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आम सी लगने वाली मगर बेहद खास शख्सियत व बैकुंठपुर की विधायक श्रीमती अम्बिका सिंहदेव के जन्मदिन पर विशेष लेख..अनूप बड़ेरिया… PAGE-11परिवार की ओर से ढेरों शुभकामनाएं…

आम लोगो की तरह बेहद साधारण सी लगने वाली मिलनसार व्यक्तित्व.. कोई उन्हें दीदी कहता है ..तो कोई बुआ.. और अपनत्व से मुस्कुरा कर हर किसी से मिलने वाली यह शख्सियत आम सी लगने वाली मगर बेहद खास बैकुंठपुर की विधायक श्रीमती अम्बिका सिंहदेव हैं। खास इसलिए की महज 2 वर्ष पूर्व बैकुंठपुर आना लोगों से सहज भाव व अपनेपन से मिलना और मिलने का तरीका इतना आत्मीय कि लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ जाना। लगातार क्षेत्र का दौरा.. इसी बीच उनके काका और कोरिया जिले के संस्थापक व शिल्पकार डॉ रामचंद्र सिंहदेव का निधन हो जाना.. फिर अपने काका के अधूरे सपने और जनता की मांग पर राजनीति में आना.. राजनीति में आने के चंद माह बाद छत्तीसगढ़ शासन के कैबिनेट मंत्री को चुनाव में हराना.. सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि मानो दिव्यस्वप्न सा लगता है, परंतु अंबिका सिंहदेव ने इसे साकार कर दिखाया। लेकिन चंद दिनों में मिली सफलता का श्रेय वह कदापि नहीं लेती हैं। बल्कि साफ शब्दों में कहती हैं कि उन्हें क्षेत्र की जनता ने व पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस मुकाम तक पहुंचाया है। वह तो मोतियों की माला की महज धागा है और मोतियां क्षेत्र की जनता और कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं।

राजशाही परिवार की मगर बेहद साधारण सी रहने वाली इस विधायक श्रीमती अंबिका सिंहदेव का आज जन्मदिन है। PAGE-11 उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

12 फरवरी 1968 को कोरिया राज परिवार के संझले कुमार कहे जाने वाले व पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय डॉ रामचंद्र सिंहदेव के बड़े भाई स्वर्गीय महेंद्र प्रताप सिंहदेव व श्रीमती उमा सिंहदेव की पुत्री अम्बिका का जन्म कोलकाता में हुआ था। अंबिका सिंहदेव बचपन से ही पढ़ने में काफी मेधावी थी। उन्होंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई अशोका हॉल कोलकाता तथा साउथ सिटी कॉलेज से बीकॉम किया। पढ़ाई के बाद अम्बिका की रुचि इंटीरियर डिजाइनिंग में रही है। इसमे वह कंसल्टेंट भी रह चुकीं हैं। सोशल वर्क, टैक्सटाइल डिजाइन हैंडीक्राफ्ट डिजाइन के अलावा मार्केटिंग में भी श्रीमती अंबिका सिंहदेव काफी सराही जा चुकी हैं। इसके अलावा बच्चों की मनोदशा सायकोलॉजी पर इन्होंने विशेष कोर्स किया हुआ है। इतना ही नहीं बोनजाई, एरोमा थेरेपी, एक्यूप्रेशर का भी कोर्स श्रीमती सिंहदेव ने बखूबी किया है।

