
बेहतर समाज व राष्ट्र बनाने के संघर्ष और जुनून के शख्सियत का नाम है रोशन लाल अग्रवाल। ऐसे लोगों की मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा समाज के संघर्षों में जिंदा रहते हैं ….रोशनलाल अग्रवाल की 69वीं जन्मतिथि पर विशेष
रोशन लाल अग्रवाल
20 जून 1954 – निधन 01 फरवरी 2021
69वीं जन्मतिथि पर विशेष
कुछ लोग होते हैं जिनकी स्मृतियां विस्मृत नहीं होती।
कुछ काम और नाम उनकी पहचान बन जाती है।लघु हनुमान चालीसा बांटने और एक बेहतर समाज व राष्ट्र बनाने के संघर्ष और जुनून के शख्सियत की पहचान और प्रतिष्ठित नाम बन गया था विधायक रोशन लाल अग्रवाल। ऐसे लोगों की मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा समाज के संघर्षों में जिंदा रहते हैं।20 जून उनकी 69 वीं जयंती है।एक फरवरी 2021को जीवन और मौत से जूझते हुए अचानक अलविदा कह गए।
लगभग तीन वर्ष हो गए।लेकिन रायगढ़ की सड़कें आज भी ढूंढती है । स्कूटर में सफेद पायजामा और साधारण कुर्ता पहने कभी अकेले कभी किसी साथी के साथ पीछे बैठे ,बहुत ही सीधे ,सरल और साफ गोई के साथ ठेठ हरियाणवी और हिंदी के मिले जुले शब्दों में सीधे ,सपाट और स्पष्ट बोलने वाले,छोटे – बड़े, ऊंच – नीच, धर्म – जाति ,क्षेत्र और भाषा के भेद भाव के बिना ,भीषण गर्मी,ठंड और बरसात में भी सबसे मिलते – जुलते ,दुख – सुख और उनकी समस्याओं को जानने समझने का प्रयास करते थे। आज भी लोगों की नजरे सुनी सड़को को निहारती रहती हैं।
एक स्कूटी लेकर शहर के गली मोहल्लों, दुकानों, घरों ,झोपड़ियों ,चौराहों में अपने परिचितों शुभचिंतकों तथा आम जनता से बहुत साधारण तरीके से मिलना जुलना उनके सुख दुख को साझा करना,उनकी समस्याओं को समझना उस पर चिंतन करना और फिर उसके समाधान के लिए यथायोचित प्रयत्न करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा थी । विधायक बनने के बाद भी बिना किसी भीड़ भाड़ व झुंड के बहुत ही साधारण सरल और सहज तरीके से मिलने जुलने की वही दिनचर्या जारी रही। एक बहुत लघु हनुमान चालीसा लोगों को बड़ी श्रद्धा से देना उनकी पहचान बन गई थी। जो लोग नाम से नहीं जानते थे वे हनुमान चालीसा बांटने वाले विधायक के नाम से उनका परिचय या पहचान बताते थे।
इन तीन वर्षों में समाजिक,राजनैतिक परस्थितियों में काफी बदलाव आया है। परिस्थितियां काफी जटिल और गंभीर हो गईं हैं।शहर बारूद के ढेर में तब्दील होता जा रहा है।पर्यावरण ,जल,और जलस्रोत खतरनाक प्रदूषण की चपेट में है।डेम बनने के बावजूद केलो का प्रवाह थम सा गया है। नदी में बहाव नहीं है। सब कुछ एकजगह ठहर सा गया है। अब दलदल , सड़ांध ,बदबू और घुटन महसूस हो रही है।नगरीय व्यवस्थाओं की समस्यायें जटिल और गंभीर हुई हैं। परन्तु संघर्षों के तीखे स्वर और आंदोलनों की चहल पहल, प्रशासनिक जन संवाद , गंभीर तथ्यात्मक राजनैतिक बहसों की सांसे मानो थम सी गई है। ऐसे हालात में मस्तिष्क को झंझोरते तलाशती है स्मृतियां अपने जुझारू जन प्रतिनिधि रोशन लाल अग्रवाल को।
