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बाधाओ पर विजय पाना चैम्पियन का किरदार है… और…संघर्ष का दूसरा नाम संजय अग्रवाल है…संजय अग्रवाल के जन्मदिन पर विशेष..

अनूप बड़ेरिया 
कोरिया जिले में सामाजिक और व्यावसायिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले व बैकुण्ठपुर को एक नया आयाम देने वाले जिस शख्स का नाम सबसे पहले जहन में उभर कर आता है तो वह शख्सियत और कोई नही शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी, कालोनाइजर व समाजसेवी संजय अग्रवाल हैं। 
28 अक्टूबर 1969 एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेने के बाद संजय अग्रवाल की आरंभिक शिक्षा बैकुण्ठपुर के केंद्रीय विद्यालय में संपन्न हुई। 11 वी और 12वीं की पढ़ाई संजय अग्रवाल ने नागपुर से करने के बाद आगे की पढ़ाई इंदौर में संपन्न करने के बाद संजय ने वापस आकर अपने पिता का कपड़े का व्यवसाय कुशलता पूर्वक संभाल लिया। चूंकि संजय अग्रवाल में व्यवहार कुशलता एवं लोगों की सेवा करने की भावना बचपन से ही पिता महंगी लाल अग्रवाल एवं माता श्रीमती शकुंतला अग्रवाल से मिली थी। इसी वजह से सर्वप्रथम लायंस क्लब से जुड़ने के बाद संजय ने ग्रामीण अंचलों में जाकर गरीब तबके के लोगों की क्लब के माध्यम से मदद करने का जो सिलसिला आरंभ किया, वह आज तक बरकरार है। जिस मिठास व प्रेम पूर्वक वह लोगों से बात करते हैं लोग पहली ही मुलाकात में उनके मुरीद हो जाते हैं उनकी इस व्यवहार कुशलता को इन शब्दों में बयां कर सकते हैं कि..
प्रेम परिचय को पहचान बना देता है
वीराने को गुलिस्तान बना देता है “
अपने व्यापार को नया आयाम देने के लिए संजय अग्रवाल रायपुर में शिफ्ट हुए लेकिन मातृभूमि का प्रेम और शहर के लिए कुछ करने के जज्बे ने महज 4 माह में ही उन्हें वापस बैकुण्ठपुर आने को मजबूर कर दिया।
व्यवसायिक तरक्की करते हुए संजय अग्रवाल ने पहले गवर्नमेंट सप्लायर का कार्य करने के  बाद 2009 से कॉलोनाइजर का काम करते हुए शहर के लोगों को उनके सपनों के अनुरूप मकान बनाकर देना आरंभ किया। पहले शकुंतला कॉलोनी फिर एमएलए नगर और उसके बाद अग्रवाल सिटी बनाकर बैकुण्ठपुर के व्यापार को एक नई गति व नया आयाम देने के साथ शहर को तरक्की की राह में दौड़ा दिया। यह एक ऐसा कार्य हुआ है जो शहर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है, आज यदि इनके द्वारा किए गए विकास कार्य को बैकुंठपुर के नक़्शे से हटा कर शहर की परिकल्पना की जाए तो तस्वीर कुछ और नज़र आएगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता, चूंकि लोगों को मकान बनाकर देने का व्यवसाय काफी जोखिम, संघर्षपूर्ण और व्यवसायिक दांवपेच वाला होता है इसलिए व्यवसायिक दांव पेंच आवश्यक भी था जिसमें कुछ उनसे त्रुटियाँ भी हुईं। जिसे अनावश्यक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की तुष्टि के लिए विवाद का मुद्दा बनाया जाता रहा है।  लेकिन इसे कुछ इस तरह कहा जा सकता है कि…
” जिस व्यक्ति ने कभी गलती नही की…”
“उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नही की…”
बिजनेस में हर समय कुछ नया करने  के बीच संजय अग्रवाल हिंदू धर्म के लिए भी आगे आते रहते है। इसी वजह से उन्हें श्रीराम सेना का प्रमुख भी बनाया गया श्रीराम सेना के बैनर तले संजय अग्रवाल के नेतृत्व में कई रैलियां धरना प्रदर्शन व अनेक धार्मिक आयोजन भी किए गए। समाज में उनके नेतृत्व क्षमता और आकर्षक व्यक्तित्व व प्रेम व्यवहार को देखते हुए उनके समर्थकों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। यही वजह है कि  वो आज युवा वर्ग के आइकॉन बन चुके हैं । उनके एक आह्वान में सैकड़ों समर्थक समाज हित में खड़े हो जाते हैं। उनके नेतृत्व क्षमता को इन पंक्तियों में ढाला जा सकता है..
