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उसूलों पर आँच आए तो टकराना ज़रूरी है, तू जो ज़िंदा है तो …….सूखी व बासी रोटी, सलवट सिकुड़न पड़े शर्ट, सामान्य सा …….पैरों के जख़्म,पसीने और ……साक्षात्कार करते खुले आसमाँ को छूने की चाहत ……ऐसा था एक रोशन …पढ़े पुुरी आलेख….

उसूलों पे आँच आए तो टकराना ज़रूरी है, तू जो ज़िंदा है तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है :-गणेश कछवाहा*

 

*सूखी व बासी रोटीसूखी व बासी रोटी, सलवट सिकुड़न पड़े शर्ट, सामान्य सा घर सलवट सिकुड़न पड़े शर्ट, सामान्य सा घर,बड़े और रईसों की दबंगी,परिवार की ज़िम्मेदारी,दोजून की रोटी के लिए जद्दोजहद ,पैरों के जख़्म,पसीने और आंसू , अभाव व संकट के बीच इन सब अहसासों व हालातों से जूझते, साक्षात्कार करते खुले आसमाँ को छूने की चाहत ,ऊँची उन्मुक्त उड़ान की कल्पना,एक बेहतर समाज और राष्ट्र निर्माण का सपनाऔर सतत अथक संघर्षों ने गढ़ा विधायक रोशनलाल अग्रवाल।यही कारण था की रोशन की डिक्शनरी में कोई छोटा बड़ा ऊँचा नीचा,जाति, धर्म , सम्प्रदाय नहीं था।सब उसके साथी थे। गरीब ,मज़दूर और दुःखी उसके सबसे अधिक  नज़दीक थे।विधायक होने के बावजूद उन्हें वह दर्द, अहसास और अपने जीवन का संघर्ष याद रहा। वे अक्सर सादे पैजामा कुर्ते में अपनी स्कूटी में शहर ,मोहल्ले, गली, चौक चौराहे में बहुत साधारण तौर पर दिख जाया करते थे और सुख दुःख कामकाज की चर्चा व हालचाल पूछ लेते थे। यह साधारण सा व्यवहार लोगों के दिलों में बहुत असाधारण प्रभाव डालता गया।जो कोरोनाकाल के बावजूद उनकी अंतिमयात्रा ,मुक्तिधाम और नागरिक मंच के श्रद्धांजलि सभा में स्पष्ट रूप से दिखायी दिया।शहर ही नहीं पूरा अंचल स्तब्ध और शोकाकुल है ।*

 

राजनीति और रोशनलाल :-

रोशनलाल अग्रवाल के पास कोई राजनैतिक विरासत नहीं थी।अभाव और संघर्ष से तपकर निखरे थे।स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित किशोरीमोहन त्रिपाठी,जननायक रामकुमारअग्रवाल (एम.एल.ए.),ब्रजभूषण शर्मा,मामा बनारसी,हबीब वकील,सिद्धेश्वर गुरु,दयाराम ठेठवार,बारेन बनर्जी आदि  प्रेरणा स्त्रोत रहे।जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों से बहुत प्रभावित थे।स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जननायक रामकुमार अग्रवाल के जनसंघर्ष पथ के पथिक रहे हैं। वस्तुतः रोशन भाई  एक सच्चे आंदोलनजीवी थे। संघर्ष के प्रतीक बन चुके थे।लगातार कुछ जानने,सीखनेऔर समझने की लगन और अपनी आवाज़ व जनभावनाओं को आमजन तथा शासन व प्रशासन तक पहुँचाने की ललक ने पत्रकारिता से जोड़ा।जनकर्म अख़बार का प्रकाशन का कठिन संकल्प लिया जो निरंतर आज तलक जारी है। पत्रकारिता जगत में दादा बारेन नाथ बेनर्जी,गुरुदेव काश्यप,अनुपम दासगुप्ता, सत्य नारायण बट्टिमार,और रमेश नैयर का सानिध्य और स्नेह सदैव प्राप्त होता रहा। रायगढ़ जनसंघ के स्तंभ जयदयाल बेरीवाल और पी. के.तामस्कर वकील जी से प्रभावित होकर जनसंघ से जुड़े। राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी उनके आदर्श रहे हैं।

 

*उसूलों पे आँच आए तो टकराना ज़रूरी है, तू जो ज़िंदा है तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है :-*

