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देश की आंतरिक या बाह्य सुरक्षा में जब कही कोई जवान कहीं शहीद होता है,तो लगता है जैसे हमारे परिवार का कोई एक सदस्य हमसे बिछड़ गया हो

रायगढ़-/- वैसे तो इस पीड़ा को शब्दों से व्यक्त कर पाना सम्भव नही है,परन्तु जैसे किसी भी बीमारी के सफल उपचार के लिए बीमारी के पीछे की वजह जाननी जरूरी होती है,ठीक उसी तरह हमें अकारण होने वाली शहादत की घटनाओं के तह तक जाकर पता लगाना चाहिए कि आखिर चूक कहाँ और क्यों हो गई।। ताकि भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं को प्रभावशाली ढंग से रोका जा सके।। इसके विपरीत हमारे देश मे शहादत की हर घटनाओं के बाद जांच टीमें तो बनती है,उन पर लाखों रु खर्च भी किए जाते है। पर जब तक जांच टीम अपनी रिपोर्ट पेश करती है तब तक आधा दर्जन से अधिक हमले जवानो पर हो गए होते है,और पहले हमले में बड़ी रणनीतिक चूक करने वाले दोषी बड़े अधिकारियों को अच्छी कम्फर्टेबल जगहों पर नई पदस्थापना भी मिल गई होती है।। पीछे अगर कुछ छूट जाता है तो शहीद पुलिस या सुरक्षा बल के जवानों का रोता-बिलखता अभाव ग्रस्त परिवार जिन्हें कभी कभार राष्ट्रीय पर्वों में स्थानीय प्रशासन कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने के लिए पूछ-परख कर लेता है।। बाकि पूरे साल उन्हें उनकी समश्याओं से अकेले जूझना पड़ता है।। वैसे तो छ ग की धरती एक ही सर्वाहारा वर्ग के दो पक्षों के बीच खूनी संघर्ष का केंद्र बनी हुई है।।नक्सल हिंसा/प्रतिहिंसा में दोनों तरफ के हजारों लोगों की मौतें हो चुकी है।। इसके बावजूद न तो अब तक शांति स्थापना हो सकी न ही किसी क्रान्ती ने खुद की जगह बना पाई।। इस अंधे युद्ध मे सबसे अधिक नुकसान देश के उन परिवारों को हुआ,जो अपना जीवन से जी-तोड़ शारीरिक और मानसिक श्रम से चलाते है।।* कुछ इसी तरह किस्टाराम हमले में जिंसमे crpf के हमारे 9 बहादुर जवानों की शहादत हुई थी। 25 जवान आहत भी हुए थे। इलाज में हुई देरी की वजह से एक और जवान शहीद हो गया था।। रायपुर से वायुसेना के mi 17 हेलीकाप्टर के आने के बाद घायलों को दो से तीन घण्टे बाद राजधानी रायपुर इलाज के लिए भेजा गया।। इधर घटना को लेकर अत्यंत व्यथित मेरे दो मित्र और छोटे भाईयों *(जो खुद केदीय पुलिस बल में अधिकारी और जिम्मेदार जवान के रूप में आज भी सेवारत है)* ने निवेदन किया कि हो सके तो किस्टाराम जरूर जाइये।। इस घटना के पीछे का जो कारण हमे जवानों से आपसी चर्चा में मिला है,वो सामने आना जरूरी है।। हम एक दिन पूर्व ही रायपुर आये हुए थे। तारीख थी 18 मार्च 2018 दिन रविवार हम बोलेरो से दंतेवाड़ा को निकल गए।। शाम 7 बजे एक परिचित के आवास पर रुके सुबह 6 बजे 19 मार्च 2018 को मन्दिर जाकर माता जी का दर्शन किया और सुकमा के लिए निकल गए। करीब घण्टे डेढ़ घण्टे के इस सफर में हम दूसरी बार मैलवाड़ा crpf कैम्प से गुजरे और थोड़ी दूरी पर बढ़ते ही उस स्थान पर आ पहुंचे जहां दो साल पहले 31 मार्च 2016 को नक्सलियों ने