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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता — पीएचडी शोधार्थी कहते हैं कि ……..पढ़े पूरी खबर… अभिभावकों के साथ …शिक्षाविद और ये भी समझें ..

 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कोरोना महामारी ने वैश्विक संकट का रूप ले लिया है परिणाम स्वरूप इससे अत्यंत विकट परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं । इस महामारी का दुष्प्रभाव सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं अन्य सभी क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हो रहा है । ऐसी परिस्थिति में शिक्षा व्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है । विगत लगभग डेढ़ वर्षों से शिक्षा व्यवस्था में इस महामारी के कारण व्यापक बदलाव देखा गया है । विद्यालयों, महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की भौतिक उपस्थिति के स्थान पर ऑनलाइन शिक्षा का चलन प्रारम्भ हुआ है । ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के अपने कुछ विशेष गुण एवं दोष हैं परन्तु समय की माँग के अनुरूप यह एक अच्छा विकल्प है । प्रश्न यह उठता है कि विगत डेढ़ वर्षों से अबतक शैक्षिक क्षेत्र में हमारी क्या प्रगति रही है ? महामारी की जटिल परिस्थितियों के मध्य ऑनलाइन शिक्षा संचालन के उपरांत परीक्षा प्रबंधन एवं उसके परिणाम के विषय में चिंतन करना सामयिक परिस्थितियों में अपरिहार्य है। स्कूली शिक्षा एवं उच्च शिक्षा दोनो में परीक्षा के स्थान पर ‘जनरल प्रमोशन’ का सहारा लिया जा रहा है परन्तु इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत सोचनीय है ।
यदि स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर दृष्टि डालें तो यहाँ कक्षा आठवी तक सामान्य परिस्थिति में भी सभी विद्यार्थियों को उत्तीर्ण किये जाने की परंपरा रही है । पिछले वर्ष कोरोना के कारण नवमी की परीक्षा ले पाना संभव न हो सका था और अभी हाल ही में बिना परीक्षा लिए असाइनमेंट के आधार पर दसवीं के परिणाम भी घोषित किये गए हैं । मूल विषय यह है कि इस वर्ष दसवीं उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों का सामना प्रारंभ से अबतक वास्तविक परीक्षा से नहीं हो सका है अर्थात इन विद्यार्थियों ने अबतक जितनी भी परीक्षाएँ दी हैं उनमें अनुत्तीर्ण होने के भय और दबाव का सामना उन्हें पूर्ण रूप से नहीं करना पड़ा है। जिसका परिणाम आगामी भविष्य में स्वयं उनके लिए घातक हो सकता है। कोरोना महामारी पश्चात जब भी वास्तविक परीक्षाओं से इन विद्यार्थियों का सामना होगा इन्हें काफी अधिक मानसिक कठिनायों और विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है यह भी एक चिंतनीय विषय है ।
दूसरी समस्या वर्तमान में परीक्षा परिणामों के मूल्यांकन से जुड़ी हुई है । इस वर्ष दसवीं में लगभग 98 प्रतिशत विद्यार्थी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए हैं और अधिकांश विद्यार्थियों ने 90 प्रतिशत से अधिक अंक भी अर्जित किया है । मूल्यांकन की इस पद्धति से अधिक परिश्रम करने वाले योग्य विद्यार्थियों के साथ जहाँ पूर्ण न्याय नहीं हो पा रहा है वहीं पूर्व के वर्षों में उत्तीर्ण विद्यार्थी भी इससे चिंतित हैं । योग्यता और गुणवत्ता के स्थान पर सभी की स्थिति एक समान दिखायी दे रही है ।
शासन की कुछ भर्तियाँ दसवीं के मेरिट के आधार पर होती है और इस वर्ष उत्तीर्ण विद्यार्थियों को जहाँ इसका अत्यधिक लाभ मिलने की सम्भावना है वहीं पूर्व में दसवीं उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए यह न्यायसंगत नहीं है अतः इस समस्या का समाधान जरूरी है इसलिए शासन की ऐसी भर्तियाँ जिनमें दसवीं के परीक्षा परिणाम के आधार पर कुछ सेवाओं हेतु चयन किया जाता है उसमें प्रतियोगी परीक्षा या साक्षात्कार के माध्यम से या इस वर्ष के विद्यार्थियों के परिणामों की गणना में स्केलिंग पद्धति अपनाकर किये जाने का विकल्प ज्यादा उपयुक्त है जिससे योग्य अभ्यर्थियों के साथ न्याय हो सके ।
इसी प्रकार अगले शैक्षणिक सत्र में ग्यारहवीं में प्रवेश के समय विज्ञान या वाणिज्य जैसे किसी संकाय विशेष में अधिकांश विद्यार्थियों के जाने की भी संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता और यदि अधिकांश विद्यार्थी दसवीं के परिणाम के आधार पर इन संकायों में प्रवेश चाहेंगे तो इससे भी भिन्न- भिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होंगी तथा अनेक योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश न मिल पाने की स्थिति भी बन सकती है । आशय यह है की मूल्यांकन की इस पद्धति से विद्यार्थियों के बड़े वर्ग के साथ असमान व्यवहार हो रहा है जो संविधान सम्मत नहीं है । समाधान स्वरूप यह किया जा सकता है कि ग्यारहवी में प्रवेश के समय संबंधित विद्यालय द्वारा लघु स्तर पर प्रवेश परीक्षा या साक्षात्कार का आयोजन किया जाए और विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार विज्ञान, कला या वाणिज्य संकाय में उन्हें प्रवेश दिया जाए।