पढ़ाई के बाद से ही महज 21 वर्ष की उम्र में ही एक निजी कंपनी में काम करने के बाद अंबिका ने खुद का बिजनेस स्टैंड किया व अपने दोनों छोटे बच्चों को साथ रख कर कोटा, चंदेरी , महेश्वर जाकर वहां हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें गाइड करना तथा प्रदर्शनी लगाकर इसकी व्यापार को विस्तार करने का निरंतर सफल प्रयास भी किया । इसके अलावा छत्तीसगढ़ के बस्तर आर्ट के लिए भी इन्होंने काफी प्रोत्साहित करने वाला कार्य किया तथा कोलकाता में भी इसकी प्रदर्शनी लगाकर आदिवासी कलाकृति को दूर-दूर तक पहुंचाया।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है 21 वर्ष की युवा आयु से अंबिका सिंहदेव ने लोगों के लिए जो काम करना आरंभ किया वह आज भी अनवरत जारी है। इस संबंध में वह  कहती है कि लोगों के लिए काम करने कि मेरे अंदर इच्छाशक्ति है और मैं लोगों के लिए काम लगातार करती रहूंगी ..मुझे नशा सा है लोगों की सेवा का.. लेकिन सेवा कर के हट जाने का। मैं लाइमलाइट में नहीं रह सकती। लेकिन अब काम करने के लिए सामने आना ही पड़ता है। इसके लिए अंबिका सिंहदेव के लिए यह दो लाइने परफेक्ट हो सकती हैं।

अभी से पांव के छाले ना देखो।
अभी यारों सफर की इब्तिदा है..।।

श्रीमती सिंहदेव कहती है उन्हें किताबें पढ़ने के शौक के अलावा लोगों को पढ़ने का भी शौक है। इसलिए वह लोगों से मिलने वाले लोगो के चेहरे को देखकर उन्हें पढ़ लेती हैं।
तीन बहनों में श्रीमती अंबिका सिंहदेव तो राजनीति में आ गयी। लेकिन उनकी एक बहन जयश्री सिंहदेव विवाह के बाद से दुबई में सेटल है और हाउस वाइफ है। वहीं अंबिका की एक और बहन मीनाक्षी सिंहदेव अविवाहित हैं और कोलकाता में शिक्षक है। श्रीमती अंबिका सिंहदेव के पति अमिताभ घोष ग्रेट ब्रिटेन में हैं कन्सल्टेंट होने के साथ वह बिजनेस मैन भी है। श्रीमती अंबिका का बड़ा बेटा आर्यमन वहीं कॉलेज में तथा छोटा बेटा अनिरुद्ध 12 वीं की पढ़ाई कर रहा है। ग्रेट ब्रिटेन में परिवार के सेटल होने के बाद भी हिंदुस्तान की मिट्टी की महक वह प्यार अंबिका को बरबस अपने वतन खींच लाता और वह कोलकाता के साथ-साथ कोरिया चलीं आती। बचपन से ही बैकुंठपुर व कोरिया से उनका गहरा नाता व लगाव बना रहा। वह बताती हैं की 1970 -71 में वह लगातार कैलाशपुर में रही, तब वहां न सड़क थी न बिजली थी। इसके पहले भी वह लगातार बैकुंठपुर आती रही हैं लेकिन उस समय युवतियों का इस तरह सार्वजनिक रूप से सामने आने पर बन्दिश थी, खासतौर पर राज परिवार में और भी ज्यादा। इसलिए लोगों से मेल मिलाप उतना नहीं हो पाता था।

अपने काका स्वर्गीय रामचंद्र सिंहदेव से राजनीति का ककहरा सीखने वाली श्रीमती अंबिका सिंहदेव इतनी सादगी से रहती हैं कि कहीं से वीआईपी श्रेणी की नहीं लगती हैं। चुनाव के पहले भी वह लोगों से बड़ी आत्मीयता से मिलती थी और स्वर्गीय कोरिया कुमार के जैसे गांव के हाट बाजारों में व ग्रामीणों के घरों में जाकर लोगों की महिलाओं , बच्चों व बुजुर्गों के बीच जमीन में बैठकर उनका हालचाल जान लेती थी । शायद इसीलिए लोग उन्हें कोरिया कुमार की परछाई भी कहने लगे थे। चुनाव जीतने के बाद भी जब किसी कार्यक्रम में उन्हें बुलाया जाता तो अंबिका मंच पर लगी वीआईपी कुर्सी पर ना बैठ कर दरी में बैठी महिलाओं के बीच में जा बैठतीं और उनसे बातें करती। यदि स्कूल जाती तो बच्चों के बीच जमीन में बैठ कर उन्हें पढ़ाती और यदि कॉलेज के एनुअल फंक्शन में जातीं तो मुख्य अतिथि की कुर्सी छोड़ वह छात्राओं के बीच बैठकर उनकी पढ़ाई की जानकारी लेती। वाकई इतनी सादगी, इतना मिलनसार व्यक्तित्व , इतने अपनेपन से लोगो से मिलना किसी दीदी या बुआ में ही संभव है। इसलिए जनमानस में वह इन्हीं नामों से प्रचलित हो चुकी है।

