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पुस्तक संस्कृति को बढ़ाने पुस्तक मेलों की आवश्यकता-डॉ. मुक्ता ‘मुक्ता..

विश्व पुस्तक सप्ताह पर वनमाली सृजन केंद्र कोरिया की परिचर्चा आयोजित,देश भर के कई साहित्यकार हूए शामिल

बैकुंठपुर- पुस्तकें किसी भी देश देश की संस्कृति का आईना होती है, जो पुस्तकों में दर्ज होती है. हमारी संस्कृति की एक पुस्तक रामचरितमानस ने गिरमिटिया प्रवासी मजदूरों को आज भी मॉरीशस में हमारी संस्कृति और भाषा के साथ जोड़ रखा है. विश्व पुस्तक सप्ताह की परिचर्चा में जब हम पुस्तकों से पाठकों की दूरी पर चिंतित है, तब यह विचार हमें खुशी देता है कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल की किताबों की आज भी बड़ी मांग है, इसका आशय है कि स्तरीय पुस्तकों के पाठक आज भी उपलब्ध है। उक्ताशय के विचार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की प्रपौत्री डा. मुक्ता ने विश्व पुस्तक सप्ताह पर आयोजित परिचर्चा में व्यक्त किए , उन्होंने कहा कि पुस्तकों तक पाठकों को लाने का आकर्षण पुस्तक मेले की संस्कृति को पुनः लाने की आवश्यकता है. विशिष्ट साहित्य और लोकप्रिय साहित्य हमेशा से अलग रहे हैं और उनकी मांग अलग-अलग रही है।
23 अप्रैल से 30 अप्रैल तक विश्व पुस्तक सप्ताह* के अंतर्गत पुस्तक, पुस्तकालय एवं पाठक संस्कृति से पाठकों को जोड़ने की चिंता को छत्तीसगढ़ वनमाली सृजन पीठ की कोरिया इकाई द्वारा ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राष्ट्रीय परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें देश के विद्वान साहित्यकारों ने अपने विचारों के माध्यम से भागीदारी की.
कार्यक्रम संचालक साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने पुस्तकों और पाठकों के बीच बढ़ती दूरी पर चिंता व्यक्त करते हुए इस परिचर्चा में मुंबई से साहित्यकार श्रीमती उषा सक्सेना, आचार्य रामचंद्र शुक्ल शोध संस्थान वाराणसी की अध्यक्ष डॉ मुक्ता ‘मुक्ता’, उमरिया के प्रोफ़ेसर महेशानंद स्वामी, रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज, अंबिकापुर से साहित्यकार जितेंद्र सिंह सोढ़ी, बस्तर से सूत्र नामक पत्रिका के सम्पादक साहित्यकार विजय सिंह, सहायक प्रोफेसर बृजलाल साहू आदि शामिल हुए। कार्यक्रम संयोजक बीरेंद्र श्रीवास्तव ने स्वागत क्रम के बाद संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान मनेन्द्रगढ़ के पूर्व संरक्षक सांवलिया प्रसाद सर्राफ को विचार हेतु आमंत्रित किया।
पुस्तकों से पाठकों की बढ़ती दूरी पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए *श्री सांवलिया सर्राफ* ने कहा कि पुस्तकें हमारे समाज की अच्छाइयों, बुराइयों एवं तत्कालीन परिवेश का ऐसा चलचित्र होता है जिसे हम उस पुस्तक के हर पन्ने को पढ़ते-पढ़ते देखते भी हैं. पुरानी पीढ़ियों का ऐतिहासिक दस्तावेज पुस्तकों में समाहित होता है जो आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित की जाती है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कुछ समय के लिए पाठकों को भ्रमित अवश्य किया है, किंतु मानवीय ज्ञान के भंडार से पाठक ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकेंगे . *साहित्यकार सतीश उपाध्याय* ने पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देते हुए कहा कि अच्छा साहित्य आज भी पढ़ा जा रहा है उन्होंने साक्षरता श्रंखला की स्वयं की लिखी पुस्तक *बुधिया का सपना* के दूसरे भाग की मांग को इसका उत्तम उदाहरण बतलाया. ग्रामीण परिवेश में ग्रामीणों की भावना एवं कुरीतियों के उन्मूलन हेतु लिखी किताबें आज भी लोकप्रिय हैं. छोटे-छोटे स्थानों से समाचार पत्रों का प्रकाशन की नई खबरें भी पाठकों के जुड़ाव को आशान्वित करती है
मुंबई से साहित्यकार श्रीमती उषा सक्सेना ने अपने विचारों में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पाठक नहीं बल्कि पुस्तके पाठकों से दूर जा रही है, चाहे वह पुस्तकों की बढ़ी हुई कीमत के कारण हो या आम आदमी की बात किताबों में ना होना जैसे कई कारण शामिल हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पुस्तके हमारी संस्कृति से जुड़ी होती है इसलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले हमारे पुस्तकों और पुस्तकालयों को नष्ट किया ताकि भारतीय संस्कृति से यहां के लोगों को काटा जा सके. पुस्तकों के महत्व को इसी एक पंक्ति में समझा जा सकता है.
