रायगढ़ जिला मुख्यालय से भाजपा और कांग्रेस में कद्दावर नेता बनने कर रहे जद्दोजहद …… कृष्ण कुमार गुप्ता के बाद कांग्रेस की राजनीति में नहीं मिला स्थाई कद्दावर नेता ….कांग्रेस और भाजपा की राजनीत खरसिया से ……रायगढ़ भाजपा में ओपी के आने से बुझ गई इन सबकी आस
रायगढ़ ।
रायगढ़ जिले में कांग्रेस और भाजपा दोनों अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाने के लिए संघर्ष कर रहे है। पुराने चेहरों की जगह नए चेहरे सामने आ रहे हैं इससे रायगढ़ की राजनीति में एक नया सबेरा होने वाली जैसी स्थिति बनी हुई है। पहले के कांग्रेस और भाजपा में जो नेतृत्व कर्ता हुआ करते थे उन नेतृत्वकर्ताओं की रिक्तता के बाद राजनीतिक विरासत अगली पीढ़ी को मिलता दिख रहा है। मौजूदा समय में रायगढ़ जिले में भाजपा और कांग्रेस दोनों की राजनीति वर्तमान खरसिया से ही नियंत्रित हो रही है। शहर में जो देखने को मिल रहा है इस लिहाज से जिला मुख्यालय से न ही भाजपा और न ही कांग्रेस में कोई दमदार नेता दिखाई दे रहा है और मौजूदा समय में रायगढ़ की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल के नेता इसी जद्दोजहद में जुझ रहे हैं।
अविभाजित रायगढ़ जिले के समय से कांग्रेस के वर्चस्व की बात करें तो जिले से अविभाजित सारंगढ़ से राजा नरेश चंद्र मुख्यमंत्री बने तो यहीं से रजनीगंधा रायगढ़ लोकसभा से सांसद के तौर पर रहीं कमला देवी राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं फिर पुष्पादेवी जैसी दिग्गज कांग्रेसी नेता के रूप में उभरी और लोक सभा सांसद निर्वाचित हुई ये सभी अपने समय के दिग्गज नेता हुआ करते थे।
बदलते दौर की बात करें जिले के नवपाली गांव का लेकिन पढा लिखा वेल एजुकेटेड युवा अच्छी खासी नौकरी छोड़कर राजनीत में कदम रखा और वह है डॉ शक्राजीत नायक जो संघर्ष करते हुए एक निर्णायक भूमिका निभाने वाले नेता के रूप में उभर कर निकले। कालांतर में एक ऐसा मोड़ आया जब वे भाजपा छोड़कर अर्जुन सिंह के बेहद करीबी अजीत जोगी की सरकार में मंत्री बनने कांग्रेस में शामिल हो गए और भाजपा के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता बन गए। इसके बाद उनके पुत्र प्रकाश नायक रायगढ़ की राजनीत में पदार्पण होता है और रायगढ़ जिला मुख्यालय के विधायक चुन लिए जाते हैं। लेकिन कृष्ण कुमार गुप्ता के बाद ऐसी लोकप्रियता न डॉक्टर शक्रजीत हासिल कर पाए और न ही उनके पुत्र प्रकाश नायक, यही वजह है की आज कांग्रेस में जिला मुख्यालय में कांग्रेस का कोई भी कद्दावर नेता बन कर नहीं उभर पाया।
मौजूदा दौर पर गौर करें तो कांग्रेस में जिले के कद्दावर नेता उमेश पटेल हैं और भाजपा में ओपी चौधरी हैं। जिले की राजनीत अब इन्ही दो नेताओं के इर्द गिर्द घूम रही है जिसे स्वीकार करना होगा। इतिहास के पन्नो पर नजर डालें तो कांग्रेस में लंबे समय तक रामकुमार अग्रवाल के इर्द गिर्द जिले की राजनीत चलती थी उस समय पूरा जशपुर जिला तक हुआ करता था। उनके इशारों पर टिकिट तय हुआ करती थी। कांग्रेस में समय बदला खरसिया से नंदकुमार पटेल और रायगढ़ से कृष्ण कुमार गुप्ता एक कद्दावर नेता के रूप में उभर कर आए और लंबे समय तक जिले में कांग्रेस के अंदर गद्दी और नंदेली का बोलबाला रहा।
वहीं भाजपा में दिलीप सिंह जूदेव और खरसिया से लखीराम अग्रवाल हुआ करते थे। इन दोनो नेताओं का वर्चस्व सिर्फ रायगढ़ जिले तक ही सीमित नहीं था बल्कि ये दोनों नेता भाजपा के स्टार चेहरा हुआ करते थे। लखीराम अग्रवाल का भाजपा संगठन अंदर तक पकड़ रही भले ही वे कभी चुनाव नहीं जीते किंतु भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते रहे और दिलीप सिंह जूदेव की छवि एक क्रिटिकल किन्तु युवाओं में जोश भरने वाला चेहरा हुआ करता था और प्रदेश की राजनीत का एक चेहरा हुआ करती थी। इनके बाद विजय अग्रवाल और रोशनलाल अग्रवाल जिला मुख्यालय के दिग्गज भाजपा नेता हुआ करते थे कालांतर में इनकी रिक्तता को कोई पूरा नहीं कर पाया।
