ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया …स्व बिसाहूदास महंत की पुण्य स्मृति में ……महात्मा गांधी जिनके आदर्श रहे …….राष्ट्रीय स्वतंत्रता और समाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर लेखन,चिंतन,विमर्श और चर्चा …..पढ़े पूरी आलेख
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया
बिसाहू दास महंत (1 अप्रैल 1924 – 23 जुलाई 1978)
स्व. बिसाहू दास महंत का जन्म 01 अप्रैल 1924 को छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के ग्राम सारागांव में हुआ था। उनका जन्म छोटे किसान परिवार में हुआ था।जीवन साथी धर्मपत्नी जानकी देवी । दो पुत्र चरण दास महंत और राजेश महंत तथा चार बेटियों सहित संस्कारिक सुखी परिवारिक विरासत थी। संत शिरोमणी कबीर साहेब जी के अनन्य अनुयायी रहे।जिसका गहरा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। शिक्षा और संस्कार पर विशेष ध्यान और जोर देते थे। पढ़ने और लिखने का काफी शौक था। 1942 और 1947 के बीच अपने कॉलेज जीवन में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और इस वजह से सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की और उनकी छात्रवृत्ति को भी खारिज कर दिया था।
लोगों से मिलना जुलना उनके दुःख सुख में शामिल होना अपने आसपास के लोगों की यथायोग्य मदद करना,अन्याय का सामूहिक ग्रामीण जन शक्ति के साथ विरोध करना , सामाजिक सरोकार को जीना उनके स्वभाव व जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी उनके आदर्श रहे। राष्ट्रीय स्वतंत्रता और समाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर लेखन,चिंतन,विमर्श और चर्चा दैनिक जीवन चर्या थी। गांव और आसपास के लोग उनके व्यवहार,सदाचरण,सोच ,बुद्धिमत्ता और सेवाभाव से बहुत प्रभावित थे। यही आचरण और व्यवहार ने बिसाहुदास महंत को उनका (ग्रामीण जनों का) एक स्वाभाविक जन नेता बना दिया था।
बिसाहूदास महंत की राजनीति में कोई विशेष रुचि नहीं थी। लेकिन उनके व्यक्तित्व ने कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व को बहुत प्रभावित किया और देश की आजादी के बाद सन 1952 में पहलीबार नया बाराद्वार क्षेत्र से विधायक चुने गए। ।तब से आजीवन 1978 तक विधायक और सम्माननीय मंत्री रहे। सन 1967 से 1978 तक उनका चुनाव क्षेत्र चांपा रहा। 23 जुलाई 1978 को लगभग 54 वर्ष की उम्र में गृहनिवास सारागांव जिला जांजगीर चांपा में हृदयाघात से निधन हो गया। सांसारिक जीवन को अलविदा कह गए। संत कबीर की वाणी को आत्म सात करते हुए बहुत ही शांत मुद्रा में अपनी करनी – रहनी को यहीं संसार में निर्लेप भाव से छोड़कर बिना किसी वाद विवाद, दाग या बुराई के “ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया”।
लेकिन आज भी उनका व्यक्तित्व और कृतित्व राजनीति व सामाजिक जगत के लिए पथ प्रदर्शक है।गौरवशाली धरोहर और विरासत है।
स्मृति शेष बिसाहु दास महंत जी की विरासत को उनके सुपुत्र डॉ चरण दास महंत जी पूरी निष्ठा से आगे बढ़ा रहे हैं और उसे समृद्ध कर रहे हैं।चरण दास महंत जी को भी अपने शालीन और शांत स्वभाव के बीच राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जवाबदारी और जिम्मेदारी अचानक आ पड़ी। लेकिन पिता के संस्कार, आदर्श,अनुशासन,अध्यात्मिक ज्ञान, गुरू संत शिरोमणी श्री कबीर साहेब जी के प्रति संपूर्ण समर्पण ,सामाजिक सरोकार,लेखन, पठन,और छोटे बड़े सभी के प्रति समान आदर भाव,कोई विरोधी नहीं, कोई शत्रु नहीं सभी के प्रति मित्रवत व्यवहार उन्हें एक आदर्श और सफल राजनेता के रूप स्थापित करता है। और इसी सदाचरण और व्यवहार में लोग उनमें उनके पिता स्व. बिसाहु दास महंत की छवि देख सुखद स्मृतियों का अहसास करते हैं।संप्रति डॉ चरण दास महंत छत्तीसगढ़ विधान सभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। कुलवधु श्रीमती ज्योत्सना महंत सांसद हैं।
मैं उस दृश्य को विस्मृत नहीं कर पाता हूं। शायद सन 1997 में जब अविभाजित मध्यप्रदेश में डॉ चरणदास महंत गृह मंत्री थे और उन्होंने रविंद्र भवन भोपाल में संत कबीर पर “ढाई आखर” के नाम पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था। जिसका मंचसंचालन मैने किया था। जगदीश मेहर, मनहरण सिंह ठाकुर और मेरी (गणेश कछवाहा) की परिकल्पना से
रविन्द्र भवन भोपाल को कबीर कुटीर में तब्दील कर दिया था। जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय दिग्विजय सिंह सहित पूरा मंत्रिमंडल और प्रबुद्ध गणमान्य विद्वत जनों से पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था। कई महत्वपूर्ण लोगों को बैठने की जगह भी नहीं मिली पाई थी। यह प्रभाव था संत कबीर के साथ उनके अनुयाई बिसाहु दास महंत के व्यक्तित्व का। संत कबीर के ताने बाने को समझने और बुनने की एक कोशिश थी।
छत्तीसगढ भूपेश सरकार ने हर साल राज्य के श्रेष्ठ बुनकरों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति पुरस्कार से सम्मानित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्व. महंत की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में यह घोषणा की थी।
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में बिसाहू दास महंत की अशेष स्मृतियां पथ प्रदर्शन करते रहेंगी
23 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि तिथि पर सादर नमन।
गणेश कछवाहा,रायगढ़ छत्तीसगढ़
gp. kachhwaha@gmail.com
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