स्कूली शिक्षा के साथ ही उच्च शिक्षा में भी कुछ इसी प्रकार की परिस्थितियाँ देखने को मिल रही है । उच्च शिक्षा के अंतर्गत अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ ऑनलाइन ब्लाइंडेड मोड में होना प्रस्तावित है एवं अन्य कक्षाओं के विद्यार्थियों को जनरल प्रमोशन देने की योजना है । मूल प्रश्न यह है कि इन विकल्पों के माध्यम से आखिर हम किस ओर बढ़ रहे हैं ? क्या यह विद्यार्थियों के भविष्य के लिए उचित है ?
वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षा व्यवस्था के समक्ष अनेक समस्याएँ एवं चुनौतियाँ हैं । परंतु उसके समाधान के बीज भी व्यवस्था के अंदर ही विद्यमान है । इस पूरे परिप्रेक्ष्य को गहराई से समझने और उसपर चिंतन करने की आवश्यकता है । हमारे सामने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका समाधान अत्यंत आवश्यक है जैसे क्या ऑनलाइन मोड की परीक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों के अध्ययन का सहीं मूल्यांकन किया जा सकता है ? इसका उत्तर है हाँ किया जा सकता है परंतु उसके स्वरूप में आंशिक परिवर्तन की आवश्यकता है । क्योंकि ऑनलाइन माध्यम से परीक्षा संपन्न कराने में नकल रोक पाना अत्यंत जटिल एवं दुष्कर है अतः इसे रोकने की बजाय प्रश्नो के स्वरूप में परिवर्तन की आवश्यकता है। परीक्षा में प्रश्नों का समायोजन कुछ इस प्रकार से किया जा सकता है जिसमे सिर्फ सूचनात्मक ज्ञान ही अपेक्षित न हो अपितु उसके साथ मौलिक चिंतन और विश्लेषण की भी आवश्यकता हो। ऐसा होने पर विद्यार्थियों के पास कितने ही संसाधन मौजूद क्यों न हो उन्हें अपने चिंतन के अनुरूप ही उत्तर का प्रारूप बनाना होगा । एन.सी.ई.आर.टी ( NCERT ) की पुस्तको में प्रत्येक अध्याय में ऐसे प्रश्न देखे जा सकते हैं जिसमें सूचनात्मक उत्तर के स्थान पर विश्लेषण और मौलिकता की आवश्यकता होती है । उदाहरण स्वरूप यदि हम एक प्रश्न की बात करें कि, संविधान के द्वारा व्यक्तियों को कौन – कौन से मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं वर्णन कीजिये, ये प्रश्न का एक सामान्य प्रारूप है । इसे ही यदि हम परिवर्तित कर दें कि मौलिक अधिकार के न होने से व्यक्ति को किन – किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है ? तो इस प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत अधिक मौलिकता एवं विश्लेषणात्मकता की माँग करता है । इसलिए विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आगामी होने वाली परीक्षाओं में ऐसे परिवर्तन कर वास्तविक अर्थों में परीक्षा भी ली जा सकती है और उचित मूल्यांकन भी किया जा सकता है । आगामी कुछ दिनों में बारहवीं और महाविद्यालय के अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ प्रस्तावित हैं उनमें दसवी की तरह मूल्यांकन प्रणाली न हो इसका ध्यान रखना अत्यावश्यक है नहीं तो परिश्रमी विद्यार्थी इससे बहुत अधिक हतोत्साहित होंगे ऐसा होना हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए उचित नहीं है ।
कोरोना महामारी के मध्य हमारे लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम स्वास्थ्यगत विषयों को लेकर जितने सतर्क हैं उसी प्रकार की सतर्कता शिक्षा व्यवस्था के संचालन में भी रखें । शिक्षा व्यवस्था के समक्ष वर्तमान में अनेक समस्याएं एवं चुनौतियाँ हैं जैसे ऑनलाइन शिक्षा की अधिकता का नकारात्मक प्रभाव जहाँ एक ओर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर हो रहा है वहीं लैंगिक असमानता के उदाहरण भी समाज में दिखायी दे रहे हैं । विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में छात्राओं को छात्रों की अपेक्षा ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, पितृसत्तात्मक व्यवस्था में बालिकाओं को ऑनलाइन शिक्षा के लिए समाज पूर्ण रूप से कितना तैयार है इस विषय पर चिंतन भी अनिवार्य है । परिस्थितियाँ सदैव समान नहीं होती इसलिए हमारा यह दायित्व है कि परिस्थितिनुरूप सकारात्मक विचारों के साथ हम आगे बढ़ें । शासन, प्रशासन, शिक्षक, विद्यार्थी और समाज मिलकर इस विकट परिस्थिति में भी शैक्षिक व्यवस्था की गुणवत्ता बनाये रख सकते हैं और ऐसा करना हमारा नैतिक कर्तव्य भी है ।

सौरभ सराफ
पी-एच.डी. शोधार्थी – हिन्दी
शा. वि. या. ता. स्नातकोत्तर स्वशासी महा. दुर्ग (छ.ग.)
हेमचन्द यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग (छ.ग.)

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