अब राजनैतिक परिस्थियां भी बहुत बदल चुकी हैं।चरित्र,सिद्धांत,आचरण,विश्वास ,नैतिकताऔर लक्ष्य सब बदल गया है।अब वायदों, विश्वास , भरोसे और सेवा की जगह जुमले,नारों,झूठ,फरेब,तमाशेबाजी और इवेंट ने ले ली है।राजनीति समाज व राष्ट्र सेवा से पद , प्रतिष्ठा, दंभ, और पूंजी कमाने का बहुत बड़ा साधन मात्र हो गया है।अब आई ए एस,और न्यायमूर्ति भी राजनीति के चौखट में नतमस्तक और दंडवत हो रहे हैं।यदि देश के इस सर्वोच्च और सम्माननीय पदों में रहकर समाज और राष्ट्र सेवा नहीं कर सकते तो यह देश के लिए बहुत दुखद और चिंतनीय स्थिति है।यहीं से समाजशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों में यह सवाल उठना भी लाजिमी हो जाता है कि समाज व राष्ट्र को सभ्य,आदर्श,मूल्यवान बनाने और सामाजिक न्याय दिलवाने ,समाज व राष्ट्र में सर्वोच्च मानदंड स्थापित करने में जिनकी अहम जिम्मेदारी व भूमिका होती है यदि वह स्वयं सियासत में संगीन अपराध,तड़ीपार और यौन हिंसा में आरोपित संरक्षित नेताओं के चरणों में दंडवत हों तो वह समाज व राष्ट्रसेवा का उद्देश्य कैसे पूरा हो सकता है?यह अपने आप में बहुत बड़ा और गंभीर सवाल खड़े करता है।हम कैसा समाज और राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं ? यह यक्ष प्रश्न भी गंभीर चिंता उत्पन्न कर रहा है?
हमने जो सभ्यता, संस्कृति, शांति, अहिंसा, एकता ,धार्मिक सद्भाव और मानवता का आदर्श , उदाहरण और संदेश पूरे विश्व को दिया था वह काफी आहत हो चोटिल हो रही है। यह न तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों,विद्वत राजनेताओं, समाज शास्त्रियों यहां तक कि लोकप्रिय राजनेता अटल बिहारी बाजपेई के सिद्धांत और आदर्श थे और न अटल जी को अपना आदर्श मानने वाले भाई रोशन अग्रवाल जी का व्यवहार था। अपनी ही पार्टी (दल) में गलत नीतियों और विचारों का विरोध करने की क्षमता और स्वस्थ परंपरा का ही अभाव होने लगा।यह राष्ट्र के लिए काफी चिंताजनक है। मुझे मालूम है की स्व श्री देवी प्रसाद अग्रवाल ग्राम जामगांव निवासी,श्री सुगनचंद फरमानिया, स्व तामस्कर वकील ,चेंबर राजेंद्र अग्रवाल,मुकेश जैन , स्व रोशन लाल अग्रवाल और भी कई बड़े नेता ने अपने पार्टी फोरम में प्रदेश और देश के बड़े से बड़े नेताओं के सामने गलत नीतियों और विचारों का पुरजोर मुखर होकर कड़ा विरोध किया।मुकेश जैन तो आज भी अपने इसी तेवर के लिए पहचाने जाते हैं।और वही लोग ज़िंदा भी माने जाते हैं।
रोशन अग्रवाल ने कभी भी छोटा बड़ा या दलगत राजनीतिक द्वेष, भेदभाव,ईर्ष्या या नफरत घृणा की राजनीति नहीं की । कोई किसी भी पार्टी या विचारधारा का हो उनसे मिलना जुलना पूछना सीखना सहयोग लेना और देना उनके व्यक्तित्व को निखारता चला गया। मैने दो नेताओं को देखा जिसमे जानने, समझने , सीखने और कुछ नया बेहतर करने की ललक बहुत थी। उनके अंदर छोटे बड़े या पद प्रतिष्ठा का कोई अहंकार नहीं था।एक माननीय स्व. नंदकुमार पटेल और दूसरे भाई रोशन लाल अग्रवाल। जब भी कभी जरूरत पड़ती किसी विषय पर विमर्श के लिए तब स्व. नंदकुमार पटेल जी, बालक राम पटेल और,चौधरी गुरु जी के साथ घर आ जाते अच्छी चर्चा और विमर्श के बाद एक सही निर्णय में पहुंचते। कभी कभी फोन से ही बात कर लेते। कभी ऐसे ही कुशल क्षेम पूछ लेते। रोशन भाई तो यदि मैं घर पर नही मिलूं तो कार्यालय आ जाते। कई विभागीय पत्राचार तक की जिम्मेदारी सौंप देते और समय समय पर वार्ता , विमर्श और उस पर भावी रणनीति उसके प्रभाव पर ज्यादा ध्यान देते थे।