*बस्तर के साहित्यकार विजय सिंह* ने विषय एवं चिंता पर असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि किताबों में यदि पाठकों की रुचि एवं उनसे जुड़ी सामग्री शामिल नहीं होगी तब पाठक कैसे जुड़ेंगे उन्होंने आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि नई तकनीक के बीच भी पुस्तकों का मूल्यांकन कम नहीं हुआ है जो पाठकों की जागरूकता को प्रदर्शित करता है. सफदर हाशमी की पंक्तियां *किताबें करती है बातें* से उन्होंने किताबों के महत्व को रेखांकित किया. *साहित्यकार गंगा प्रसाद मिश्र* ने कहा कि जब तक आम आदमी के लिए किताबें नहीं लिखी जाएंगी पाठक आखिर कैसे जुड़ पाएंगे साहित्य से आम आदमी को जोड़ने का प्रयास तभी संभव है जब उनके अनुकूल साहित्य की रचना की जाए.

*राष्ट्रीय क्षितिज के व्यंगकार गिरीश पंकज* ने अच्छी पुस्तकों से पाठकों को जोड़ते हुए कहा कि अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करने वाले व्यक्ति संस्कारवान और विद्वान होते हैं. पुस्तकें आपकी संस्कृति और स्वभाव को बदलने में अहम भूमिका निभाती हैं. देश के सबसे साक्षर राज्य केरल के बारे में उन्होंने बताया कि केरल के हर गांव में आपको पुस्तक संस्कृति के विकास का पैमाना पुस्तकालय और पाठक मिल जाएंगे. पुस्तकों को धर्म ग्रंथों के रूप में घरों में रखने एवं पूजन की संस्कृति इस देश की धरोहर रही है, अतः आप अपने मकान में एक कमरा *पुस्तक घर* के रूप में भी अवश्य रखें, ताकि बच्चों में पुस्तकों के पढ़ने के प्रति रुचि जागृत हो. *अंबिकापुर के साहित्यकार जितेंद्र सिंह सोढ़ी* ने कहा कि पुस्तकों का आज भी कोई विकल्प नहीं है उन्होंने उदाहरण देते हुए सचेत किया कि जिस यूरोपीय संस्कृति में हमें मोबाइल पढ़ने की तकनीक दिया है उन्ही यूरोपीय युवकों को बड़े-बड़े होटलों एवं पुस्तकालयों में विद्वानों के बीच मोबाइल को दरकिनार कर पुस्तकों को पढ़ते हुए देखा जा सकता है. किसी भी देश की संस्कृति परंपरा और जीवन मूल्यों की गहराई तक जाने के लिए पुस्तकों के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है. ई बुक्स के सकारात्मक पक्ष को रखते हुए उन्होंने प्रिंट से बाहर हो चुकी पुस्तकों को प्राप्त करने का एक अच्छा माध्यम बताया,उन्होंने सचेत किया कि पुस्तकों के साथ युवा पीढ़ी का न जुड़ना अच्छे भविष्य का संकेत नहीं है.
उमरिया के प्रोफेसर महेशानंद स्वामी ने पुस्तकों को बचपन का साथी कहते हुए कहा कि प्राथमिक शिक्षा से लेकर बड़े होने तक हम लगातार पुस्तकें अपने ज्ञानार्जन के लिए पढ़ते रहे हैं. लेकिन ऐतिहासिक साहित्यिक पुस्तकों का अध्ययन हमारी सोच को बदलने और ज्ञान को बढ़ाने का कार्य करती है.
