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बैकुंठपुर विशेष ! फिर एक बार, नए कलेक्टर की बहार !…हेलमेट…चिकित्सा माफिया..

लेखक- महेंद्र दुबे ( कोरिया के माटी पुत्र, साहित्यकार,  व हाईकोर्ट बिलासपुर में प्रतिष्ठित अधिवक्ता हैं )

अचानक खबर आई कि पूरे जिले की खोपड़ी पर हेलमेट खपकाने की भीष्म प्रतिज्ञा उठा रखे पुराने कलेक्टर के कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा, को सरकार ने स्थानांतर शैया में लिटा के रवाना कर दिया है! करीब साल भर से एक हाथ में हेलमेट की कठोरता और दूसरे हाथ में फूलों की कोमलता थामे जिले की कलेक्टरी कभी यहां कभी वहां फुदकते फिर रही थी! हमारे यहां अधिकारियों का फुदक्की और गुलाटी मारना नेताओं के आरक्षित अधिकार क्षेत्र में दखल समझा जाता है और लगता यही है कि कलेक्टर महोदय फुदकते फुदकते लिमिट क्रास कर गए थे। सब जानते है कि एक से भले दो और दो से भले तीन, अब “तीन भले” में से किसकी भलाई के तले महोदय की कलेक्टरी का हेलमेट उखड़ा है, इसकी पड़ताल को “होईहे वहीं जो राम रची रखा” में दफन कीजिये और नए की तरफ ध्यान दीजिए! वैसे महोदय, उखड़ने के मामले में बतौर “सिंग इज किंग” पहले से मशहूर रहे है। गये साल कांकेर में कलेक्टरी का रुतबा जुम्मा जुम्मा ही पाए थे कि 26 वें दिन ही सरकार ने उनकी कांकेर से आजादी का 15 अगस्त मनवा दिया था! वैसे सरकार ने माननीय से रायपुर में बैठ के “ले के रहेंगे” की ढपली ज्यादा दिन नहीं बजवाया था और जल्दी ही तीन तीन विधायकों के पालने में झूला झूलने इधर भेज दिया था! जिले की ज्यादातर आबादी तो, बस्ती में आग भी लगी होने पर मस्ती में शैला कर्मा खेलने का हौसला रखती है मगर जिले में आग लगाने और इसकी ताप से गर्माने वालों का एक अलग चितगों गैंग है जिसको नये कलेक्टर के आने और पुराने के जाने के खास मौके पर चुन्ना कुछ ज्यादा ही उग्रता से काटने लगता है! (नोट- कृपया चितगों शब्द का अर्थ और व्याख्या के लिए पूर्व विधायक श्री द्वारका प्र. गुप्ता के पुराने चुनावी भाषणों पर भरोसा करें) ! हर नए कलेक्टर के आने पर ये लोकल चितगों गैंग बावन एकड़ में उम्मीद और विश्वास का पुदीना बो देता है मगर याददाश्त पर जोर दीजियेगा तो याद आएगा कि रवाना हुए कलेक्टर भी अपने आगमन के समय बराबरी से बावन एकड़ में ही चौड़ियाये गये थे और अगर संयोग से कोई नए कलेक्टर हजूर, जिले की कलेक्टरी सम्हालने से पहले किसी समय जिले में किसी प्रशासनिक पद पर रह चुके हो, तब तो पूछिये मत, किस्से कहानियों में हर ब्राण्ड के चितगों को आप नये कलेक्टर की लगोंट की गांठ तक की अदभुत जानकारी साझा करते पायेंगे!