इतना ही नहीं सरगुजा महाराजा टीएस सिंहदेव की माता व श्रीमती अंबिका की दादी श्रीमती देवेंद्र कुमारी के निधन के बाद  उन्होंने बैकुंठपुर में अपने समर्थकों से निवेदन किया है कि उनके जन्मदिन पर किसी भी प्रकार का तामझाम ना किया जाए बल्कि सादगी पूर्ण तरीके से जन्मदिन को मनाया जाए ।

उनकी इच्छा है स्वर्गीय कोरिया कुमार के अधूरे सपने को पूरा करने की इसी के लिए वह दृढ़ निश्चय के साथ लगी हुई हैं। जाहिर है महज अभी तो शुरुआत हुई है.. अभी लंबा सफर तय करना है। श्रीमती सिंहदेव के लिए कहा जा सकता है कि..
उसे गुमां है कि मेरी उड़ान कुछ कम है।
मुझे यकीं है ये आसमान कुछ कम है।।
बैकुंठपुर ही नहीं वरन पूरे कोरिया के विकास के लिए जिस प्रकार का ताना-बाना अंबिका सिंहदेव बन रही है निसंदेह वह कोरिया विकास की गाथा का मील का पत्थर साबित होगा। जिस प्रकार वह जिला चिकित्सालय सहित पब्लिक हित की जगहों का दौरा करती हैं लेकिन कमियां पाने पर वह अधिकारियों को ना डाँटती है, ना डपटती है, ना झल्लातीं हैं। वह सिर्फ अधिकारियों से हाथ जोड़कर विनम्र आग्रह कहती हैं और उनका कहना भी एकदम साफ रहता है कि हमारे पास जितने सीमित संसाधन है उनसे ही हम बेहतर से बेहतर कार्य करें यही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। बाकी आगे संसाधन उपलब्ध कराने के लिए मैं हूं..

भारतीय संस्कार इस विधायक महिला में कितने कूट-कूट कर भरे हैं इस बात का पता उस समय चलता है जब वह किसी भी पूजन कार्यक्रम में शामिल होती हैं तब बकायदा सिर पर उनके आंचल ढका रहता है।

विधायक अंबिका सिंह के राजशाही परिवार के होने के बावजूद किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करते हैं बल्कि ग्रामीणों के बीच जमीन में बैठकर ही काफी अपनत्व के साथ उनकी बातों को सुनती हैं।

शहर के मानस भवन और चिल्ड्रन पार्क को रंग पेंट से जो नया रूप दिया गया है वह श्रीमती अंबिका सिंहदेव के निर्देश का कमाल है। इतना ही नहीं शहर में मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाए जाने के लिए उन्होंने जगह का भी चयन कर लिया है।

वाकई अब कोरियावासी इस बात के लिए तो निश्चिंत है कि अब मजबूत और सशक्त हाथों में कोरिया का भविष्य पहुंच चुका है..

PAGE-11 परिवार बैकुंठपुर की यशस्वी विधायक श्रीमती अंबिका सिंहदेव के उज्जवल भविष्य व अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता है और उन्हें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाओं के साथ.. उनके व्यक्तित्व के अनुरूप..

मैं आंधियों के पास तलाश-ए- सबा में हूं।
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या।।

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