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तिरपाल के सहारे कलेक्टोरेट, खतरे में दुर्ग जिले का कीर्ति स्तंभ

दक्षिणापथ . दुर्ग
कभी दुर्ग जिले का कीर्ति स्तंभ के रूप में पहचाने जाने वाला जिला कलेक्टोरेट भवन को इस बारिश में खुद को बचाने के लिए तिरपाल का सहारा लेना पड़ रहा है। जिले भर के विकास के लिए जिस भवन से योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाता है वह भवन अपने संधारण की बाट जोहते खड़ा है। उन स्थितियों में जब मुख्यमंत्री और लोकनिर्माण मंत्री का यह गृह जिला भी है। पीडब्ल्यूडी मंत्री अपने इस विभागीय भवन में अक्सर बैठकें लेने आते रहते हैं। कलेक्टोरेट भवन को देखकर राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजि़मी है।


गौरतलब है कि 1906 में दुर्ग को जिला बनाया गया था। उसके बाद के कुुछ सालों में अंग्रेज शासकों ने जिला कलेक्टोरेट भवन का निर्माण ब्रिटिश इंजीनियरिंग शैली में कराया था। 100 साल से भी अधिक समय से बना हुआ यह भवन अविभाजित दुर्ग जिले का ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश का गौरवगान करते खड़े नजर आता है। पर आज यह भवन बारिश की पानी से खुद को महफूज रख पाने में नामुकम्म्ल साबित हो रहा है। यहां लगे अंग्रेजी स्टाईल के कवेलु क्षतिग्रस्त हो चले हैं, जिन्हें संधारित कराने में जिला प्रशासन व लोक निर्माण विभाग सक्षम नही हो पा रहा है। अतएव भवन के कवेलू के ऊपरी हिस्से को तिरपाल से ढंक दिया गया है।

अविभाजित मध्यप्रदेश के वक्त से कलेटोरेट के माडल भवन के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका दुर्ग का यह भवन आज भी जिले का शाश्वत पहचान बना हुआ है। इसे संरक्षित करने की अवश्यकता है। किंतु मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व लोकनिर्माण मंत्री ताम्रध्वज साहू के गृहजिले के कलेक्टोरेट भवन के संधारण पर शासन का ध्यान नहीं देना हैरतजनक है। जब इतने महत्वपूर्ण भवनों के रखरखाव में प्रशासन सफल नहीं हो पा रही है तो आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले भर के पुल पुलियों एवं अन्य सरकारी भवनों की स्थिति क्या होगी?

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