गये हफ्ते, जब से सोशल मीडिया के स्थानीय डिजिटल बांकुरों की चुगलखोरी ने हर आम-ओ-खास को इत्तिला दी है कि नये वाले प्रधान जिला सेवक, पूर्व में मनेन्द्रगढ़ में सेवा दे चुके है, हर स्वघोषित खासम खास, हसदों के उस पार नए साहब-ए-मसनद के कदमों के निशान की तलाशने में भिड़ गया है।  कुछ स्वंभू कलमयोद्धा तो दिल्ली वाले सबसे तेज से भी तेज निकले और उनके आगमन के ही दिन रेस्ट हाउस से निकल के मय फ़ोटो ब्रेकिंग अपलोड मार दिये…..”नये कलेक्टर से सौजन्य मुलाकात”! पीछे रह गया दिल जला लोकल रवीश कुमार अपना धुआं धुआं मुंह बिचका के कमेंट चेंपा…. “बधाई हो भैया”! कलेक्टर साहब क्या क्या लगायेंगे, क्या क्या उखाड़ेंगे, सब कुछ भकाभक जनता को बताया जा रहा है मगर किसका और किसको उखाड़ेंगे, पर ज्यादातर मुलाकाती सिर्फ इतना ही फुसफुसाते है कि “आगे देखिए भैया! अभी से क्या कहे”! वैसे कोरिया के बचे खुचे खुन्नसबाजों को इस विषय पर शोध करना चाहिए कि ये सौजन्य मुलाकात की चुल्ल, नेताओं और सुविधाभोगी चिरकुटों को ही क्यों होती है, कोई पंचर वाला, दूधवाला, सब्जी वाला या फिर कोई किसान या मजदूर, नए कलेक्टर से सौजन्य मुलाकात की उदर पीड़ा से कभी रूबरू क्यों नहीं होता है जबकि इन्ही की तो सेवा करने का दावा हर नए पुराने कलेक्टर का हर वख्त, हर मौके और हर मुकाम पर रहता है!

बहरहाल जिले की कलेक्टरी कृष्ण पक्ष से शुक्ल पक्ष में प्रवेश कर चुकी है, इसलिए आरम्भ प्रचंड हो न हो, शुभ शुभ सोचिए और उम्मीद की ढिबरी जलाये रखिये! इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि पिछले जिल्लेइलाही रुखसत हुए है या बड़े बेआबरू होकर दर से हकाले गये है और इसकी भी कोई तवक्को मत रखिये कि ये नए वाले हुजूरे आला भी अपने कदमों पर जायेंगे या खेदे जायेंगे मगर जब तक है तब इतनी उम्मीद रखने में कोई हर्ज नहीं है कि कम से कम कोरिया के सरकारी अस्पतालों में कब्जा जमाये चिकित्सा माफियाओं पर नए कलेक्टर की नजर टेढ़ी होगी, जिला अस्पताल में डॉक्टर विरुद्ध डॉक्टर के चक्रव्यूह में फंसे गरीब, बेबस और साधनविहीन की चीखें कभी महोदय के कानों तक पहुंचेगी और कुछ नहीं तो सरकारी स्कूलों के हासिये में नंगे पांव दौड़ लगाते बचपन को पढ़ने पढ़ाने की सुध भी उन्हें होगी! सनातन परंपरा में  सत्य को नारायण कहा गया है और हमारा राष्ट्रीय मोटो भी “सत्य मेव जयते” ही है मगर ये भी याद रहे कि ज्यादा अरसा नहीं हुआ है जब “सत्य’ की अलख लेकर एक उत्साही और ऊर्जावान युवा, कलेक्टरी के मसनद से उतर कर कोरिया की धरती में उम्मीद और विश्वास के बीज बोता हुआ, विकास की फसल उगाने की कोशिश करने निकला था तब हमारे ही रहनुमाओं में से किसी की छाती पर सांप लोट गया था और तीन महीने में ही उन्हें रवानगी का परवाना थमा दिया गया था! खैर, नए कलेक्टर महोदय का स्वागत है, हम भी देखेंगे कि आपके रहने के दौरान सत्य अपनी व्यापकता में किसी नारायण रूपी कमजोर, प्रताड़ित या जरूरतमंद दरिद्र को समाहित कर उसे ससम्मान आसन में बिठा कर पूछ सका या नहीं कि….”बताइए बाबा/भाई/ यार! क्या परेशानी है आपको”!

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