाल के लिए कलेक्टर रहे श्री संदीपन भास्करन को भैया ने ही हटवाया था मगर क्यों के जवाब में सिर्फ भैया का ईगो घुसेड़ने से बड़ा कोई कारण उन्हें सूझता नहीं है जबकि कथित तौर पर भैया के ईगो के शिकार हुए कलेक्टर ने लगभग पांच छह माह के कार्यकाल में बेहतरीन काम किया था और उनके जैसे सुलझे हुए, जनपक्षीय और प्रयोगवादी प्रशासनिक मुखिया फिर कभी कोरिया को शायद ही नसीब हो! अभी हुए कर्मचारियों और अधिकारियों के ज्यादतर ट्रांसफर और ट्रांसफर कैंसिलेशन में इन्ही विधायक महोदय का नाम ही मंजरेआम में सुनाई पड़ता है। उपलब्धि के नाम पर इनके खाते में कई घोषणाएं दर्ज है जिन्हें अमली जामा पहनाने में वख्त लगेगा! हां विधायक बनने से पहले के “गुलाब भैया” अब मंत्री है लिहाजा मंत्री का रुतबा भी ढोना जरूरी है! शायद इसीलिए उनके समर्थक और न्यूज लिंक्स व्हाट्सएप ग्रुप्स में उनकी बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें साझा करके और उनके साथ खुद की तस्वीर परोस के विधायक महोदय का कद बढाने की जद्दोजहद में मुब्तिला रहते हैं! किसी जमाने में मंत्री महोदय के साथ रहे कुछ जीरोगण जो कांग्रेस पार्टी के किसी विंग के अघोषित पदाधिकारी थे जिनकी पार्टी के भीतर या बाहर कोई इमेज या पब्लिक इमेज होने की बात भी सोचना बहादुराना काम होगा , आजकल उनकी टीम के हीरो खिलाड़ी है! अगर सोशल मीडिया के इन चैम्पियन मंत्री महोदय की पार्टी इमेज या कांग्रेस विचारधारा के प्रसार में कोई योगदान तलाशने निकलना चन्द्रयान मिशन में निकलने जैसा ही होगा!
अगर आप 2019 से पिछले दस साल भाजपा और उसके अनुषंगी संगठनों की आक्रमक प्रचार शैली से वाकिफ होंगे तो आपको पता चलेगा कि भाजपा के चुनावी मुद्दों के पक्ष में जनमत जुटाने और कांग्रेस और पण्डित नेहरू की नीतियों और कार्यक्रमों के खिलाफ विषवमन करने, उनके दक्षिणपंथी प्रचारक, बुद्धिजीवी, पब्लिक स्पीकर और कलाकर देशभर में लगातार कार्यक्रम करते रहे थे! दक्षिण पंथी आडियोलॉग पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा, फ़िल्म मेकर विवेक अग्निहोत्री जैसे सैकड़ों भाजपा समर्थक रायपुर और बिलासपुर जैसे छोटे शहरों में स्पीच देते रहे है और उनकी स्पिचेस को भाजपा की सोशल मीडिया टीम वायरल कर जन जन तक पहुंचा रही थी! ये एक तरह का कांग्रेस के खिलाफ डिजिटल डिसइंफॉर्मेशन जंग थी जो उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग पर कब्जा करके लोगों को मोदी से इतर कुछ और सोचने ही नहीं दिया था! पाइंट ये है कि कांग्रेस ने चुनावी हार के साथ वैचारिक जंग में भी हथियार डाल दिये है। स्थानीय विधायकों को समझना होगा कि वैचारिक जंग विचारों के प्रचार प्रसार से जीती जाती है जो कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर करने पर असफल रही है! चार साल चार माह बाद अपने नाम के आगे पूर्व विधायक लगने से बचने के लिए शासक नहीं, पब्लिक के हरवाह की इमेज बनाने के साथ स्थानीय स्तर पर कांग्रेस की विचारधारा और ऑडियोलॉजी के मोर्चे पर भी पब्लिक को एड्रेस करना पड़ेगा! सिर्फ व्यक्तिगत मदद और काम करके चुनाव जीता जाता तो इलाज वाले बाबा की इमेज के बावजूद कैबिनेट मंत्री भैयालाल राजवाड़े क्यों चुनाव हार जाते! दीदी, और भैया की इमेज और सम्बोधन से आप व्यक्तिगत रिश्ते बना सकते है मगर किसी गांव में ट्रांसफार्मर की बाट जोह रहे ग्रामीण, आपके प्रयास से बिजली आने पर बिना कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये आपके मुरीद हो जाएंगे! इसलिए कोरिया और कांग्रेस का हित इसी में है कि माननीय विधायकगण अपने इर्द गिर्द मंडराते चेहरों की अवाम में छवि का स्वयं मूल्यांकन करें, व्यक्तिगत सम्बन्धों की बजाय पार्टी हित और विचारधारा को तरजीह दें, मीडिया कैम्पेन अपना करने की बजाय कांग्रेस का करें, और ट्रांसफर पोस्टिंग का खेलने की बजाय पब्लिक ओरिएंटेड काम करें ताकि अगले विधानसभा चुनाव के बाद मुझ जैसे कांग्रेस समर्थक को आपके लिए भी पाकिस्तानी शायर का वही शेर न लिखना पड़े जो मैंने पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री राजवाड़े के लिए लिखा था कि….
क्यूं उदास फिरते हो गर्मियों की शामों में..
इस तरह तो होता है, इस तरह के कामों में!

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close