मनेंद्रगढ़ थाने में हुई शस्त्र पूजा…हर साल दशहरे पर होती है विधि विधान से यह पूजा…पुरानी।परम्परा का हो रहा निर्वहन….
ध्रुव द्विवेदी
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करने की परंपरा आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा किया करते थे। साथ ही अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए शस्त्रों का चुनाव भी किया करते थे।इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए थाना मनेन्द्रगढ़ में शस्त्र पूजा की गई।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी मनाई जाती है। इस दिन देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। इस पूजा में मां रणचंडी के साथ रहने वाली योगनियों जया और विजया को पूजा जाता है। इनकी पूजा में अस्त्र-शस्त्रों को सामने रखकर पूजा करने की परंपरा रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है। हमारी सेना और पुलिस आज भी इस परंपरा को निभाती है और विजयादशमी भारतीय सेना व पुलिस भी शस्त्र पूजा करती है।
भारतीय सेना व पुलिस भी हर साल दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करती है। इस पूजा में सबसे पहले मां दुर्गा की दोनो योगनियां जया और विजया की पूजा होती है फिर अस्त्र-शस्त्रों को पूजा जाता है। इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना है। मान्यताओं के अनुसार रामायण काल से ही शस्त्र पूजा की परंपरा चली आ रही है। भगवान राम ने भी रावण से युद्ध करने से पहले शस्त्र पूजा की थी।शस्त्र पूजा के पूर्व शस्त्रों को इकट्ठा किया जाता है फिर उनपर गंगाजल छिड़का जाता है। इसके बाद सभी शस्त्रों को हल्दी व कुमकुम का तिलक लगाकर फूल अर्पित किए जाते हैं। शस्त्र पूजा में शमी के पत्ते का बहुत महत्व है। शमी के पत्तों को शस्त्रों पर चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। शस्त्र पूजा में नाबिलग बच्चों को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि बच्चों को किसी भी तरह का प्रोत्साहन ना मिले।
इस अवसर पर थाना प्रभारी तेजनाथ सिंह,एस आई साकेत बंजारे, कमलेस्वर साय पैकरा , राम रूप सिंह,बाबूलाल, बाल मुकुंद पैकरा, भूपेंद्र यादव,बुधवार सिंह, विमल लकड़ा प्रमुख रूप से मौजूद रहे।