लीडर कमजोरी को ताकत मे तब्दील करता है, राह की बाधा को सफलता की सीढ़ी बनाता है और हार को जीत मे तब्दील करता है..यही लीडरशिप है इससे बड़ी कोई लीडरशिप नहीं है..”
जबसे उनके व्यापार की एक धुरी उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सीमा अग्रवाल बन गई हैं , तब से संजय को समाज सेवा एवं अन्य गतिविधियों के लिए भरपूर समय भी मिल रहा है। धर्मपत्नी के द्वारा व्यवसायिक कार्यों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को संभाल लेने के बाद संजय जिस तरह सामाजिक कार्यों के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं नि:संदेह उनके विरोधियों की संख्या लगातार बढ़ती जाएगी।
हाल ही में नशा मुक्ति को लेकर उनके द्वारा गठित की गई सामाजिक संस्था निदान के द्वारा कई ड्रग माफियाओं को पकड़वाने के बाद निदान की टीम की धमक राजधानी रायपुर तक पहुंच गयी। लोगों की लगातार मदद करने और सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की वजह से राजनीति क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों को यह लगने लगा कि शायद संजय अग्रवाल समाज सेवा के माध्यम से राजनीति में कदम रखना चाह रहे हैं इस वजह से कई लोगों ने बेमतलब प्रतिद्वंद्विता रखकर संजय को परेशान करने कि कई प्रकार की कोशिश की। लेकिन अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहने वाले संजय अग्रवाल ने अपने व्यवहार के मुताबिक इन बातों की परवाह ही नहीं की.. उनकी संघर्ष करने की क्षमता व जज्बे को इन पंक्तियों में पिरोया जा सकता है कि…
सिकंदर हालात के आगे नहीं झुकता, तारा टूट भी जाए तो जमीन पर नहीं गिरता “
“अरे गिरते है हजारो दरिया समुंदर मे पर कभी कोई समुंदर किसी दरिया मे नहीं गिरता “
चूंकि संजय अग्रवाल भारतीय जनता पार्टी से प्रारम्भ से जुड़े हुए हैं। इसलिए वह राजनीतिक गतिविधियों में भी संलग्न रहते हैं पार्टी के कार्यक्रमों में जाना और भाजपा के लिए कार्य करना उनका कर्तव्य भी है। इन्ही वजहों से उनके अघोषित राजनीतिक प्रतिद्वंदी उन्हें अपना आगामी राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानने लगे हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल से जुड़ा है तो स्वभाविक है की पार्टी के माध्यम से उसकी कुछ महत्वाकांक्षा भी हो सकती है। और यदि संजय अग्रवाल भी इस तरह की कोई महत्वाकांक्षा रखते हैं तो इससे किसी को कोई बैर या समस्या नहीं होना चाहिए। इसलिए संजय के लिए कहा जा सकता है कि…
” मंजिल मिले ना मिले ये तो मुकद्दर की बात हैं..” 
” हम कोशिश भी ना करे ये तो गलत बात हैं…”
संजय अग्रवाल की एक और पहचान उच्च राजनैतिक पकड़ के साथ-साथ राजधानी तक के बड़े अधिकारियों से नज़दीकी सम्बंध की है, जिसका लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं। यही कारण है बिना किसी संवैधानिक पद के प्रतिदिन लोग अपनी समस्याओं के समाधान  लिए श्री अग्रवाल के पास पंहुचते है, जिसे बड़ी विनम्रता और सहजता से उनके द्वारा सहयोग किया जाता है। संजय अग्रवाल के सामाजिक हितों में कार्य करने के बीच एक बात तो यह भी है कि वह अपने उसूलों से कोई समझौता नहीं करते हैं जितना हो सके वह प्रेम व्यवहार और झुककर विनम्रता से लोगों को अपना बनाने का प्रयास करते हैं । लेकिन बावजूद इसके यदि कोई उनके वजूद पर ही प्रहार करने की कोशिश करता है तो उसका मुकम्मल जवाब भी वह देते हैं। इसे कुछ इस तरह कहा जा सकता है कि..
” उसूलों पे आंच आए तो टकराना ज़रूरी है और ज़िंदा हो तो ज़िंदा नज़र आना जरूरी है “
 जिस प्रकार युवा संजय अग्रवाल लोगों की मदद करते हुए व्यवसायिक, सामाजिक और राजनीति तरक्की करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। निसंदेह आने वाला समय उनका काफी उज्जवल है 28 अक्टूबर को उनके जन्मदिन पर News-11 की पूरी टीम की ओर से उन्हें अशेष बधाइयां … अंत में उनके लिए कहा जा सकता है कि..
” जीवन में असली उड़ान अभी बाकी हैं..हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी हैं..”
“अभी तो नापी हैं सिर्फ मुठ्ठी भर जमीन..अभी तो सारा आसमान बाकी हैं…”

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