♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

बिना पर्यावरण स्वीकृति दो साल से चल रहा रायगढ़ इस्पात ….पर्यावरण विभाग का खुला सरंक्षण…. अधिकारी अपनी खाल बचाने करते है ये जतन …उच्च पदों पर बैठे अधिकारी पर कार्रवाई कौन करेगा … है एक बड़ा प्रश्न …अधिकारी अपनी जेब भर जिलेवासियों को भयंकर प्रदूषण में झोंक रहे …सामाजिक कार्यकर्ता रमेश ने लगाया गंभीर आरोप

 

रायगढ़।

कहते हैं जब बाड ही खेत खाने लगे तो खेत को तो भगवान भी नहीं बचा सकता । कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ के पर्यावरण का है, कहने को छत्तीसगढ़ में पर्यावरण की सुरक्षा करने भारी भरकम पर्यावरण सरंक्षण मंडल की टीम है लेकिन इसका काम सरंक्षण की बजाय भक्षण करना ही प्रतीत होता है । यह आरोप रायगढ़ इस्पात को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल ने लगाया है, रायगढ़ जिला इन्ही सब वजहों से भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहा है और अधिकारी आंखे मूंदे अपनी कमाई का जरिया बना रखे है और जिले वासियों को भयंकर प्रदूषण की आग में झोंक रहे हैं।

बिना स्वीकृति के रायगढ़ इस्पात की चालू रोलिंग मिल

ऐसा ही एक ताजा मामला है रायगढ़ के देलारी सराईपाली स्थित रायगढ़ इस्पात एंड पावर लिमिटेड का है। सन 2005 में इस प्लांट की स्थपाना हुई 2010 में वृहद् विस्तार के लिये केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति मिल गई । विस्तार का कार्य पूरा नहीं होने के कारण पहले 2015 में फिर 2017 में स्वीकृति की मियाद अंततः 2020 तक बढ़वा ली गई । और बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के उत्पादन शुरू कर दिया गया, मतलब यदि 2020 तक उत्पादन शुरू नहीं होता तो पर्यावरणीय स्वीकृति स्वयं निरस्त हो जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ लेकिन जिम्मेदार विभाग के संरक्षण में उत्पादन आरंभ कर दिया गया। तब से लेकर आज तक लगभग दो वर्षों से रोलिंग मिल में उत्पादन बेरोकटोक निर्बाध –गति से चल रहा है । जब ऊपर तक सेटिंग और राजनैतिक रसूख हो तो काम रुकने का तो सवाल ही नहीं है । इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल के द्वारा डायरेक्टर एंड मेंबर सेक्रेट्री EAC इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट दिल्ली, चीफ सेक्रेटरी छत्तीसगढ़, मेंबर सेक्रेट्री छत्तीसगढ़ शासन, मेंबर सेक्रेट्री छत्तीसगढ़ पर्यावरण एवं कंजरवेशन सहित कलेक्टर रायगढ़ और पर्यावरण संरक्षण मंडल को विस्तृत जानकारी देकर कारवाई की मांग की गई है।

सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि रायगढ़ इस्पात की अभी जो 20 मार्च को जनसुनवाई नियत की गई है वो सोंचे समझे षड्यंत्र का ही हिस्सा है । उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि जन सुनवाई के बाद केंद्र सरकार से फ्रेश स्वीकृति प्राप्त कर वर्षों से चल रहे अवैधानिक प्लांट को वैधानिक दर्जा मिल जायेगा। इससे मामला फाइलों में बंद हो जाता और उद्योग व् पर्यावरण विभाग दोनों की बल्ले बल्ले हो जाती।


ई.आई. ऐ. 2006 के अनुसार केंद्र से स्वीकृति पश्चात् ही उद्योग की स्थापना व् उत्पादन शुरू किया जा सकता है। पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम 1986, एयर एक्ट 1981 एवं वाटर एक्ट 1974 के तहत ऐसे मामलों में पर्यावरण विभाग कोर्ट में उद्योग के विरुद्ध अपराधिक मामला दर्ज करवाता है जिसमे सजा का प्रावधान है लेकिन रायगढ़ इस्पात को बचाने अधिकारियों ने पूरा खुला संरक्षण दे रखा है।
इस संगीन अपराध की जानकारी जन चेतना के रमेश अग्रवाल ने जिला कलेक्टर, मुख्य सचिव व् केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय तक कर दी है लेकिन यदि कुछ नहीं होता है तो वे हाई कोर्ट या एनजीटी जाने से भी गुरेज नहीं करेंगे। लेकिन मामला यंहा पेचीदा है इस मामले में दोषी तो उद्योग के साथ साथ विभाग के आला अधिकारी भी माने जायेंगे। उद्योग के खिलाफ तो फिर भी पर्यावरण विभाग कोर्ट जाकर अपनी खाल बचाने की कोशिश कर सकता है लेकिन सदस्य सचिव जैसे ऊँचे ओहदे पर तैनात कमाऊ अधिकारी पर कौन कार्यवाही करेगा।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close