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कांग्रेस क्यों नहीं घबराती..! इस बखरी में आना, रूठ कर जाना, फिर लौट आना..यह सब कांग्रेस में नियमित खेल..

कांग्रेस एक अंतराल पर जाती है गैरेज में..

ज्योतिरादित्य सिंधिया का जाना कोई बड़ी खबर नहीं है, न ही कांग्रेस के लिए चौंकने का असबाब। कांग्रेस खुली सदस्यता की पार्टी रही है, मतभिन्नता से वहां कोई परहेज नहीं है। उसके चिरयुवा बने रहने के जो कई कारण हैं, उनमें से एक यह मतभिन्नता भी है।कांग्रेस का इतिहास बताता है कि जब-जब बुद्धि-विलासी तबके ने इसके खत्म होने की भविष्यवाणी की, वह गलत साबित हुई है।

इस बखरी में आना,रूठ कर जाना, फिर वापस आ जाना, यह सब कांग्रेस के आंगन में खेले जाने वाला नियमित खेल रहा।

कांग्रेस का मुखिया इसका अभ्यस्त होता है।
      1922 में चौरी-चौरा कांड हुआ। गांधी ने आंदोलन  वापस लिया, पार्टी टूट गई। जो बचे भी, वे आधे मन से। भविष्यवाणी कांग्रेस खत्म। 1946- 47 भारत-पाक बंटवारे का प्रस्ताव कांग्रेस दो खांचों में खड़ी हो गई। भविष्यवाणी हुई। कांग्रेस खत्म। 1948 के बाद समाजवादी कांग्रेस से बाहर निकले, बाकी बचा कांग्रेस का बूढ़ा नेतृत्व। सवाल उठा-नेहरू के बाद? भविष्यवाणी हुई-कांग्रेस समाप्त। 1967 के गैर-कांग्रेसवाद ने समूची फिजां ही बदल दी- कांग्रेस का अंत। 1971 कांग्रेस टूटी। इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने पार्टी से बाहर निकाला। कांग्रेस खत्म। 1977 का खेल जगजाहिर है। कांग्रेस फिर उठ खड़ी हुई। कांग्रेस एक अंतराल पर गैरेज में जाती है।
चंचल की फेसबुक वॉल से

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