रोशन भाई जीवन संघर्षों के अनुभवों से परिपक्व एक सच्चे संघर्षशील सामाजिक कार्यकर्ता थे।जबरदस्त सांगठनिक क्षमता , कठिन परिश्रम , अनुशासन, आदर्श आचरण सीखने सीखने की ललक और ईमानदारपूर्ण सशक्त नेतृत्व ने उन्हें विधायक बनाया।और वे हाऊसिंग बोर्ड के डायरेक्टर बनाए गए। उन्होंने नवजवान ऊर्जावान युवाओं की एक बड़ी फौज तैयार की। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी को अपना आदर्श मानते हुए उन्होंने राजनीति में एक सुचिता और आदर्श प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने पुराने स्थापित चेहरों की जगह नए नए ऊर्जावान साफ सुथरे युवाओं को जोड़ा उनकी एक टीम तैयार की और उन्हें प्रशिक्षित भी किया। जिससे उनकी पार्टी का विस्तार हुआ और एक बड़ी ताकत और शक्ति प्राप्त हुई।
रोशन ने नफरत,विध्वंस,घृणा ,भेदभाव, भ्रष्ट आचरण की राजनीति से पृथक होकर रचनात्मक सामाजिक धरोहर और विरासत को संरक्षित व समृद्ध करने का सराहनीय काम किया।उन्होंने रायगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, साहित्यकारों, संगीत कला खेल जगत तथा सामाजिक विभूतियों की सूची तैयार की उनके जन्म दिन और निधन की तिथि तथा उनका जीवन वृत्त लिपि बद्ध कराया।अपने अखबार जनकर्म में उन्हें प्रमुखता से प्रकाशित किया करते थे। यही नहीं उन्होंने गलियों मार्गों का नामकरण उन महान विभूतियों के नाम से रखा ताकि आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास और विरासत से परिचित हो सके। तथा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी बंदेअली फातमी और साहित्यकार पंडित लोचन प्रसाद पांडेय, चिरंजीव दास जी के नाम से कॉलोनी बसाई।
भाई रोशनलाल अग्रवाल सामाजिक सरोकार के संघर्षशील जुझारू नेता थे । उनमें प्रबंधन (मैनेजमेंट) कौशल अद्भुत थी। हर कार्य योजनाबद्ध और उद्देश्यपूर्ण होता था। जब वो घर से निकलते थे उनके दिल और दिमाग में एक योजना बद्ध रोडमैप होता था। कहां से जाना किनसे मिलना है, किससे, कैसे ,क्या बातें,करनी है ? सारी चीजें बहुत स्पष्ट रहती थीं।किसी काम को अधूरा या पेंडिंग नहीं रखते थे। उनकी राजनीति का मुख्य आधार ही सामाजिक विकास हेतु राजनैतिक व प्रशासनिक अव्यवस्था के खिलाफ पूरी ताकत से संघर्ष करना था। यही कारण है कि हर छोटे बड़े विषयों , मसलों और समस्याओं पर उन्हें मुखर होकर संघर्षो की प्रथम पंक्ति पर पूरी ताकत के खड़े देखा जाता था। वे सही मायने में जनप्रिय नेता हो गए थे। लोग उन पर बहुत विश्वास करते थे। यही कारण था की हर वर्ग के लोग उनसे जुड़ते चले गए। जब विधायक बने तब उनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही काफी बढ़ गई वहीं लोगों की अपेक्षाएं और आशाएं भी असीमित हो गई। वे सामाजिक जनसंघर्षों से एक राजनेता बने थे। स्पष्टवादिता, खरा और सच्चा बोलना ही उनकी खासियत थी लेकिन शायद राजनीति को यह गवारा नहीं था।उनकी संघर्ष शीलता,जुझारूपन, विषयों, समस्याओं को बेबाकी से उठाना,सच्चा व खरा बोलना यह सारी विशेषताएं बुराइयों में तब्दील हो गई । धीरे धीरे रोशन भाई को भी यह समझ आने लग गया था सामाजिक कार्यकर्ता होने और एक पार्टी या राजनीतिक नेता होने में क्या अंतर है? सामाजिक सरोकार,विरासत और धरोहर को संरक्षित एवं समृद्ध करना जैसे बहुत सारे सपने अधूरे रह गए । राजनैतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि – रोशन भाई चुनाव हारे नहीं है राजनीति ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। विध्वंसक ,नफरत , द्वेष और नकारात्मक राजनैतिक विचारधारा ने उन्हें हराने का पूरा यत्न किया। वे स्वयं,पार्टी,समाज और राष्ट्र के हितैषी कैसे हो सकते हैं?
