
जिंदल के लाठी चार्ज को भूले नहीं है ग्रामीण किसी भी कीमत में कोयला खदान के लिए जमीन नही देगें …..अधिकारियों के साथ बैठक में दो टूक ग्रामीणों का जवाब …. नहीं भूले हैं वो दिन ….ग्राम सभा में विरोध का प्रस्ताव देने के बाद भी पर्यावरणीय स्वीकृति किसान, आदिवासी विरोधी …आदिवासियों को मिले संवैधानिक विशेषाधिकार का हनन
रायगढ़। जिले के तमनार विकासखंड के ग्राम पंचायत गारें में बीते दिनांक 10/8 /2023 को गारें पेलमा 4/6 कोयला खदान के विषय को लेकर तहसीलदार एवं जिंदल के कर्मचारियों द्वारा ग्रामीणों के साथ बैठक किया गया । जिसमें ग्रामीणों द्वारा कोयला खदान को किसी भी कीमत में जमीन न देने एवं जनसुनवाई का विरोध की बात कही गई। ग्राम सभा में आपत्ति और विरोध के बाद भी शासन के द्वारा दी गई पर्यावरण स्वीकृति हास्यास्पद और आदिवासी किसान विरोधी प्रतीत होती है। जिसका बैठक में विरोध किया साथ ही पर्यावरण स्वीकृति की कापी की मांग ग्रामीणों द्वारा की गई ताकि यह भी स्पष्ट हो सके की स्वीकृति वही कोयला खदान की है।
इस खदान की पुरानी है कहानी…याद कर सिहर उठते हैं /-
जिसकी पहली जनसुनवाई 5 जनवरी 2008 को खम्हरिया में आयोजित की गई थी जिसमें लाठीचार्ज किया गया था जिसमें 125 ग्रामीण घायल हुए थे और ग्रामीणों द्वारा जनसुनवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी तब कहीं जनसुनवाई रद्द हुई और 2014 में 214 कोयला खदान जो रद्द हुए थे उनमें से गारे पेलमा 4/6 भी कोयला खदान रद्द की गई थी और यही से 2011में कोयला सत्याग्रह का जन्म हुआ जो 2 अक्टूबर को मनाया जाता है।
लाठी चार्ज दिन नदारद थे विधायक सत्यानंद राठिया उसे भी भूले नही है ग्रामीण./
यहां यह भी बताना जरूरी है कि स्थानीय विधायक सत्यानंद राठिया उस दिन इलाके से नदारद थे। रायगढ़ स्थित जिला पंचायत भवन में थे और वहीं से आयोजन का आंखों देखा हाल सुन रहे थे और मोबाइल फोन के जरिये प्रशासनिक अधिकारियों को दिशानिर्देश दे रहे थे।
आयोजन से पहले ही जिन्दल को जमीन नहीं दिये जाने का प्रस्ताव ग्राम सभा प्रस्ताव पारित कर चुकी थी। तो भी जनसुनवाई का आयोजन हो रहा था। इस फर्जीवाड़े के लिए ग्रामीणों ने सरकारी नुमाइंदों को लताड़ा और ज़िंदल वापस जाओ का नारा लगाया तो बाहर से आये फौज के हाथ-पांव फूलने लगे। हालात काबू से बाहर होते देख जिन्दल के कर्मचारियों को पीछे से पथराव करने का निर्देश जारी हो गया था एक पत्थर जन सुनवाई में अपना विरोध दर्ज कर रहे स्थानीय किसान नेता डा. हरिहर पटेल की नाक से टकराया और वे बेहोश होकर गिर गये। यह देख कर ग्रामीण घबरा कर इधर-उधर भागने लगे। इनमें महिलाएं और बुजुर्ग भी थे। कुछ अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी लेकर आये थे। पुलिस ने सबको दौड़ा-दौड़ा कर मारना शुरू कर दिया। यह सिलसिला कोई पौन घंटे तक चला। सैकड़ों की तादात में महिला-पुरुष घायल हुए। सबसे ज्यादा 32 लोग गंभीर रूप से घायल हुए जिनमें डा. हरिहर पटेल की हालत बेहद नाजुक हो गयी थी।
जब जिंदल कंपनी व पुलिस से जबाब मांगा गया तो झूठ बोला गया कि पथराव ग्रामीणों की ओर से हुआ। हालांकि इस भीषण लाठी चार्ज में केवल ग्रामीण घायल हुए जो जिन्दल कंपनी का विरोध कर रहे थे। जिन्दल प्रबंधन और प्रशासन के किसी कर्मचारी और अधिकारी को खरोंच तक नहीं लगी। इधर सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से घायलों को अस्पताल ले जाया गया था और उधर एडीशनल कलेक्टर जन सुनवाई को दोबारा चालू करने के आदेश दे रहे थे। जबकि आयोजन स्थल पर कोई ग्रामीण नहीं रह गया था। उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए जन सुनवाई को निरस्त करने का जबरदस्त विरोध किया, तब कहीं जाकर जन सुनवाई का नाटक रूका। एन.जी.टी. ने इसे बाद में रद्द कर दिया।
उस हादसे ने लोगों के दिलो दिमाग में शासन-प्रशासन और जिन्दल प्रबंधन की करतूत को कभी न भूलने वाला जख्म न भरने का काम किया। लाठी चार्ज की जांच सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश में सीबीआई से कराने तथा दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की मांग हुई पर यह मांग आज तक पूरी नहीं हुई।