वार्ड खाली है पर केवल वीआईपी लोगों के लिए है कह कर डॉक्टर ने मरीज को अस्पताल से वापस लौटाया.. कांग्रेसी कार्यकर्ता के बीमार पिता को अस्पताल में नहीं किया भर्ती..
10 August 2019
वार्ड खाली है पर केवल वीआईपी लोगों के लिए है कह कर डॉक्टर ने मरीज को अस्पताल से वापस लौटाया..
कांग्रेसी कार्यकर्ता के बीमार पिता को अस्पताल में नहीं किया भर्ती
जिला चिकित्सालय में अव्यवस्थाओं के साथ बढ़ रही दुर्व्यवहार की शिकायतें
पहले भी डस्टबिन में गिरने से नवजात की मौत, मरीज के शरीर पर चीटियां, बच्चे की बांहों में नस की बजाए चमड़ी में नीडिल लगाने जैसी हो चुकी है अनेक घटनाएं..
अनूप बड़ेरिया
कोरिया जिले के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल इन दिनो पूरे छग में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह भी किसी ताबिले कारीफ काम के लिए नहीं बल्कि अव्यवस्था और मेडिकल स्टाफ के दुर्व्यवहार के लिए खूब साफ हो रहा है। 11 माह के मासूम बच्चे की बाह में नस की बजाए चमड़ी में नीडिल लगाने की बात अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि कांग्रेसी कार्यकर्ता के बीमार पिता को यह कहकर अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया कि जो वार्ड खाली हैं वह केवल वीआईपी लोगों के लिए हैं। और उन्हें गंभीर अवस्था में बैरंग वापस कर दिया गया जिसके बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता को अपने घर में पिता को रखकर बोतल चढ़ा कर इलाज करवाना पड़ रहा है।
दरअसल बैकुंठपुर के वार्ड क्रमांक 7 निवासी कांग्रेसी कार्यकर्ता निशांत बड़ेरिया के पिता प्रकाश चंद्र बड़ेरिया उम्र 60 वर्ष की तबीयत काफी खराब थी, उन्हें शनिवार को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय बैकुंठपुर ले जाया गया। जहां डॉक्टर एके सिंह ने मरीज की हालत देखकर जांच के बाद उन्हें भर्ती करने को कहा। निशांत जब पर्ची लेकर ड्यूटी में उस वक्त तैनात डॉ डीके चिकंजूरी के पास पहुंचे और उन्होंने अपने पिता के भर्ती संबंधित कागजात दिखाएं। इस पर डॉ चिकंजूरी ने सीधे कहा कि अभी अस्पताल में प्रायवेट कोई भी वार्ड खाली नहीं है, जहां मरीज को भर्ती किया जा सके। निशांत ने जब कहा कि प्राइवेट वार्ड नंबर 2 और 4 खाली हैं। तब डॉक्टर चिकन्जुरी ने कहा कि यह दोनों वार्ड वीआईपी के लिए आरक्षित है जो कलेक्टर, जज, मंत्री, विधायक आदि के लिए है। इस लिए यह वार्ड आम मरीजो को नही दिया जा सकता है। इसके लिए सिविल सर्जन से लिखाना होगा। जिस पर निशांत ने सिविल सर्जन डॉक्टर एसके गुप्ता को फोन लगाया तो उस वक्त उन्होंने फोन नही उठाया। इसके बाद जब मरीज को भर्ती नही किया गया तो निशान्त थक हार कर कांग्रेसी नेताओं को फोन लगाया। जब इसके बाद भी उसके पिता को भर्ती नही कराया। तो निराश हो कर निशान्त अपने पिता को घर ले आया और निजी तौर पर चिकित्सीय मदद लेकर बोतल चढ़वाने को मजबूर हो गया।
इससे साफ पता चलता है कि जब शहरी लोग खासकर सत्ता पक्ष के लोगों को इस प्रकार जिला चिकित्सालय में उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है तो जाहिर है कि ग्रामीणों की तो इतनी बदतर हालत जिला चिकित्सालय का मेडिकल स्टाफ करता होगा।
यहां बताना लाजिमी होगा कि जिला चिकित्सालय में 5 दिन पूर्व ही एक 11 माह के मासूम बच्चे की बांह में नस की बजाए चमड़ी में स्लाइन की नीडिल लगा दी गई। हालत बिगड़ने पर उसे बिलासपुर रेफर किया गया। इसके पूर्व गर्भवती महिला की डिलीवरी होने के बाद डस्टबिन में गिरने से नवजात बच्चे की मौत एवं मरीज के शरीर पर चीटियों के रेंगने, कैंसर पीड़ित को वापस घर भगा देना जैसी अनेक अमानवीय घटनाएं जिला चिकित्सालय में हो चुकी है। इससे साफ जाहिर है कि जिला चिकित्सालय के मेडिकल स्टाफ को ना तो जनप्रतिनिधि और ना ही जिला प्रशासन का कोई भय है।
आम मरीजों के लिए नहीं है वीआईपी वार्ड
इस संबंध में ड्यूटीरत चिकित्सक डीके चिकंजूरी ने बताया कि जिला चिकित्सालय में वार्ड नंबर 2 और 4 वीआईपी लोगों जैसे जज, कलेक्टर आदि के लिए आरक्षित है। इससे आम मरीजों को नहीं दिया जा सकता । विशेष परिस्थितियों में यदि सिविल सर्जन लिख कर देते हैं तभी किसी मरीज को वार्ड में भर्ती किया जाने का प्रावधान है।