रोशन भाई को यदि एक पंक्ति में परिभाषित करना हो तो मशहूर शायर वसीम बरेलवी के ग़ज़ल की यह पंक्ति  को रेखांकित किया जा सकता है – “उसूलों पे आँच आए तो टकराना ज़रूरी है, तू जो ज़िंदा है तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है “ मेरी स्मृति से यह विस्मृत नहीं होता कि जब भाजपा की सरकार में एक तानाशाह अफ़सर रायगढ़ में तथाकथित विकास और सुंदर शहर बनाने  के नाम पर खुलकर दबंगई और तानाशाही करते हुए एक गरीब के घर टूटने पर उसकी फ़रियाद नहीं सुन रहे थे तब रोशनलाल उसे लेकर अफ़सर के पास गये। अफ़सर अपने तेवर के अनुरूप रोशन को *“गेटआउट फ्रोम माई चेंबेर”* कहा यह सुनते ही रोशन ने भी उस अधिकारी को अपनेअवकात में रहने की नसीहत देते हुए उनके ख़िलाफ़ जनसंघर्ष का मोर्चा खोल दिया था । और ऐलान किया था कि लोकतंत्र में प्रशासक जनता का सेवक है एक आम  साधारण गरीब व्यक्ति भी उनसे मिल सकता है । उन्हें सुनना और  उनकी समस्या का समाधान करना प्रशासक की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है । ।उस समय राजनीति का भी एक अज़ीब चेहरा लोगों ने देखा।उन्ही की पार्टी के ही बहुत से चेहरे सत्ता और प्रशासन की देहरी में नतमस्तक होते दिखाई दिये। यही नहीं पहली बार रायगढ़ ने यह भी देखा कि न्याय और अधिकार के जनसंघर्ष के ख़िलाफ़ सत्ता और प्रशासन के पक्ष में उन्ही के ही लोग, लोगों को एकजुट कर आंदोलन के ख़िलाफ़ प्रति आंदोलन खड़ा करने के शर्मनाक अभियान में जुट गये थे।अन्ततः तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा था । आज मैने उनमे से बहुत से चेहरे को श्रद्धांजलि सभा में मुख्य शुभचिंतक के रूप में देखा।

 

*रोशन हारे नहीं दलगत राजनीति ने उन्हें स्वीकार नहीं किया :-*

सामाजिक सारोकार और जन संघर्षों से जुड़ा हर साथी कहीं प्रशासन  तो कहीं जन प्रतिनिधियों  के नकारात्मक,उदासीन व भ्रष्ट आचरण तथा शासन की जनविरोधी नीतियों से परेशान होकर कभी कभी यह सोचता है कि यदि मेरे हाथ में कुछ राजनैतिक शक्ति आ जाती तो समाज हित में काम करने में आसानी होती।और तभी वह  राजनैतिक पद हासिल करने को जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य बना लेता है।लेकिन दलगत राजनीति और सामाजिक राष्ट्रीय सारोकार दोनो में सामंजस्य करना  अपने आप में एक कठिन संघर्ष और अंतर द्वन्द उत्पन्न करता है।ऐसे समय में आपके पास दो-तीन विकल्प होते हैं पहला -दलगत राजनीति के पक्ष में रहना है या दूसरा सामाजिक राष्ट्रीय सारोकार के पक्ष में या फिर  अंतरद्वन्द में जीना ।विधायक बनने के बाद रोशन भाई को अपनी इच्छा और सिद्धांतो के विपरीत दलगत राजनीति के हित में बहुत से समझौते करने पड़े। जब रोशन ने अपने सिद्धांतो से ज़्यादा समझौता करना स्वीकार नहीं किया तब राजनीति रोशन को स्वीकार नहीं कर सकी।यही कारण है  कि इतना अधिक जन मत होते हुए भी रोशन हारे ? वस्तुतः रोशन हारे नहीं दलगत राजनीति ने उन्हें स्वीकार नहीं किया ।

 

