गुरू कृपा से खुलते है, सौभाग्य के व्दार
दक्षिणापथ, दुर्ग। आनंद मधुकर रतन भवन के आयोजित धर्मसभा गुरू की महिमा पर केन्द्रित रही आज सभा को महासती किरण प्रभा जी, डॉ. विचक्षण श्री, अपृता श्री, साध्वी रत्न ज्योति जी, ने संबोधित करते हुए गुरू की महिमा पर प्रकाश डाला। साध्वी डॉ. विचक्षण श्री ने कहा-जगत गुरू भगवान महावीर की तरह वर्तमान युग में सदगुरू आत्मदर्शन कराने के लिए अनंत करूणा लेकर आता है। जब गुरू चरणों में शिष्य आता है श्रद्धा विभोर हो जाता है तभी से गुरू के दिए हुए बोध को संजोकर सुरक्षित रखता है तो गुरूकृपा से सौभाग्य के व्दार खुलते है। गुरू कितना उपकारी होता है यह किसी से छिपा नहीं है। गुरू के अगणित उपकार होते है। गुणवान बनाने वाले गुरू के प्रति सदभाव होना चाहिए गुरू के दर्शन से मन आनंद विभोर हो जाता हे। गुरू की सेवा में सदभाव होना चाहिए। गुरू की अवहेलना करने वालों का मोक्ष रूक जाता है। गुरू के प्रति दिल में दुर्भाव पैदा हो जाता है तो गुण अवगुण में ट्रांसफर हो जाते हैं। आत्म विकास के लिए सर्वप्रथम गुरूकृपा जरूरी है, विश्व में गुरू कृपा ही बलवान है। गुरूदेव का मुख हमारा सुख है। गुरूदेव का दिल हमारी मंजिल गुरू को शत् शत् प्रथम वन्दन।
साध्वी किरण प्रभा जी ने कहा धर्म संघ के लिए चातुर्मास का उतना ही महत्व है जितना किसान के लिए वर्षा का महत्व हैं आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए भी वर्षाकालीन समय बहुत महत्वपूर्ण है। धर्माराधना के लिए सर्वोत्तम काल माना गया है। वैदिक ग्रंथें में वरिष्ट ऋषि का एक कथन है। चातुर्मास के चारमास विष्णु भगवान समुद्र में जाकर शेष नाग की शय्या पर शयन करते है, इसलिए यह चारमास का काल धर्माराधना, योग, ध्यान, धर्मश्रवण भागवत पाठ व जप तप में बिताना चाहिए। चार्तुमास ज्ञान-दर्शन चारित्र तप की साधना का नाम है। दान शील तप भाव की आराधना का नाम है विषय कषाय को दूर करने का नाम चार्तुमास है वर्षावास गृहस्थ और साधु दोनों के जीवन में उपकारी है। संत समागम के अमूल्य क्षण आपको पापमुक्त करने की घडी है। श्रमण संघ महिला मंडल दुर्ग ने गुरू की भक्ति करते हुये गुरू महिमा पर शानदार भजन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन टीकम छाजेड ने किया।