
*संदर्भ किसान आंदोलन* — *किसानों की मांग और सरकार के प्रस्ताव का अंतर …..यानि मौजूदा समय मे किसान के पास ….. पढ़े यह पूरी आलेख डॉ राजू अग्रवाल के …….
मौजूदा सिस्टम में किसान के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि अगर उसको लगे कि कोई निजी व्यापारी या कंपनी उसकी फसल को औने पौने दाम पर
किसानों को उनकी फ़सल का डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए, इस बात से हर कोई सहमत होगा ।
खुद केंद्र की सरकार का इसका वादा है ।
तो फिर किसान क्यों दिल्ली में ऐसी कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे सड़क पर आंदोलन कर रहा है?
किसान कह रहे हैं कि सरकार हमको MSP की गारंटी दे , केंद्र की सरकार ने भी कह दिया है कि हम लिखित में MSP पर आश्वासन देने को तैयार हैं तो फिर समस्या क्या है?
तो क्यों किसान आंदोलन कर रहा है ।
अब इस मामले को ठीक से समझने का प्रयास करते हैं . समझें कि किसान क्या चाह रहे हैं और सरकार आश्वासन क्या दे रही है.
किसानों की मांग है कि केंद्र की सरकार उनको गारंटी दे कि आने वाले कल में उनकी फसल को खुले बाजार में सरकार , व्यापारी या फिर कंपनी कोई भी खरीदे MSP या उससे ऊपर दाम पर ही खरीदे.
सरकार का कहना है कि जैसे सरकार कल मंडी में MSP सिस्टम चला रही थी वैसे ही आज चला रहे हैं और आगे भी यह MSP सिस्टम मंडी में बना रहेगा और हम इसको लिखित में देने को तैयार हैं ।
मतलब *सरकार MSP के मौजूदा सिस्टम को जारी रखने की बात कर रही है जबकि किसान MSP का नया सिस्टम चाहते हैं.* क्योंकि MSP के मौजूदा सिस्टम में दिक्कत यह है कि *केंद्र सरकार MSP तो कुल 23 फसलों की घोषित करती है लेकिन मुख्य रूप से पूरे देश में दो फसल गेहूं और धान/चावल ही मंडी के माध्यम से खरीदती है*
एक नजर डाल कर देखिए कि सरकार कुल पैदावार का कितना हिस्सा ख़रीदती है. साल 2019-20 में देश मे 1184 लाख टन चावल हुआ, सरकार ने 511 लाख टन खरीदा. 1076 लाख टन गेहूं हुआ, 390 लाख टन खरीदा. 231 लाख टन दाल में से 28 लाख टन ख़रीदी और 454 लाख टन मोटे अनाज जैसे ज्वार बाजरा आदि में से 4 लाख टन खरीदा. *यानी सरकार ने कुल पैदावार का लगभग 32 फ़ीसदी खरीदा, वो भी वही उत्पादन जो सरकार खरीदती है. सरकार हर फसल नहीं खरीदती*.
यानी मौजूदा सिस्टम में किसान के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि अगर उसको लगे कि कोई निजी व्यापारी या कंपनी उसकी फसल को औने पौने दाम पर खरीद रही है तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसल सरकार को बेच दे. इसलिए किसान इस मामले में सिस्टम को मजबूत बनवाना चाहते हैं.
आंदोलन में पंजाब , हरियाणा , पश्चिम up के किसान ही सबसे आगे क्यों है ?
*चावल का उत्पादन पंजाब हरियाणा में पूरे देश का 35% ,एवं गेंहूँ का उत्पादन 62% , तथा मोटा अनाज का 50% होता है। मौजूदा MSP सिस्टम में सरकार पंजाब और हरियाणा से सबसे ज्यादा इस उत्पादन में से चावल का 88% , गेंहूँ का 70% को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अभी सरकार खरीदती है इसलिए वहीं के किसान सबसे ज्यादा आशंकित है कि सरकार MSP ख़त्म कर देगी तो हमारा क्या होगा?*
*पंजाब में प्रति किसान की सालाना आय 216708/- है.*
*हरियाणा में 173208/-*
*तथा देश की एवरेज आय प्रति किसान 77124/- सालाना है*
मतलब इस कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित पंजाब और हरियाणा के किसान होंगे , इसी कारण यंहां के किसान सबसे ज्यादा आंदोलित है ।
दरअसल सरकार हर साल अपने खरीद लक्ष्य को संशोधित करती रहती है और तय करती है कि कितना अनाज खरीदना चाहिए. यानी MSP पर किसान के अनाज की सरकारी खरीद ऐसे नहीं होती कि किसान कितना भी अनाज पैदा करके ले आए और सरकार सारा खरीद लेगी.
दरअसल, सरकार लक्ष्य निर्धारित करती है और खरीदने वाली एजेंसियां हर इलाके में किसान से अलग-अलग मात्रा में खरीद करती हैं और वो भी एक तय समय सीमा में (यानी 100% खरीद नहीं होती और हर समय नहीं होती)
जैसे मान लीजिए उदाहरण के तौर पर हरियाणा में यह तय हो जाता है कि प्रति एकड़ जमीन से 5 क्विंटल गेंहू ही खरीदेंगे चाहे उसकी पैदावार 10 क्विंटल ही क्यों ना हो वहीं पंजाब में प्रति एकड़ खेती की जमीन से 7 क्विंटल गेहूं खरीदेंगे चाहे उसके यहां पैदावार कितनी भी हो.
ऐसे में किसान को बाकी फसल तो खुले बाजार में ही बेचनी पड़ेगी? पंजाब और हरियाणा के किसान आंशिक तौर पर खुले बाजार में फसल बेचेंगे ।
ऐसे में पंजाब और हरियाणा के किसान इस बात से आशंकित हैं कि कल को अगर कोई निजी कंपनी/कंपनियां अपना वर्चस्व बना कर कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में ओने पौने दाम पर उनकी फसल खरीदने लगे तो उनके पास क्या विकल्प होगा? *ऐसी फसल जिनकी MSP तो तय है पर सरकार नहीं खरीदती उन फसल को यदि बिना तय msp के खुले मार्केट में या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के भरोसे इस नए बिल के अनुसार छोड़ दिया जावेगा तो, किसान की क्या दुर्गति होगी इसकी कल्पना की जा सकती है ।*
*इसलिए किसानों की मांग है कि सरकार ये कानून बनाए कि किसान की हर प्रकार की फसल को चाहे कोई भी व्यापारी, कोई निजी कंपनी , प्राइवेट मंडी में या खुले बाजार में या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से खरीदें सिर्फ MSP या उससे ऊपर के दाम में खरीदे उससे नीचे नहीं. पर सरकार किन्हीं कारणों से इसकी गारण्टी देने के लिए तैयार नहीं है* । *यही किसान और सरकार के मध्य में विवाद है*।
MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य. यानी किसी फसल की वह कीमत जो सरकार के हिसाब से न्यायोचित, तार्किक और स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से भी फ़सल की लागत का डेढ़ गुना है और केंद्र की सरकार तो किसान को उसकी फ़सल का डेढ़ गुना दाम देने के लिए वैसे भी प्रतिबद्ध है. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने का वादा है सरकार का. ऐसे में *सरकार को किसानों की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए क्यों कि इससे सरकार पर कोई आर्थिक दबाव नहीं बनता है, और व्यपारियों को तो हमेशा एक निश्चित लाभ मिलना तय होता ही है*
किसान तो वही मांग रहे हैं जो सरकार देना चाह रही है.
*डॉ राजू अग्रवाल*
*रायगढ़*