*अशेष  और शेष सपने :-*

रोशन भाई प्रायः वैचारिक,सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर गहन और विस्तृत विमर्श किया करते थे।मुख्यमंत्री और सम्बंधित विभागों में बहुत सारे पत्रों और प्रस्ताव की ड्राफ़्टिंग करने की ज़िम्मेदारी भी बहुत विश्वास के साथ मुझसे साझा किया करते थे।संघर्षो व आंदोलनो पर संयुक्त मंच के पक्षधर रहे हैं।चूँकि वे बहुत अभाव और कठिन संघर्षो से एक मुक़ाम हासिल किये थे  । अतः उनके कुछ सपने और लक्ष्य थे।वे भौतिक विकास से ज़्यादा संस्कार, आदर्श और आचरण पर महत्व देते थे।रायगढ़के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी,खेलप्रतिभा,विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान देने वाले प्रतिभाओं व शख़्सियतों की एक सूची अपने पास रखते थे उनके बारे में महत्वपूर्ण जानकरियाँ एकत्रित करने ,उन्हें प्रकाशित करने उनके नाम को अक्षुण बनाए रखने हेतु उनकी स्मृतियों में स्मारक,भवन,कालोनी आदि का नामकरण करने का सराहनीय प्रयास किया करते थे।

 

उन्हें दुःख रहा कि राजनैतिक परिस्थितियों वश कुछ महत्वपूर्ण कार्यपूर्ण नहीं कर सके । अपने राजनैतिक गुरु और अधिकारों के लिए संघर्षो की प्रेरणा देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जन नायक रामकुमारअग्रवाल की प्रतिमा स्थापना उनके कार्यकाल में नहीं हो सका।लेकिन उन्होंने अपने अथक प्रयासों से जन नायक रामकुमार अग्रवाल की जीवनी पर स्मारिका का केवल प्रकाशन ही नहीं करवाया वरन तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.रमनसिंह और काँग्रेस सांसद व फ़िल्म अभिनेता राजबब्बर के कर कमलों से भव्य गरिमामय विमोचन भी कराया।जल केलोनदी को बचाने के संघर्ष में शहीद हुई देश की पहली महिला आदिवासी श्रीमती सत्यभामा सौरा के समाधि स्मारक ग्राम बोंदाटिकरा गड़उमरिया के संरक्षण,संवर्धन सौंदर्यीकरण बॉऊंडरी वाल का निर्माण तथा बहुत प्रयासों के बावजूद प्रदूषणमुक्त जिला बनाने का भी सपना अधूरा रह गया।कृषि के विकास के लिए सिंचाई योजनाओं और केलो बांध से नहर की योजनाओं, ग्रामीण स्तर पर शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को समृद्ध करने का प्रयास आंशिक सफल रहा उसे पूर्ण करने की ज़रूरत है।जिले को उच्च शिक्षा का हब बनाने का सपना।यातायात व्यवस्था ,संजयकॉम्प्लेक्स, सीनियरसिटीज़न के लिये सर्वसुविधायुक्त एक आवासीय केंद्र ,शहर चिकित्सालय,शहर को सर्वसुविधायुक्त आठ ज़ोन में विकसित करने की महत्वपूर्ण योजनायें और भी बहुत कुछ शायद केवल राजनैतिक पद से संभव नहीं था ।श्रद्धांजलि सभा में भी शायद चूँकि वहाँ ज़्यादा लोग राजनीतिक थे। इसलिए इन सपनों को पूरा करने का संकल्प भरा शब्द सुनायी नहीं पड़ा।जो काफ़ी चिंताजनक है। इसके लिये राजनैतिक पद से ज़्यादा जनसंघर्षो की आवश्यकता है।रोशन भाई के अभिन्न साथी भाई गिरधर गुप्ता जी का कुछ कह नहीं पाना,आंसूओं का बहना उनके गहरे दुःख को बहुत ही पवित्रता के साथ बयाँ कर गया।कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कहगए। भाई गिरधर को ईश्वर शक्ति और सम्बल प्रदान करे।

 

*तुम्हें हम यूँ भुला न पायेंगे :-*

बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी और समृद्ध विरासत अपने सुपुत्र गौतम को सौंप कर रोशन भाई राजनीति,समाज और परिवार को रौशन कर बहुत शांत भाव से भवसागर से मुक्त हो कर अपने आराध्य धाम की ओर चले गये।रोशन भाई रायगढ़ के विकास के हर संघर्ष में सदैव आप याद आयेंगे। तुम्हें हम यूँ भुला न पायेंगे।

 

सादर श्रद्धांजलि।

 

 

गणेश कछवाहा,रायगढ़ छत्तीसगढ़।

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