एक योग्य नागरिक की परिभाषा में पुस्तकों का पढ़ना और ज्ञानार्जन भी शामिल होता है. जीवन में सफलता का रास्ता भी पुस्तकों से होकर ही जाता है. बैकुंठपुर के साहित्यकार रुद्र मिश्रा ने पुस्तकों के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि देश की संस्कृति को नष्ट करने हेतु यवन, मुगल एवं अंग्रेजो ने हमारे पुस्तकों को नष्ट करने का क्रम लगातार जारी रखा, किंतु सूर,कबीर ,तुलसी, जैसे लेखकों ने अपने पुस्तक लेखन से इस देश की सांस्कृतिक अस्मिता को बनाए रखा. जब पुस्तकें आम आदमी की पहुंच मे होंगी तभी वह पाठक के रूप में जुड़ पाएंगे. पाठकों और पुस्तकों के बीच की दूरी को कम करने के लिए विषय और समय के अनुकूल आम आदमी के लिए लेखन एवं वाजिब कीमत की आवश्यकता है इस चिंता में यदि हम शामिल होंगे तब पाठक अवश्य जुड़ेंगे और हम समाज को सही दिशा की ओर ले जाने में समर्थ होंगे।
हिंदी के सहायक प्रोफेसर बृजलाल साहू ने कहा कि पाठक, लेखक और प्रकाशक का समूह है पुस्तक . जिनके सामंजस्य से पुस्तकों के बाजार का निर्माण होता है. इसमें यदि कोई भी पक्ष कमजोर पड़ेगा तब पाठक प्रभावित होंगें. पाठकों की कमी से असहमति व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रकाशित श्रेष्ठ पुस्तकों ने मुझे स्वयं प्रभावित किया है, जिसमें सद्य प्रकाशित औघड़ जैसी एक दर्जन पुस्तकों समेत कई पुस्तकें पाठकों को तेजी से जोड़ रही है. यदि पुस्तकें स्तरीय होंगी एवं सही मूल्य पर उपलब्ध होंगी तब पाठक भी इससे अवश्य जुड़ेंगे।
डॉ रश्मि सोनकर ने तकनीकी और मेडिकल की पुस्तकों की महंगाई के कारण महाविद्यालयों में पुस्तकालयों की जरूरत एवं महत्व को रेखांकित किया उन्होंने कहा कि बिना समृद्ध पुस्तकालय के तकनीकी छात्रों का पढ़ना संभव नहीं है, इतना अवश्य है कि समाज के धरातल पर लिखी साहित्यिक पुस्तकें यदि आम आदमी के रुचि से बाहर होंगी तब पाठक को पुस्तकों की और आकर्षित करना आसान नहीं होगा,कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र श्रीवास्तव ने कहां कि स्वस्थ समाज के निर्माण में पुस्तकों और पाठकों की अहम् भूमिका है एक पुस्तकालय विहिन नगर कभी भी समृद्ध नगर नहीं कहा जा सकता. आंचलिक भाषाओं एवं बोलियों का साहित्य सृजन जहाँ आंचलिक संस्कृति से जोड़ेगा वहीं पाठकों एवं पुस्तकों के बंधन को मजबूत करेगा .
साहित्यकार सुषमा श्रीवास्तव ने बच्चों को पुस्तक संस्कृति से जोड़ने का दायित्व अभिभावकों पर डालते हुए कहा कि यदि बचपन से हमें पत्र पत्रिकाएं पढ़ने में शामिल न किया जाता तब शायद आज हम सामाजिक जी्वन के इस मंजिल पर नहीं होते. अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को बचपन से ही छोटी-छोटी बाल पुस्तकों के साथ जोड़ें. पत्रकार संतोष जैन ने पुस्तकों को ज्ञान, संस्कृति एवं धर्म का संवाहक कहा जो चरित्र निर्माण करने में सहायक है पुस्तकों का अध्ययन हमें समाज में जीने की दिशा देता है नगर में समृद्ध पुस्तकालय की आवश्यकता महसूस करते हुए उन्होंने राम मंदिर में संचालित संबोधन पुस्तकालय को और समृद्ध करने की आवश्यकता पर जोर दिया संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पुस्तक ,पुस्तकालय , पाठक तथा कॉपीराइट संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु घोषित विश्व पुस्तक दि्वस सप्ताह कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकार एस एस निगम, कल्याण केसरी, सतीश द्विवेदी, संतोष जैन, रश्मि सोनकर, प्रमोद बंसल, नारायण तिवारी, सुषमा श्रीवास्तव, डॉ निशांत श्रीवास्तव, गंगा प्रसाद मिश्र की वैचारिक भागीदारी एवं वनमाली सृजन केंद्र कोरिया अध्यक्ष योगेश गुप्ता के तकनीकी सहयोग ने कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान की.

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