मनुष्य अपने जीवन के संघर्ष के अनुभव से ही बहुत कुछ सीखता है। जब अपने जीवन के संघर्ष के अनुभवों से सीख कर वह उसे समाज और राष्ट्र के साथ जोड़ता है तब वह एक सच्चा संघर्षशील सामाजिक कार्यकर्ता बन जाता है।और यही बेहतर समाज या राष्ट्र बनाने का जुनून उसे एक सच्चा राजनेता के रूप में भी गढ़ता है। यही बेहतर समाज व राष्ट्र बनाने के संघर्ष और जुनून के शख्सियत का नाम है रोशन लाल अग्रवाल। ऐसे लोगों की मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा समाज के संघर्षों में जिंदा रहते हैं।
ठहरे हुए पानी में काई जम जाती है पानी खराब हो जाता है पीने योग्य नहीं रहता। शायद यही शाश्वत सोच से उन्होंने ऊर्जावान युवाओं की नई टीम तैयार की ।पार्टी में नए युवाओं की एक श्रृंखला तैयार हुई जो पार्टी को संवारने और समृद्ध करने का काम किया। चुनाव हारने के बाद आत्मविश्लेषण का अवसर प्राप्त हुआ।रोशन भाई निरंतर अपनी सक्रियता बनाए रखे। युवा टीम को लेकर सकारात्मक रचनात्मक विचारधारा के साथ एक लंबी लकीर खींचने की कोशिश कर रहे थे। अचानक 01 फरवरी 2021 को उनके निधन के समाचार ने सभी को स्तब्ध कर दिया।
युवा टीम और उनके उत्तराधिकारी सुपुत्र गौतम अग्रवाल पर अचानक एक बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है।सुपुत्र गौतम अग्रवाल ने उनकी स्मृति में बहुत से कार्यक्रम किए हैं, जिसमें भारी संख्या में कार्यकर्ताओं और आम जनता का जुड़ाव देखा गया है। लेकिन उनके सामने चुनौतियां बहुत है।राजनीति का स्वरूप भी काफी विकृत और जटिल होता जा रहा है। विध्वंसक और नकारात्मक विचारधारा हावी होती जा रही हैं।ऐसी परिस्थितियों में रोशन के समर्थकों को पूरी जिम्मेदारी के साथ ,रोशन के विचारों और मानक सिद्धांतो को लेकर वर्तमान चुनौतियों का सामना पूरी जिम्मेदारी के साथ करने की जरूरत है।
स्मृतियां और सवाल ,विचार विमर्श बहुत से हैं।रोशन भाई आप नहीं रहे पर आपका राजनैतिक सामाजिक संघर्ष, कुछ करने की जिजीविषा, सामाजिक सारोकार,बहुत सारे सुंदर सपने हमारे बीच हैं।हर संघर्षों में तुम जिंदा हो, जिंदा रहोगे। तुम्हारी स्मृतियां विस्मृत नहीं हो सकती।
गणेश कछवाहा
रायगढ़, छत्तीसगढ़।
gp.kachhwaha@gmail.com
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