वेदांती तिवारी: राजनीतिक वजूद बचाने की चुनौती.. जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे हैं..कांग्रेस ने नही दिया है टिकट.. अंचल के बड़े नेताओं में हैं शुमार..नफा या नुकसान..
वेदांती तिवारी: राजनीतिक वजूद बचाने की चुनौती.. जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे हैं..कांग्रेस ने नही दिया है टिकट.. अंचल के बड़े नेताओं में हैं शुमार..
अनूप बड़ेरिया
कोरिया जिले में नगरीय निकाय के चुनावों से ज्यादा घमासान अब पंचायत चुनाव में नजर आ रहा है। जहां दिग्गज कांग्रेसियों को टिकट नही मिलने से वह जिला व जनपद सदस्य के चुनाव निर्दलीय के रुप मे लड़ रहे हैं। कांग्रेस के ही जनपद सदस्य के लिए बैकुंठपुर के क्रमांक 6 से श्रीमती संगीता राजवाड़े, जिला पंचायत क्रमांक 1 से शरण सिंह, जिपं क्रमांक 6 से जनपद अध्यक्ष सूर्य प्रताप सिंह व जिपं क्रमांक 7 से चन्द्रप्रकाश राजवाड़े स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।
लेकिन इन सबके बीच जो नाम चौकानें वाला है वह है जिले के कद्दावर कांग्रेसी चेहरों में एक और दो बार कांग्रेस से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके वेदांती तिवारी का है जो कांग्रेस से समर्थन नही मिलने की वजह से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जिपं की सीट क्रमांक 7 से मैदान में हैं। यहां से कांग्रेस ने जनपद उपाध्यक्ष और एक बड़े चेहरे के रूप में अनिल जायसवाल को मैदान में उतारा है।
बात यदि वेदांती तिवारी कि की जाए तो पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय डॉ रामचंद्र सिंहदेव के करीबी होने की वजह से पार्टी ने उन्हें बेहद सम्मान व पद से नवाजा। इस बार भी वह विधानसभा के लिए दावेदार थे, परंतु कांग्रेस ने श्रीमती अंबिका सिंहदेव को टिकट दिया और वह जीत गई। श्रीमती अंबिका सिंहदेव के चुनाव जीतने के बाद कहीं ना कहीं वेदांती तिवारी को यह लगने लगा था कि उनकी राजनीतिक जमीन खिसकने लगी है। पिछले 1 वर्षों के हालात को देखकर संभवत उनके समर्थकों ने ही उन्हें जिला पंचायत चुनाव लड़ने की सलाह दी, ताकि वह अपनी की खिसकती हुई राजनीतिक जमीन को बचा सकें। कांग्रेस जब तक अपने जिला पंचायत सदस्य के उम्मीदवारों की सूची जारी करती तब तक वेदांती तिवारी अपना नामांकन भर चुके थे ।पार्टी द्वारा अनिल जायसवाल को अपना समर्थन देने के बावजूद उन्होंने नाम वापस ना लेकर चुनाव लड़ने की हुंकार भर दी। ऐसे में जिस पार्टी ने सब कुछ दिया अब एक तरह से वेदांती उसके खिलाफ हो चुके हैं। जाहिर है कथित रूप से लगातार हो रही उपेक्षा की टीस और अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की महत्वाकांक्षा ने उन्हें यह चुनाव लड़ने को मजबूर किया होगा।
अब वेदांती तिवारी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें अपना राजनीतिक वजूद बनाए रखने के लिए सर्वत्र झोंक कर यह चुनाव हर हाल में जीतना ही होगा। नहीं तो इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता यदि परिणाम विपरीत हुए तो तिवारी कांग्रेस की राजनीति के नेपथ्य में चले जाएंगे। चूंकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने साफ साइड लाइन जारी की है की त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में कांग्रेस अपने समर्थित उम्मीदवार चुनाव में उतारेगी। इससे साफ जाहिर है कि आने वाले कुछ दिनों में वेदांती तिवारी और उनके समर्थकों के खिलाफ पार्टी अनुशासत्मक कार्यवाही कर सकती है। या फिर उन्हें पार्टी से बाहर भी कर सकती है। सीधी सी बात है यदि इस चुनाव में वेदांती तिवारी सफल रहते हैं तो वह पार्टी के भीतर रहे या बाहर राजनीतिक रूप से उनका कद एक बार फिर ऊंचा हो जाएगा लेकिन विपरीत परिणाम की स्थिति में कहीं उनकी स्थिति प्रेमनगर के पूर्व विधायक व मंत्री तुलेश्वर सिंह जैसी ना हो जाए।
वेदांती तिवारी जिस तरह अपनी बैलगाड़ी में सवार होकर चुनावी बेला में प्रचार कर रहे हैं और सोमवार को कुड़ेली आमसभा में हुई भीड़ से भी धान के मुद्दे पर अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं कॉंग्रेस को घेर ही लिया। उससे साफ जाहिर है अब यह ब्राह्मण झुकने के मूड में तो नहीं है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दो बार विधायक का चुनाव लड़े वेदांती तिवारी का अपना व्यक्तिगत व्यापक जनाधार भी है। 34 ग्राम पंचायतों के लगभग 42 हजार मतदाताओं के बीच होने वाला यह जिला पंचायत का चुनाव काफी हाईप्रोफाइल होने जा रहा है और जिस गति से अपने समर्थकों के साथ वेदांती तिवारी ने इस महायज्ञ में आहुति के जैसे अपने आप को झोंक दिया है।इससे साफ जाहिर है कि यदि भाजपा या कांग्रेस ने उन्हें जरा भी हल्के में लिया तो यह भूल उन्हें काफी भारी पड़ सकती है।