वर्तमान में रायगढ़ विधान सभा से बतौर भाजपा प्रत्याशी अघोषित रूप से घोषित उम्मीदवार माने जा रहे हैं। इसके पहले जहां रायगढ़ भाजपा में विजय अग्रवाल एक बड़ा चेहरा हुआ करता था। विजय के बाद गुरुपाल भल्ला को देखा जाता था। अगली पीढ़ी से विकास केडिया और गौतम अग्रवाल को देखा जाता रहा है लेकिन ओपी के सामने आने बाद अब वो बात नहीं रह गई है। और आज राजनीत के फिर से बदलते दौर में हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की ओपी चौधरी प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं। आज भाजपा में ओपी चौधरी एक बड़ा चेहरा है भले ही है लेकिन जिला मुख्यालय से क्या उनकी राजनीति चमक पाएगी यह गर्भ में है। जिस तरह कांग्रेस में उमेश पटेल बड़ा चेहरा है और जिले की राजनीति कहीं न कहीं उमेश पटेल के इर्द गिर्द घूमती है प्रदेश की राजनीत के साथ जिले में उनका अलग वर्चस्व है । ऐसा ही जिला मुख्यालय से कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं जिसका लोगों में इंतजार है।
रायगढ़ की राजनीति में अग्रवालों का वर्चस्व यदि देखा जाए तो लंबे समय तक चला रामकुमार अग्रवाल से लेकर कृष्ण कुमार गुप्ता का लंबे समय तक रहा है। बाद में रायगढ़ जिले की राजनीत भाजपा के विजय अग्रवाल, रोशनलाल अग्रवाल के इर्द गिर्द रही। जिले की भाजपा में लखीराम अग्रवाल के बाद अगर कोई कद्दावर भाजपा नेता आया तो वो विजय अग्रवाल रहे लेकिन निर्दलीय चुनाव लड़कर भाजपा से बगावत कर बैठे इसी दौरान जिले में दिग्गज भाजपा नेता के तौर पर रोशनलाल अग्रवाल का उदय हुआ। और कहीं न कहीं भाजपा के अंदर विजय अग्रवाल का कद कम हुआ यही वजह है की आज जिले में विजय अग्रवाल जैसे कद्दावर नेता की जगह ओपी चौधरी के बीच घूम रही है। वर्तमान में जिले में ओपी चौधरी ही है जिसे भाजपा के लोग स्वयं स्वीकारते हैं। यानि आज जिले में विजय अग्रवाल को छोड़कर ओपी चौधरी से बड़ा कोई दूसरा नेता नहीं है। आज पूरा जिला भाजपा ओपी चौधरी के इर्द गिर्द ही घूम रहा है। यह बदलती राजनीतिक परिदृश्य का नतीजा है। ओपी के आने से सुनील रामदास अग्रवाल के अरमानों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है।
वहीं जिले की कांग्रेस में परिसीमन के बाद रायगढ़ में सरिया के जुड़ जाने से नए समीकरण का आगाज हुआ और कृष्ण कुमार से गद्दी छीन गई और यह ताज डॉक्टर शक्रजीत नायक के इर्द गिर्द घूमने लगी और कांग्रेस से अग्रवाल वर्चस्व समाप्त हो गया। ऐसा ही कुछ भाजपा से ओपी की दावेदारी के बाद प्रतीत होता है।
वहीं कांग्रेस में विरासत अगली पीढ़ी का इंतजार कर रहा है। जिला मुख्यालय से कांग्रेस की विरासत को संभालने वालों की कतार में सक्रिय नेता के रूप में जयंत ठेठवार, अनिल अग्रवाल चीकू, शहर का सर्वधर्म संभाव का भाव रखने वाला चेहरा सलीम नियरिया जैसे चेहरे हैं। कांग्रेस में अगली पीढ़ी से छात्र राजनीत से संघर्ष करते हुए युवा कांग्रेस में प्रदेश स्तर का एक प्रमुख नेता रायगढ़ जिला मुख्यालय से राकेश पांडेय के रूप में राजनीतिक पटल पर उदय होता दिखाई दे रहा है। वर्तमान में जिला मुख्यालय के ये चेहरे अपनी अपनी जगह पैठ रखने वाले नेता हैं। कांग्रेस में संगठनात्मक पकड़ की बात करें तो जिले में अनिल अग्रवाल चीकू है इसके बाद जयंत ठेठवार कांग्रेस में चाणक्य की राजनीत वाला चेहरा माना जाता है। इन दिनों प्रकाश के बाद कौन इस पर जगह को भरने के लिए अनिल चीकू और जयंत ठेठवार दावेदार हैं। वहीं जिला मुख्यालय से भाग्य आजमाने शंकरलाल अग्रवाल भी बेताब हैं। फिलहाल रायगढ़ जिला मुख्यालय से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में वर्चस्व बनाने की होड़ जारी है। आसन्न चुनाव नेताओं का भविष्य तय करेगा की जिला मुख्यालय का दमदार चेहरा के रूप में कौन उभरेगा।