आई ई डी ब्लास्ट कर सात निहत्थे जवानो की हत्या की थी। चुकि इस स्थान से साल भर में मैं दूसरी बार गुजर रहा था, फिर भी घटना को याद करने मात्र से सिहरन हो रही थी। मेरे साथ सफर कर रहे सांथी पत्रकार ऋषि बार-बार असमान्य हो रहे थे। हमारे लिए दन्तेवाँड़ा से सुकमा और कोटा की यात्रा 3 बार थी। जंगल पहाड़ों और पूलिस कैम्पों से गुजरते हुए हम 8.30 बजे सुबह सुकमा पहुंचे। फर आधे घण्टे बाद कोंटा निकले जहां 11 बजे खाना खाने के बाद nh 30 के रास्ते गोलापल्ली कैम्प होते हुए करीब 2 से 3 बजे के बीच किस्टाराम आ गए। यहां घटना के करीब 6 दिन बाद भी सब कुछ अस्त व्यस्त था। स्थानीय लोगो से घटना से जुड़ी कुछ अहम जानकारी लेने के बाद हम उस स्थान तक पहुंचे जहां आई ई डी विस्फोट से 10 जवानो की हत्या और 24 जवानो को नक्सलियों ने आहत किया था। घटना स्थल से किस्टाराम पुलिस थाना/कैम्प से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर पलोड़ी कैम्प रोड पर था। यहां आसपास में कुछ सर्चिंग पर निकले जवानों से बात करने की कोशिश की तो उनमें से दो जवान काफी गुजारिश के बाद इस शर्त पर बात करने को तैयार हुए कि हम रिकार्डिंग नही करेंगे और चलते हुए ही उनसे बात करेंगे।। हमने लोगो और जवानों से जो जाना वो घटना क्रम के सरकारी दावों से बिलकुल उलट था। जो मीडिया में दिखाया जा रहा था। पूर्व में ही स्थानीय लोग बता चुके थे कि दो दिन पहले ही सुरक्षा बल और पुलिस के बड़े अधिकारी जांच करने आ चुके थे।। जवानों ने बताया कि हमले में जवान शहीद नही होते अगर *आई बी की सूचना के बावजूद बड़े अधिकारी अपने अधिकारों का दुष्प्रयोग करते हुए प्रतिबंधित एंटी लेंड माईन व्हीकल से जवानो को जबरन तत्कालीन आई पी एस के दौरे को कवर करने और जवानो को पलोड़ी कैम्प छोड़ने नही उस रोड पर नही भेजते जहां से कुछ घण्टे पहले कोबरा बल ने मुठभेड़ कर पीछे धकेला था।* सवाल उठाने वाले एक जवान ने पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीणा के उस दौरे पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था,जो आई बी एलर्ट के बाद भी जारी रहा।। हालांकि हमलें के बाद सुरक्षा में लगे रोड ओपनिंग पार्टी में एसटीएफ और डीआरजी के जवान भी वहां मौजूद थे,जिन्होंने नक्सली हमले का जवाब दिया था.साथ ही सी आर पी एफ के कोबरा बटालियन के जवानों ने भी नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई की थी। परन्तु तब तक नक्सली घायल जवानो को ak 47 और धारदार हथियार से मारकर निकल चुके थे। हम उनसे थोड़ी बहुत और बात कर बाजार की तरफ आगे बढ़ गए और वापस गोलपाली होते हुए कोंटा और रात 8 बजे सुकमा पहुंच गए थे। पूरा रास्ता अजीब से सन्नाटों से भरा था। जबकि दिमाग में उन दम्भी,अंसवेदनशील,जिद्दी और असफल रणनीतिकार अफसरों के प्रति गहरा आक्रोश घर हो चुका था,जिन्हें अपने जवानों और उनके पीछे उनके परिजनों का दुख नही दिखता है।। जवानो के बताए मुताबिक बुधवार को ही वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार,सीआरपीएफ के महानिदेशक राजीव राय भटनागर के साथ विशेष पुलिस महानिदेशक डी एम अवस्थी ने पलोड़ी शिविर का दौरा कर चुके हैं। इधर कुछ दिनों बाद ही किस्टाराम में 13 मार्च 2018 को हुए बड़े नक्सली हमले की प्रारंभिक सरकारी जांच में बड़ा खुलासा हो चुका था कि रिपोर्ट्स के मुताबिक सीआरपीएफ के डीजी राजीव राय भटनागर ने उस दिन सुबह ही सख्त निर्देश दिए गए थे कि *किस्टाराम-पलौदी रोड पर कोई भी मूवमेंट ना करें!* रिपोट्र्स के मुताबिक इतने सख्त निर्देश के बावजूद सीआरपीएफ की 212 वीं बटालियन के कमांडेंट प्रशांत धर ने उस रोड पर *माइंस प्रोटेक्टेड व्हीकल (एमपीवी)* में जवानों को भेज दिया था! वही जवानो के बताए अनुसार एस पी ने भी सुरक्षा नियमो के इतर पलोड़ी कैम्प के पास दौरा किया। हम पर दोहरा दबाव था। सीआरपीएफ जवानों के इस मूवमेंट के कुछ घंटों के भीतर ही नक्सलियों ने उन पर बड़ा हमला बोल दिया । *सीआरपीएफ डी जी के सख्त निर्देश की अवहेलना करते हुए कमांडेंट प्रशांत धर ने 9 जवानों की जान को खतरे में डाल दिया था। जो शहीद हो गए थे।। जबकि सुकमा के तत्कालीन एस पी किसी तरह करवाही नही की गई थी उन्होंने ने भी आई बी रिपोर्ट को नजरअंदाज करने की बड़ी भूल की थी।।* बाद में कमांडेंट प्रशांत धर ग्रुप मुख्यालय अटैच कर दिया गया था। सुकमा नक्सली हमले में पहली कार्रवाई यह की गई कि कमांडेंट प्रशांत धर को बस्तर से हटाकर ग्रुप मुख्यालय भेज दिया गया था। सी आर पी एफ मुख्यालय से 16 मार्च 2018 की देर रात जारी हुए आदेश के मुताबिक हरमिंदर सिंह को प्रशांत धर की जगह भेजा गया था। परन्तु सजा के नाम पर इस तरह की कारवाही से जवान निराश थे। उनके मन मे एक सवाल उठा रहा था,कि *क्या 10 जवानो के जान के बदले दोषी अधिकारी को सिर्फ स्थानांतरण की सजा देना क्या सही था.??* एक सेवानिवृत्त सी आर पी एफ कोबरा जवान सुजोय जो बस्तर सहित देश के आतंक/नक्सल इलाको में 8 साल सेवा रत रहे हैं उनका कहना है कि नक्सली अपने इरादों में तभी ज्यादा सफल हुए है जब हमारे ऊपर बैठे अधिकारियों में गलत रणनीति बनाई है या गुप्त सूचनाओं की अनदेखियाँ की हैं। राज्य पुलिस के स्थानीय पुलिस अधिकारी फील्ड पर कभी-कभार जातें है उनकी बनाई नीतियों में अनुभवी जवानों से सलाह नही ली जाती है,बस आदेश दिया जाता है। इसके बाद अगर आप बच गए तो आपकी किस्मत नही तो अधिकारी की वाह-वाही तो बन ही जाती है।। ऊपर से ज्यादातर बलों को मिलने वाले स्तरहीन संसाधन *(इंसास,अप्रभावी भारी भरकम बुलेटप्रूफ जैकेट व घटिया जंगल बूट अन्य)* आमने सामने की लड़ाई में हमारी ही कमजोरी बन जाती है।। ऊपर से अधिकांश हमलों में फंसी पार्टियों को अक्सर सही समय पर बैकअप भी नही मिल पाता है।। इन कारणों से सुरक्षाबल के जवानों को ज्यादा क्षति उठानी पड़ती है। आप ताड़मेटला से लेकर बुर्कापाल तक के दर्जनों नक्सल हमलों का फीडबैक लीजिये मेरी कही बात में से एक भी बात गलत साबित नही होगी।

लेख – नितिन सिन्हा

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